Home Politics UP Nikay Chunav: पिछड़ा वर्ग आयोग होता तो नहीं उलझता शहरी निकायों में आरक्षण का पेच! समय पर चुनाव मुश्किल

UP Nikay Chunav: पिछड़ा वर्ग आयोग होता तो नहीं उलझता शहरी निकायों में आरक्षण का पेच! समय पर चुनाव मुश्किल

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UP Nikay Chunav: पिछड़ा वर्ग आयोग होता तो नहीं उलझता शहरी निकायों में आरक्षण का पेच! समय पर चुनाव मुश्किल

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लखनऊ: अगर उत्‍तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग आयोग होता तो शायद शहरी निकायों में ओबीसी आरक्षण देने की राह आसान हो सकती थी। लेकिन प्रदेश में फिलहाल पिछड़ी जातियों के संबंध में रिपोर्ट तो दूर, पिछड़ा वर्ग आयोग ही अस्तित्व में नहीं है, जिसे यह रिपोर्ट तैयार करनी है। ओबीसी वर्ग को शहरी निकायों में आरक्षण देने के लिए जिस ट्रिपल टेस्ट की बात हो रही है, उसका पहला कदम ही पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन है। 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश सरकार और अन्य के मामले में इस पर साफ आदेश दिए थे।

इस साल हुए विधानसभा चुनाव के पहले जसवंत सैनी पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष थे। हालांकि योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में जब मंत्रिमंडल का गठन हुआ तब जसवंत सैनी को राज्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद से आयोग का पद फिर खाली हो गया है। अबतक आयोग में अध्यक्ष पद की तैनाती नहीं हुई है। आयोग को ही प्रदेश में पिछड़ी जातियों की स्थिति के बारे में अध्ययन करना है।

निकायवार रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश हैं
2022 के सुरेश महाजन बनाम मध्य प्रदेश सरकार व अन्य केस के आदेश में पैरा 23 में सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग आयोग की प्राथमिक रिपोर्ट को भी पिछड़ों को आरक्षण देने के योग्य नहीं माना। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह विकास किशनराव गवली केस में दिए फैसले की मूल भावना को पूरा नहीं करती है। निकायवार पिछड़ेपन का आकलन अनिवार्य है। ऐसे में इस रिपोर्ट का कोई फायदा नहीं है। इसी फैसले के पैरा संख्या 24 में कहा गया है कि पिछड़ा वर्ग आयोग को ही ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत तय करना होगा, जोकि शहरी निकायवार होगा। यानी हर शहरी निकाय में वहां की स्थितियों को देखते हुए यह कम या ज्यादा हो सकता है।

ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत क्या होगा?
शहरी निकायों में ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत क्या होगा इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने विकास किशनराव गवली केस के फैसले में पैरा संख्या 11 में कहा था कि नगर पालिका परिषदों में पदों और स्थानों के आरक्षण नियमावली में 1994 में संशोधन करके ओबीसी आरक्षण की बात जोड़ी गई। लेकिन इसे 27 प्रतिशत किए जाने का आधार कहीं भी नहीं बताया गया है। इसी पैरा में आगे कहा गया है कि यह राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे एक कमिशन बनाएं और प्रदेश में पिछड़ी जातियों के आरक्षण के संबंध में अध्ययन करें। आयोग की सिफारिशों के बाद ही 1961 के एक्ट के 12(2)(सी) सेक्शन में संशोधन किया जाए। तब सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया था कि ओबीसी आरक्षण के ट्रिपल टेस्ट अनिवार्य होगा और इसके बिना ओबीसी आरक्षण नहीं दिया जा सकता।

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