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Bihar Teacher Bharti Niyamawali: वाम दलों के लिए अग्नि परीक्षा बनी नीतीश सरकार की टीचर भर्ती की नियमावली

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Bihar Teacher Bharti Niyamawali: वाम दलों के लिए अग्नि परीक्षा बनी नीतीश सरकार की टीचर भर्ती की नियमावली

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Bihar Teacher Bharti Niyamawali 2023: बिहार में टीचर भर्ती की नई नियमावली को लेकर कई तरह कंफ्यूजन हैं। इस कंफ्यूजन ने वामदलों की मुश्किलें बढ़ा दी है। वामदलों के सामने चुनौती है कि वह महागठबंधन में रहते हुए इस नियमावली का किस हद तक विरोध करे। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि शिक्षक भर्ती नियमावली के मुद्दे पर वामदल कैसे फंस गई है।

पटना: राज्य सरकार की ओर से शिक्षक नियुक्ति को लेकर बनी नई नियमावली के विरुद्ध खड़ी राज्य के वाम दलों की हालत सांप छुछुंदर वाली हो गई है। एक तरफ वाम दलों से आस लगाए तमाम नियोजित शिक्षकों का सम्मानजनक न्याय दिलाना है तो दूसरी तरफ उस सरकार पर दबाव भी बनाना है जो वाम दल के सहयोग से चल रही है। वाम दलों की स्थिति तो यह है कि शिक्षक नियुक्ति के लिए बनी नियमावली या फिर आनंद मोहन को जेल मैनुअल में संशोधन कर परिहार करने का मामला हो वह विरोध करते दिखती भर है। राजनीतिक गलियारों में यह साफ साफ है कि यह विरोध विरोध के लिए है, परिवर्तन के लिए नहीं है।

आक्रोश में हैं शिक्षक अभ्यर्थी

शिक्षकों के नियोजन को लेकर बनी नई नियमावली ने शिक्षक अभ्यर्थियों के होश उड़ा दिए हैं। अभी तक जो शिक्षक अभ्यर्थी 7वें चरण में अपने नियोजन का सपना विगत चार वर्षों से देख रहे थे अब उन्हें नई नियमावली के अनुसार बिहार लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित परीक्षा में उत्तीर्ण होकर ही शिक्षक बनेंगे और राज्यकर्मी का दर्जा भी प्राप्त करेंगे। यह नई नियमावली खासकर उन नियोजित शिक्षकों की भी परेशानी बढ़ा दी है जो वर्षों से स्कूलों में अध्यापन कार्य में का कर रहे हैं।

क्या करने जा रही है सरकार

दरअसल, राज्य सरकार की मंशा नियोजित शिक्षक की श्रेणी को खत्म किया जाए। इसलिए 7वें चरण में जो लगभग पौने 2 लाख शिक्षकों का नियोजन करना था उसे अब नई नियमावली के तहत बिहार लोक सेवा आयोग की ओर से ली जाने वाली परीक्षा देनी होगी और पास होने पर वैसे शिक्षक के रूप में बहाली होगी, जिन्हे राज्यकर्मी का दर्जा भी मिलेगा। और सातवें चरण से जो पहले से नियोजित हैं गर वे भी राज्यकर्मी का दर्जा पाना चाहते हैं तो उन्हें भी नोहर लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित परीक्षा को पास करना होगा। पास करने के लिए उन्हें तीन बार मौका दिया जाएगा।

क्या चाहते हैं अभ्यर्थी?

तमाम नियोजित शिक्षक और सातवें चरण के वैसे अभ्यर्थी जो चार वर्ष से इंतजार कर रहे हैं वे बीपीएससी की ओर से आयोजित परीक्षा नहीं देना चाहते हैं। और अपनी इस मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। चरणबद्ध आंदोलन के तहत 1 मई को काली पट्टी बांध कर विरोध भी किया था।

नई नियमावली के भीतर कमियां क्या क्या है?

नियोजित शिक्षकों की माने तो यह एक छलावा है। जो व्यक्ति प्रारंभिक शिक्षा, बीएड और फिर टीईटी परीक्षा दे चुका है वह अब चौथी परीक्षा क्यों देगा। नई नियमावली के तहत बिहार लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित परीक्षा क्यों देगा? सरकार प्रलोभन दे रही है कि राज्यकर्मी का दर्जा देंगे? अभ्यर्थी। मानते हैं कि इसमें भी छलावा है। डीएएचआर और मेडिकल तो पहले ही दे रहे हैं। मगर वैसे राज्यकर्मी जिनकी सेवा 30 वर्ष की है उन्हें जो 10 साल पर प्रमोशन मिलता है उसका जिक्र नहीं है। 300 अर्जित अवकाश को लेकर भी कोई जिक्र नहीं है। फिर ये किस तरह का राज्यकर्मी का दर्जा देना चाहते हैं।
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वाम दलों की अग्नि परीक्षा

हालांकि वाम दल अपनी सरकार के विरुद्ध खड़ी तो है, पर संशय वाली स्थिति है। राज्य सरकार कहती है कि यह जो निर्णय नई नियमावली को लेकर किया है वह राज्य में गुणवत्तापूर्ण शिक्षक की दिशा में बढ़ा एक कदम है। और निर्णय के पहले सहयोगी दलों से बात भी हुई है। यह दीगर कि वाम दलों ने सरकार के वक्तव्य का विरोध करते कहा भी कि ऐसी कोई चर्चा या सहमति राज्य सरकार के साथ नहीं बनी है। ऐसे में वाम दल का स्टैंड अपने सरकार के विरुद्ध किस हद तक जाएगी। अगर नियोजित शिक्षक की बात सरकार नहीं मानती है तो वाम दल क्या सरकार से समर्थन वापस लेगी क्या? वाम दल की अब तक की राजनीति का जो यूएसपी है वह दांव पर लगी है। वाम दल को आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनाव में वर्तमान सरकार के साथ लड़ना भी है। जहां तक राज्य सरकार की बात है तो मुख्यमंत्री का दृढ़ निश्चय आ ही गया है। बिहार लोक सेवा आयोग अपनी तैयार भी शुरू कर चुका है। वैसे में शिक्षक प्रतिनिधियों के एक बड़े वोट बैंक के साथ वाम दल खड़ी होती है या सत्ता के साथ खड़ी हो कर अपना ओरा बढ़ाना चाहती है। वाम दल के साथ यह एक कठिन समय तो है। खास कर तब जब राज्य के मुख्यमंत्री ने उनकी सहमति की बात स्वीकार की है।
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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

वरिष्ट पत्रकार अरुण पांडे का मानना है कि सरकार ने शिक्षकों को ठगने का काम किया है। यहां यह समझना कठिन हो रहा है कि नौकरशाहों ने कैसे मुख्यमंत्री की इस नई नियमावली पर राजी कर लिया। यह तो शिक्षकों के मान सम्मान और पूर्व में किए गए वादे के प्रतिकूल है। शिक्षक पात्रता परीक्षा पास कर ली है वो बीपीएससी की ओर से आयोजित परीक्षा में क्यों शामिल होगा। अब तो पूरी तरह से शिक्षक संघ को एकजुट हो कर तमाम अभ्यर्थियों को बीपीएससी परीक्षा का बहिष्कार करना चाहिए। साथ में यह भी घोषणा करनी चाहिए कि बगैर किसी परीक्षा के शिक्षको को राज्यकर्मी घोषित करने का दावा भी करना चाहिए। परंतु मुझे संघ की आक्रामकता पर संदेह है। संघ पहले से कमजोर भी हुआ है। जाति, धर्म में संघ भी बट गया है। वाम दलों के लिए विरोध तो केवल अपनी राजनीति को धार देने के लिए किया गया। यह वाम दल भी जानती है कि सरकार पीछे हटने वाली नहीं। ऐसे में क्या वाम दल सत्ता का मोह छोड़ शिक्षक विरोधी सरकार से समर्थन वापस लेगी? यह फैसला वाम दल के भी कठिन तो है पर अब तक की राजनीति जो की है उसके साथ खड़ा न रहना भी वाम दल के लिए ठीक नहीं।

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