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निकायवार रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश हैं
2022 के सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश सरकार व अन्य केस के आदेश में पैरा 23 में सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग आयोग की प्राथमिक रिपोर्ट को भी पिछड़ों को आरक्षण देने के योग्य नहीं माना। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह विकास किशनराव गवली केस में दिए फैसले की मूल भावना को पूरा नहीं करती है। निकायवार पिछड़ेपन का आकलन अनिवार्य है। ऐसे में इस रिपोर्ट का कोई फायदा नहीं है। इसी फैसले के पैरा संख्या 24 में कहा गया है कि पिछड़ा वर्ग आयोग को ही ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत तय करना होगा, जोकि शहरी निकायवार होगा। यानी हर शहरी निकाय में वहां की स्थितियों को देखते हुए यह कम या ज्यादा हो सकता है।
ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत क्या होगा?
शहरी निकायों में ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत क्या होगा इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने विकास किशनराव गवली केस के फैसले में पैरा संख्या 11 में कहा था कि नगर पालिका परिषदों में पदों और स्थानों के आरक्षण नियमावली में 1994 में संशोधन करके ओबीसी आरक्षण की बात जोड़ी गई। लेकिन इसे 27 प्रतिशत किए जाने का आधार कहीं भी नहीं बताया गया है। इसी पैरा में आगे कहा गया है कि यह राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे एक कमिशन बनाएं और प्रदेश में पिछड़ी जातियों के आरक्षण के संबंध में अध्ययन करें। आयोग की सिफारिशों के बाद ही 1961 के एक्ट के 12(2)(सी) सेक्शन में संशोधन किया जाए। तब सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि ओबीसी आरक्षण के ट्रिपल टेस्ट अनिवार्य होगा और इसके बिना ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता।
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