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उथल पुथल से भरा रहा कुशवाहा का राजनीतिक सफर
उथल पुथल से भरा रहा कुशवाहा का राजनीतिक सफर
2007 में जब उपेंद्र कुशवाहा को जनता दल यूनाइटेड से बर्खास्त कर दिया गया था। तब उन्होंने 2009 में राष्ट्रीय समता पार्टी की स्थापना की थी। लेकिन कुशवाहा ने राष्ट्रीय समता पार्टी का विलय 2009 में ही नीतीश कुमार की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल में कर दिया था। इसके बाद 2013 में उन्होंने जेडीयू से यह कहकर इस्तीफा दिया कि नीतीश मॉडल फेल हो चुका है। फिर उपेंद्र कुशवाहा ने 3 मार्च 2013 को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का गठन किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में NDA का हिस्सा बनी RLSP ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा और तीनों सीट पर जीत दर्ज किया। RLSP से लोकसभा सांसद बनने के बाद कुशवाहा को नरेंद्र मोदी की सरकार में मानव संसाधन राज्य मंत्री बनाया गया।
हालांकि, 2015 में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के दो फाड़ हो गए। एक का नेतृत्व उपेंद्र कुशवाहा कर रहे थे तो दूसरे का नेतृत्व जहानाबाद से निर्वाचित हुए आरएलएसपी सांसद अरुण कुमार के हाथ में था। लोकसभा चुनाव 2019 के पहले उपेंद्र कुशवाहा NDA का साथ छोड़ UPA में चले गए। 2019 में 5 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली आरएलएसपी एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। जिसके बाद 2021 में उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पार्टी का विलय जनता दल यूनाइटेड में कर दिया था। जेडीयू में विलय के बाद नीतीश कुमार ने पार्टी के कोटे से उपेंद्र कुशवाहा को विधान परिषद का सदस्य बनाया। इसके बाद नीतीश ने उन्हें जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष पद की भी जिम्मेदारी सौंप दी।
फिर से क्यों चर्चा में हैं उपेंद्र कुशवाहा?
राजनीतिक गलियारे में कयास लगाया जा रहे कि उपेंद्र कुशवाहा नीतीश कुमार का साथ छोड़ सकते हैं। बताया यह भी जा रहा है कि दिल्ली एम्स में रूटीन चेकअप कराने के लिए गए उपेंद्र कुशवाहा लगातार बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में हैं। अनुमान लगाया जा रहा कि उपेंद्र कुशवाहा या तो बीजेपी में शामिल होंगे या फिर अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी को फिर से खड़ा कर एनडीए का हिस्सा बनेंगे। हालांकि बिहार बीजेपी अध्यक्ष डॉ संजय जायसवाल से जब इस संबंध में सवाल किया गया तो उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि ना तो उपेंद्र कुशवाहा से इस विषय में कोई बात हुई है और न ही बीजेपी के किसी नेता ने उनसे मुलाकात की है। लेकिन सूत्र यह बताते हैं कि अंदर खाने में खिचड़ी जरूर पक रही है।
कुशवाहा पर पूछे गए सवाल पर नीतीश कुमार का जवाब
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी उपेंद्र कुशवाहा के बीजेपी नेताओं से मुलाकात की बाबत सवाल किया गया। सीएम नीतीश ने कहा कि उनके मन में क्या है, यह वही जानें। उन्होंने तो यह भी कह दिया कि यह तो सब जानते ही हैं कि वह (UPENDRA KUSHWAHA) पार्टी में आते-जाते रहे हैं। हालांकि, वे उपेंद्र कुशवाहा का हालचाल लेंगे। उन्होंने साथ में यह भी कह दिया कि वह ऐसी किसी बात की परवाह नहीं करते। बताया जा रहा कि उपेंद्र कुशवाहा की इच्छा उपमुख्यमंत्री बनने की थी, लेकिन नीतीश कुमार इसके लिए तैयार नहीं थे। अब तो मुख्यमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया कि तेजस्वी यादव के डिप्टी सीएम पद के समकक्ष किसी को नहीं देखना चाहते। भले ही अपनी पार्टी के नेता के साथ ही उनके रिश्ते खराब हो जाएं। इसके अलावा नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा पर चुटकी लेते हुए यही कहा कि अरे कोई उनसे यह भी कह दीजिए कि हमसे भी बात कर लें। नीतीश ने यह भी कहा कि वो अस्पताल में हैं हम उनका हालचाल ले लेंगे, लेकिन ये सबका अधिकार है कि वो जहां जाना चाहें चले जाएं। नीतीश ने कहा कि अभी कुछ दिन पहले ही वो हमलोगों के पक्ष में बोल रहे थे। बीजेपी के नेताओं के संपर्क में वो हैं ये हमको नहीं पता।
बीजेपी ने नीतीश पर कसा तंज
बिहार बीजेपी प्रवक्ता निखिल आनंद का कहना है कि उपेंद्र कुशवाहा एक बार फिर नीतीश कुमार के हाथों बुरी तरह ठगे गए हैं। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री चाहते हैं कि कुशवाहा समाज उन पर आश्रित रहे और इस समाज का कोई व्यक्ति कभी नेता नहीं बने। इसलिए उन्होंने उपेंद्र कुशवाहा का यूज ऐंड थ्रो कर दिया। निखिल आनंद ने आगे कहा कि राजनीति में ऐसा कोई सगा नहीं है जिसे नीतीश कुमार ने ठगा नहीं। जिस बीजेपी ने उनको कंधे पर बिठाकर एक मुकाम तक पहुंचाया। जेडीयू नेता ने जब बीजेपी के साथ धोखाधड़ी करने से पीछे नहीं हटे तो उपेंद्र कुशवाहा उनकी नजरों में क्या चीज हैं? बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि नीतीश कुमार ने उपेंद्र कुशवाहा को झांसे में लेकर उनकी पार्टी का अपनी जेडीयू में विलय करा दिया। फिर 2007 और 2013 की तरह उन्हें प्रताड़ित करने लगे हैं। दरअसल सीएम नीतीश आगे बढ़ रहे उपेंद्र कुशवाहा को कमजोर करना चाहते थे। जब नीतीश कुमार का काम हो गया तो अब उन्हें उपेंद्र कुशवाहा की जरूरत महसूस नहीं हो रही। बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ अभियान में लगी नीतीश कुमार की किचेन कैबिनेट की चौकड़ी भी जीत गई।
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उपेंद्र कुशवाहा की गुड हैबिट
जेडीयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा का करीब 37 साल का राजनीतिक कैरियर है। अच्छी बात यह है कि उनके ऊपर कभी भी भ्रष्टाचार के दाग नहीं लगे। पिछले कुछ वर्षों में राजनीतिक दलों के नेताओं की ओर से एक-दूसरे के खिलाफ अभद्र टिप्पणियां की जा रही। लेकिन उपेंद्र कुशवाहा ने अपने विरोधियों के लिए कभी भी अमर्यादित भाषा का प्रयोग नहीं किया। यह जरूर है कि उपेंद्र कुशवाहा की राजनीतिक इच्छा अन्य नेताओं के अपेक्षा ज्यादा है। इसी इच्छा की वजह से वह किसी भी गठबंधन में ज्यादा दिनों तक नहीं टिक सके। उपेंद्र कुशवाहा में एक खूबी यह भी है कि उन्होंने अपनी पार्टी के ऊपर भी दाग नहीं लगने दिया और न ही अपनी पार्टी में ऐसे लोगों को शामिल किया जो दल को दागदार कर सकें।
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उपेंद्र कुशवाहा की बैड हैबिट
राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ‘पलटू राम’ के नाम से संबोधित किया था। इस लिहाज से देखा जाए तो उपेंद्र कुशवाहा ने भी नीतीश कुमार से कम पलटी नहीं मारी है। वह पहले नीतीश कुमार का साथ छोड़कर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए (NDA) गठबंधन में शामिल हुए। फिर 2019 में उपेंद्र कुशवाहा लोकसभा चुनाव के दौरान यूपीए (UPA) का हिस्सा बने। बिहार में 5 सीटों पर चुनाव भी लड़े। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में यूपीए का साथ छोड़ उपेंद्र कुशवाहा ने डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट का गठन किया।
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बीजेपी में कब होगी एंट्री?
इस फ्रंट में उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के साथ मायावती कि बहुजन समाज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM शामिल थी। लेकिन विधानसभा चुनाव 2020 में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। तब उन्होंने पलटी मारते हुए अपनी पार्टी का विलय नीतीश कुमार के जेडीयू में कर दिया था। अब एक बार फिर उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश का साथ छोड़ने का मन लगभग बना लिया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राजनीतिक गलियारे में लगाए जा रहे इस कयास का पटाक्षेप कब होता है?
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