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हरिचंद्र दास ने पूरी विधि-विधान के साथ अपनी बरसी की। पहले सिर मुंडवाया। फिर सफेद धोती पहनी। पंडित ने पूरी विधि के साथ मंत्र भी पढ़े। फिर जो दान की प्रक्रिया होती है, वह भी पूरा गई। देर शाम तक सारे नियम पूरे किए गए। इसके बाद रात में भोज का आयोजन किया गया। उनके साथ उनकी पत्नी और घर के अन्य सदस्य भी साथ थे।
जब उनसे खुद से अपना श्राद्ध और बरसी करने का कारण पूछा गया तो बोले की हम साधु-संत हैं। अपना सारा काम खुद करके जाएंगे। इसलिए अपना श्राद्ध खुद से करते हैं। हरिचंद्र दास के दो बेटे हैं। दोनों शादीशुदा है। दूसरे प्रदेश में रहकर मेहनत मजदूरी करते हैं। जिससे घर परिवार चलता है। हरिचंद्र बुजुर्ग हो चुके हैं। इसलिए कोई काम नहीं करते हैं। घर पर ही रहते हैं।
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