Home Bihar Opinion: ‘मोतियाबिंद’ और ‘मोदियाबिंद’ में अंतर पता है? प्रशांत किशोर ने समझाया, जानें

Opinion: ‘मोतियाबिंद’ और ‘मोदियाबिंद’ में अंतर पता है? प्रशांत किशोर ने समझाया, जानें

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Opinion: ‘मोतियाबिंद’ और ‘मोदियाबिंद’ में अंतर पता है? प्रशांत किशोर ने समझाया, जानें

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पटना: 14 साल पहले (2009) एक फिल्म आई थी थ्री इडियट्स। नौजवानों के बीच इस फिल्म का एक डायलॉग काफी पॉपुलर हुआ था। जिसमें एक दोस्त अपने दूसरे दोस्त के उलझनों का सुलझाने के दौरान कहता है कि ‘काबिल बनो कामयाबी झक मार कर आएगी’। दरअसल, ये सफल जीवन का निचोड़ है। इसका सीधा-सीधा मतलब ये है कि अगर आप अपने काम में माहिर हैं तो आपकी सफलता को कोई रोक नहीं सकता। बिहार की धरती को नापने निकले प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) का इम्पैक्ट पटना तक दिखने लगा है। उनकी एसेप्सटिबिलिटी बढ़ने लगी है। वैसे, फिल्म का पूरा डायलॉग सिर्फ 6 शब्दों का नहीं बल्कि कुछ इस तरह है- ‘कामयाब होने के लिए नहीं, काबिल होने के लिए पढ़ो। सक्सेस के पीछे मत भागो…एक्सीलेंस का पीछा करो…सक्सेस झक मारकर तुम्हारे पीछे आएगी।’

7-8 महीनों से ‘अपना काम’ कर रहे प्रशांत

चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बनने निकले प्रशांत किशोर पिछले 7-8 महीने से ‘अपना काम’ कर रहे हैं। वैसे अपने करियर में वो एक सफल व्यक्ति हैं। चाहते तो आराम की जिंदगी इस धरती के किसी कोने में गुजार सकते थे, मगर उन्होंने बिहार को चुना। उनकी निजी जिद्द हो सकती है। गांव-गांव घूम-घूम कर लोगों को समझा रहे हैं कि 26 सांसदों वाले गुजरात में बिहार 15 लाख नौजवान मजदूरी करते हैं। जबकि 40 सांसदों वाले बिहार के विकास के लिए देश के प्रधानमंत्री ने नौ साल में एक मीटिंग तक नहीं की। बिहार लेबर सप्लायर स्टेट क्यों बन गया है? लालू ये नहीं चाहते की यादव समाज का कोई नौजवान आगे बढ़े बल्कि वो अपने नौवीं पास बेटे को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। नीतीश कुमार की नौकरशाही पर भांति-भांति के इल्जाम लगाते हैं। और भी कई बातें हर पंचायत में जाकर लोगों को समझाते और सुनाते हैं। अपनी बातों को पुख्ता करने के लिए उनके पास बहुत सारा फैक्ट-फिगर होता है। जाति-धर्म के जकड़न में उलझे समाज से खरी-खरी अपनी बातों को कहते हैं।

‘मोतियाबिंद’ के साथ ‘मोदियाबिंद’ जोड़े PK

जन सुराज पर निकले प्रशांत किशोर बड़े ही रोचक अंदाज में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हैं। इस दौरान वो आंखों की बीमारी ‘मोतियाबिंद’ के साथ ‘मोदियाबिंद’ को जोड़ देते हैं। जिसमें भीड़ को बताते हैं कि दोनों ही बीमारियां आंख से जुड़ी हुई है और दोनों में क्या अंतर है। दरअसल, कुछ दिन पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मोतियाबिंद का ऑपरेशन दिल्ली में कराया था। मोतियाबिंद में आमतौर पर दूर का दिखना बंद हो जाता है। इसी के बहाने वो भीड़ को समझाने की कोशिश करते हैं कि पटना से दूर के इलाके को कैसे बिहार सरकार नजरंदाज कर देती है। जबकि, ‘मोदियाबिंद’ में आसपास का दिखना बंद हो जाता है, उसे सबकुछ दूर-दूर का दिखता है। वोटरों को मोतियाबिंद के साथ-साथ ‘मोदियाबिंद’ से भी बचने की नसीहत देते हैं।

पीके कहते हैं कि ‘बिहार में मोदियाबिंद का बहुत असर है। मोतियाबिंद में दूर का चीज नहीं दिखाई देता है, नजदीक का दिखाई देता है। लेकिन बिहार में जो ‘मोदियाबिंद’ हो गया है, उससे बिहार के आदमी को पाकिस्तान दिखाई देता है, चाइना दिखाई देता है। अपने गली का टूटा हुआ रोड नहीं दिखाई दे रहा है। इसलिए हमलोगों को मोदियाबिंद से भी निकलना है। अपराध वाले जंगलराज को वापस नहीं आने देना है और जो अफसरशाही का जंगलराज नीतीश कुमार ने बनाया है, उसका भी समापन करना है। तीनों को खत्म करना है।’

PK के नाम सुनते ही नेताओं का मूड ऑफ

बिहार के जो टॉप लीडर हैं, वो प्रशांत किशोर का नाम सुनते ही खामोश हो जाती है। रोजाना नेताओं के बयान जुटाने वाला पटना का मीडिया भी प्रशांत किशोर से जुड़े सवाल नहीं पूछता है। मसलन, प्रशांत किशोर का नाम सुनते ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाथ जोड़ लेते हैं। 18 साल से सियासी शतरंज के विजेता नीतीश कुमार पीके का नाम सुनते ही अनकम्फर्ट हो जाते हैं। बिहार की सबसे बड़ी पार्टी के चीफ लालू यादव तो पीके का नाम सुनते ही बिदक जाते हैं। लालू यादव के सियासी वारिस और उनके उपमुख्यमंत्री बेटे तेजस्वी यादव अपना जुबान सील लेते हैं। बीजेपी नेताओं की आलम ये है कि प्रशांत सुनते ही आगे बढ़ जाते हैं। ऐसा लगता है कि सत्ता की मारामारी में जुटी बिहार की तीनों बड़ी पार्टियों (RJD, BJP और JDU) में आपसी सहमति है कि पीके को इग्नोर मारो। इसका असर ये है कि पटना के पत्रकार भी प्रशांत किशोर को लेकर सवाल नहीं पूछते हैं। वो भी नहीं चाहते कि नेताओं का मूड ऑफ हो। मगर, प्रशांत किशोर की नजर महाभारत के अर्जुन वाली बनती जा रही है।

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बिहार में प्रशांत किशोर का बढ़ता कारवां

बिहार के शिक्षाविदों, बुद्धजीवियों और समाजसेवियों का समर्थन प्रशांत किशोर को मिल रहा है। फ्री का अनाज, खाते में सालाना 6 हजार रुपए और जातीय जकड़न में उलझे वोटरों को प्रशांत कैसे कॉन्विंस करेंगे, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती है। इसी का नतीजा है कि संबोधन के दौरान कई बार काफी रूखे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। मगर, उनका कारवां बढ़ रहा है। बिहार के नौकरशाह उनके कैंपेन के सपोर्ट में आए हैं। छह पूर्व आईएएस अफसर अभियान में शामिल हुए हैं। जिसमें रिटायर्ड स्पेशल सेक्रेट्री लेकर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट तक शामिल हैं। इनमें:-
1. अजय कुमार द्विवेदी, (पश्चिमी चंपारण)- रटायर्ड विशेष सचिव, बिहार
2. अजय कुमार सिंह (भोजपुर )- सेवानिवृत सचिव, पूर्व डीएम (कैमूर, पूर्णिया)
3. ललन यादव (मुंगेर)- सेवानिवृत आयुक्त (पूर्णिया), डीएम (नवादा, कटिहार)
4. तुलसी हजारी (पूर्वी चंपारण)- सेवानिवृत संयुक्त सचिव, स्वास्थ्य विभाग, बिहार
5. सुरेश शर्मा (गोपालगंज)- सेवानिवृत संयुक्त सचिव, स्वास्थ्य विभाग, बिहार
6. गोपाल नारायण सिंह (औरंगाबाद)- रिटायर्ड आईएएस

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जब तेजस्वी और सम्राट के सामने होंगे PK

चंपारण के इलाके के बाद गोपालगंज होते हुए प्रशांत किशोर आजकल वैशाली में हैं। 2024 लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर प्रशांत किशोर की ओर से कोई बयान नहीं आया है। वो पूरे बिहार के एक-एक गांव को घूमना, देखना और लोगों से संवाद स्थापित करना चाहते हैं। मगर, मकसद चुनाव है, ये किसी से छिपी नहीं है। प्रशांत किशोर अपनी मेहनत का रिजल्ट देखने के लिए बिहार विधान परिषद चुनाव में अपने एक समर्थक को निर्दलीय उतार दिया। वो जानना चाहते थे कि वो जो लोगों को समझा-बता रहे हैं, उसक कोई इम्पैक्ट भी हो रहा है या फिर सबकुछ हवा-हवाई है? सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में जन सुराज अभियान से जुड़े अफाक अहमद ने महागठबंधन उम्मीदवार को 674 वोटों से मात दे दी। इससे प्रशांत की टीम से जुड़े लोगों की हौसला अफजाई हुई, मगर बिहार की बड़ी पार्टियों के नेता पीके की जीत पर रिएक्शन देने से बचते रहे। हालांकि, मीडिया में इसकी चर्चा ठीकठाक हुई। वैसे, प्रशांत की नजर 2024 नहीं बल्कि 2025 पर टिकी है। इसी साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। महागठबंधन के पास सत्ता बरकरार रखने की जिम्मेदारी तेजस्वी यादव को है। वहीं, भगवा पगड़ी की लाज बचाने के लिए सम्राट चौधरी दो-दो हाथ करेंगे।

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