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कोरोना की तीसरी लहर ने महानगरों को झकझोर दिया है। दिल्ली में एक दिन में 21 हजार से ज्यादा केस सामने आने के बाद ही लोग भय और आशंकाओं से घिर गए हैं। लॉकडाउन का डर फिर सताने लगा है। साथ ही शुरू हो गया है प्रवासियों की जद्दोजहद, दर्द और बेबसी भरी वो दौड़… जिसे पिछले साल भी देखा था।
एक बार फिर प्रवासी मजदूरों से ट्रेनें खचाखच भरने लगी हैं। रोजगार छूटने की बेबसी लिए लोग कंधे पर पूरी गृहस्थी लादे भागे चले आ रहे हैं। कतारों का कोई अंत नहीं दिखाई दे रहा है। हर किसी को बस एक ही फिक्र है, लॉकडाउन से पहले अपनों के बीच पहुंच सकें। सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदन न करना पड़े, जो पिछले साल कइयों के लिए जानलेवा बन गया था। ऐसे में अभी से लोग घर वापसी में जुट गए हैं।
पहले लॉकडाउन से सीख ली, इसलिए लौट आए घर: अरुण
दिल्ली से मुजफ्फरपुर पहुंची सप्तक्रांति एक्सप्रेस से स्टेशन पर उतरे अरुण कुमार ने बताया कि पहले लगे लॉकडाउन से सीख लेते हुए एक बार फिर जब लॉकडाउन जैसे आसार दिखने लगे तो वापस अपने गांव आ गए हैं। अरुण ने बताया कि वो दिल्ली में एक स्पोर्ट्स इक्रूपमेंट बनाने वाली फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर के तौर पर काम करते थे। कोरोना के मामले बढ़ने के साथ ही फैक्ट्री बंद हो गई। इसलिए घर वापस आना मजबूरी बन गया है।
लॉकडाउन के डर से वापस अपने घर आ गए: अरविंद
वहीं राजस्थान से वापस अपने गांव आए अरविंद ने बताया कि फैक्ट्रियों में काम बंद हो चुका था। एक बार फिर से कोरोना संक्रमण का डर सताने लगा था। लॉकडाउन के डर से वापस अपने घर आ गए। यूपी बिहार वालों की यह मजबूरी है कि जान हथेली पर लेकर कोरोना संक्रमण के बीच रोजगार की तलाश में महानगरों की ओर रुख करते हैं और फिर जान बचाने के लिए वापस अपने गांव की ओर आना पड़ता है।

अपने घर वापस आए प्रवासी मजदूर
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