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विधायक ने इसे विशेषाधिकार हनन मानते हुए विधानसभा स्पीकर मदन मोहन वर्मा से गुहार लगाई और मामला विशेषाधिकार समिति को भेज दिया गया। समिति ने केशव सिंह सहित चार लोगों को विशेषाधिकार हनन का दोषी माना और सदन के सामने पेश होने को कहा। बाकी लोग तो सदन के सामने आए, लेकिन केशव सिंह ने यह कहकर आने से मना कर दिया कि उनके पास गोरखपुर से आने के लिए पैसे नहीं हैं।
इस बीच केशव सिंह ने स्पीकर को चिट्ठी भेजकर कहा कि सदन में तलब कर उन्हें चेतावनी दिए जाने का फैसला ‘नादिरशाही’ है। इससे विधानसभा आग-बबूला हो गई। मुख्यमंत्री सुचेता कृपलानी ने सदन में प्रस्ताव रखा कि केशव सिंह को गिरफ्तार कर 7 दिन के लिए जेल भेजा जाए, जो पारित भी हो गया। केशव सिंह को मार्शल गोरखपुर से गिरफ्तार करके लाए और उन्हें जेल भेज दिया गया।
इसके अलावा, सबसे ताजा मामला 34 साल पहले का है। 2 मार्च 1989 में एक अधिकारी शंकर दत्त ओझा को सदन में तलब किया गया था। ओझा तत्कालीन यूपी तराई विकास जनजाति निगम के अधिकारी थे। उन पर सदन के सदस्य हरदेव के साथ बदसलूकी करने का आरोप लगा था। यह मामला भी विशेषाधिकार हनन का था, जिसमें केस दर्ज होने के बाद ओझा को सदन में पेश होना पड़ा। आज से पहले यह आखिरी मौका था, जब सदन को कोर्ट में तब्दील किया गया था।
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