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पटेल ने कहा कि अब रामचरितमानस की जिन चौपाइयों की बात हो रही है, देखें तो वैसे भी कुरआन में भी लिखा है कि बुतपरस्ती हराम है। इतिहासकार ने कहा है कि बुतपरस्तकी में जो लोग हैं, काफिर हैं। मैं ऐसा नहीं मानती और न विश्वास करती हूं। हमारे लिए मूर्तिपूजन साकार ब्रह्म है। जिसको मैं मानती नहीं, उस पर बात नहीं करती। उन्होंने आगे कहा कि किसी पंक्ति को हटाना या शब्द को हटाना अहम नहीं है। महत्वपूर्ण है कि वो शब्द लोगों के अंतररात्मा में दिमाग में छपा है। अगर हमें हटाना है और विरोध करना है तो हमें अपने आंदोलन को इतना बड़ा करना होगा कि वो शब्द हमारे दिमाग से हटे और आत्मा से हटे।
पल्लवी पटेल ने कहा कि रामचरितमानस की चौपाई में गलत ये है कि उसमें शूद्र बोला जाता है और लोगों के दिमाग में शू्द्रों के लिए जो हमेशा से रहा है, जिस प्रकार से दमन किया गया है, जिस प्रकार से शोषण हुआ है, वो हटना चाहिए। पटेल ने साफतौर पर कहा कि मैं रामचरितमानस में विश्वास नहीं करती और तुलसीदास को अनुवादक मानती हूं। संत न मानते हुए मैंने ये माना कि वो ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सभी रामायणों को पढ़ते हुए एक नई पुस्तक लिखी। इन शब्दों को लोगों के मानस से हटाने के लिए एक आंदोलन होना चाहिए।
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