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राजनाथ सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा का जिक्र करते हुए कहा कि मैं गांव में प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था। वहां पर पढ़ाने वाले एक पंडित जी थे और एक मौलवी साहब। मौलवी साहब पढ़ाते भी थे और फिजिकल ट्रेनिंग भी कराते थे। मुझे याद है कि हमारी एक्सरसाइज ठीक नहीं होती थी। मौलवी साहब तब एक पतली सी छड़ी रखा करते थे। उससे वे हमारे पैरों पर धीरे से मारते थे। उनकी छड़ी की मार से चोट कम लगती, लेकिन उसका डर हमें बना रहता था। उनके एक्सरसाइज को हम सीख लेते थे। राजनाथ सिंह ने मौलवी साहब शिक्षक की कहानी को बढ़ाते हुए कहा कि जब 38-39 वर्ष की उम्र में मैं उत्तर प्रदेश का शिक्षा मंत्री बना। अपने घर जा रहा था। गाड़ियों का लंबा काफिला था। आप जानते ही हैं कि जब कोई मंत्री बन जाता है तो एक, दो, चार नहीं, सैकड़ों गाड़ियां पीछे चलती हैं।
राजनाथ सिंह ने कहा कि मेरे गांव वाली सड़क पर ही करीब 15-16 किलोमीटर पहले मौलवी साहब का घर था। गांव जाने की सड़क वही थी। मौलवी साहब रिटायर हो गए थे। बुजुर्ग थे। आंखों से दिखाई नहीं दे रहा था। उन्हें पता चला कि जिस राजनाथ को पढ़ाया, वह शिक्षा मंत्री बन गया है। इसी रास्ते से गुजरने वाला है। दो- तीन बच्चों को साथ लिया। सड़क के पास आ गए। आंख बंद किए खड़े थे। गाड़ी में हमारे साथ एक सज्जन बैठे थे। उन्होंने बताया कि ये मौलवी साहब आपके शिक्षक रह चुके हैं। इन्होंने आपको पढ़ाया था।
राजनाथ ने कहा कि मैं अपने जज्बे को रोक नहीं पाया। गाड़ी आगे निकल गई थी। बैक करवाया। उनके पास पहुंचा। मौलवी साहब हाथों में माला लिए खड़े थे। मैंने उनके पैर छुए। मौलवी साहब की आंखों से आंसू निकलने लगा। एक छात्र की सफलता शिक्षक को कितनी खुशी देती है, आप समझ सकते हैं। वे मेरी गाड़ी निकलने तक रोते रहे। कल्पना कीजिए, मैं मौलवी साहब से दशकों बाद मिला था। उस क्षण को मैं जीवन भर नहीं भूल सकता।
संयोग से राजनीति में आने की बात
राजनाथ सिंह ने दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि राजनीति में आने से पहले मैं एक शिक्षक था। भले ही मैं आज के समय में राजनीति के मैदान में हूं, लेकिन कहीं न कहीं मेरे जेहन में वह शिक्षक जिंदा है। जब मैं शिक्षक और छात्रों के बीच जाता हूं, तो उस शिक्षक को दिल-दिमाग में जीवित पाता हूं। राजनीति में आने को लेकर उन्होंने कहा कि न ऐसी कोई योजना थी। न ही कोई इच्छा थी। संयोगवश राजनीति से जुड़ाव हुआ।
राजनाथ सिंह ने दीक्षांत समारोह की प्रासंगिकता का जिक्र करते हुए कहा कि यह आपके इस संस्थान में तहजीब सीखने का अंत है। शिक्षा जीवन भर चलता रहेगा। याद रखिए, यह दीक्षांत समारोह है, शिक्षांत समारोह नहीं। जिसने सीखने की प्रवृति नहीं रखते हैं तो वे सफल नहीं हो सकते।
पॉजिटिव एटीट्यूड को बताया जरूरी
राजनाथ सिंह ने जीवन में पॉजिटिव एटीट्यूड को जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि सफलता और असफलता जीवन में साथ-साथ चलती है। आपको दोनों के बीच सकारात्मक भाव को विकसित करने की जरूरत है। बिजली का बल्ब बनाने वाले थॉमस एडिशन का जिक्र करते हुए राजनाथ ने कहा कि वे फिलामेंट का ट्रायल कर रहे थे। 2000 मेटल पर फिलामेंट का ट्रायल किया गया। लेकिन, सफलता नहीं मिली। उन्होंने एक बार कहा था कि हमने दो हजार मेटल को देखा है कि वे फिलामेंट बनने के लिए फिट नहीं है। यह सीख तो हमें मिल गई है। यह होता है असफलता के बीच का पॉजिटिव नजरिया।
असफलता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी असफलता जीवन का अंत नहीं है। रामानुजम ने 32 साल की जिंदगी में 4000 थ्योरम पर रिसर्च किया। लेकिन, 12वीं कक्षा में दो बार फेल हुए थे। बाद उनके स्कूल का नाम उनके नाम पर पड़ा। कोई भी सफलता अंतिम नहीं होीत है। कोई भी असफलता आपकी जिंदगी का अंत नहीं है। असफलता का डर आपको सफल होने की तैयारी की प्रेरणा देती है।
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