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रिपोर्ट-अभिषेक रंजन
मुजफ्फरपुर. कहते हैं कि प्रतिभा अगर हो तो वह तमाम बाधाओं को पार करते हुए आगे निकल जाती है. कुछ ऐसा ही मुजफ्फरपुर के इब्राहिमपुर की रहने वाली 20 वर्षीय नीलू ने कर दिखाया है. पहले तो गांव-देहात की बेटियां अक्सर संसाधनों से मरहूम रहती हैं, ऊपर से यदि किसी के सिर से उसके पिता का भी साया उठ जाए तो फिर सारे हौसले पस्त हो जाते हैं. लेकिन नीलू इन चुनौतियों से पार पाना बखूबी जानती है. यही कारण है कि वह भले ही उधार के जूते पहन कर ही सही, लेकिन रग्बी खेल के क्षेत्र में नेशनल तक खेल रही है. हाल ही में नीलू उड़ीसा में यूनिवर्सिटी गेम्स खेलकर लौटी है, जहां वह अपनी काबिलियत के दम पर टीम को क्वार्टर फाइनल तक ले गई. नीलू बताती है कि गांव में लड़कियां इस खेल में रुचि भी नहीं लेती, इस कारण से उसे अकेले ही प्रैक्टिस भी करना पड़ता है.
हाफ पैंट पहन कर करती थी रग्बी की प्रैक्टिस
रग्बी के खेल में नीलू ने राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर दर्जनों मेडल जीते हैं. नीलू बताती है कि गांव में जब हाफ पैंट पहनकर रग्बी की प्रैक्टिस करती तो लोग बहुत खरी-खोटी सुनाते थे.लेकिन तमाम बातों को नजरअंदाज कर वह दिन-रात मेहनत करती रही और फिर कोच की मदद से नेशनल खेलने पहुंची.नीलू पहली बार 2016 में नेशनल खेलने चेन्नई गई, वहां उसका थर्ड प्लेस लगा. इसके कुछ समय बाद नीलू के पिता का देहांत हो गया. फिर भी नीलू रुकी नहीं. छोटे-बड़े टूर्नामेंट खेलते-खेलते 2018 में नीलू नेशनल गेम्स खेलने गई, जहां उनका सेकेंड प्लेस लगा. इसके साथ ही राज्य स्तर और जिला स्तर पर आयोजित दर्जनों टूर्नामेंट में नीलू ने लक्ष्य को भेदा. हाल में ही नीलू उड़ीसा में यूनिवर्सिटी गेम्स खेलने गई, जहां अपनी काबिलियत के दम पर टीम को क्वार्टर फाइनल तक ले गई.
बिना सरकारी मदद के हो रही कठिनाई
नीलू कहती है कि पिता की मौत के बाद भी मां ने उसे काफी सहयोग किया. वह बताती है कि पहली बार जब वह नेशनल खेलने गई, तब उनके पास जूते तक नहीं थे. उसने अपने एक साथी से जूते उधार मांगे. नीलू कहती है खेल जारी रखने के लिए उसे सरकार की मदद चाहिए. लेकिन अब तक किसी भी प्रकार की कोई मदद नहीं मिल पा रही है. तमाम परेशानियों के बावजूद अपना खेल जारी रखना अब नीलू के लिए कठिन हो रहा है.
देश के लिए प्रतिनिधित्व करने की है चाहत
नीलू कहती है कि वह एक सामान्य परिवार की लड़की है. पिता की भी मौत हो गई है. ऐसे में बिना मदद के खेल और खेल की प्रैक्टिस करना थोड़ा कठिन है. हालांकि इन कठिनाइयों के बावजूद वह इस खेल को जारी रखने और एक दिन अंतरराष्ट्रीय मैचों में भारत का प्रतिनिधित्व करना चाहती है. रग्बी खेलने के साथ-साथ नीलू ग्रेजुएशन के पार्ट वन में पढ़ाई भी कर रही है. नीलू कहती हैं खेल सम्मान के तौर पर एक बार उसे 11000 रुपए मिला था. इसके अलावा कोई मदद नहीं मिली.
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पहले प्रकाशित : 08 जनवरी, 2023, 14:28 IST
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