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बिहार के सियासी खिलाड़ी माने जाने वाले लालू यादव दिल्ली पहुंच गए हैं। किडनी ट्रांसप्लांट होने के बाद सिंगापुर से आकर फिलहाल दिल्ली में हैं। लालू यादव बेशक दिल्ली में हैं, मगर बिहार में बयानबाजी पूरी तरह सिर चढ़कर बोल रही है। बीजेपी की ओर से कहा जा रहा है कि पटना पहुंचते ही लालू यादव ‘ऑपरेशन सत्ता’ शुरू करेंगे। मगर जानकारों का मानना है कि ये सिर्फ ‘लालू फोबिया’ है।
लालू के सामने कौन-कौन चुनौतियां
- नीतीश कुमार मंत्रिपरिषद विस्तार से जुड़ी समस्या
- प्रोफेसर चंद्रशेखर का रामचरितमानस पर दिया गया नकारात्मक बयान
- अगड़ा-पिछड़ा को लेकर दिया गया राजस्व मंत्री आलोक मेहता का बयान
- मंत्री सुरेंद्र यादव का दिया गया सेना विरोधी बयान
- पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह का नीतीश कुमार के बारे में दिया गया बयान
- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कार्यनीति विशेष कर सुधाकर के सवाल
- कृषि नीति और कृषि रोड मैप की सुधाकर सिंह ने आलोचना की
- पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह ने कई बार सरकार विरोधी बयान दिया
स्वास्थ्य और लालू प्रसाद की राजनीति
जिस तरह से लालू प्रसाद ने एक लंबा समय स्वास्थ्य लाभ के लिए संघर्ष किया है, उस हिसाब से उनका शरीर भाग-दौड़ की राजनीति करने का इजाजत तो नहीं देगी। किडनी ट्रांसप्लांट कराने के बाद स्वास्थ संबंधी दिए गए निर्देश में एक साल लोगों से दूरी बनाकर रखना इसलिए जरूरी है कि इन्फेक्शन से बचा जाए। अपनी बेटी रोहिणी की किडनी लेकर प्रत्यर्पण कराने वाले लालू प्रसाद रोहिणी के इस नेक कार्य को जाया नहीं होने देंगे। इस वजह से ज्यादा भागदौड़ करने की भी इजाजत नहीं देती। बड़ी राजनीतिक फेरबदल करने के लिए यथोचित विधायकों की संख्या के साथ-साथ दिल्ली-पटना एक करना होगा। फिलहाल इस स्थिति में संभव नहीं है।
महागठबंधन में परस्पर विरोधाभास
जाहिर है महागंठबंधन की सरकार बनने के बाद सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। परस्पर अंतर्विरोध के कारण महागठबंधन के भीतर चुनौतियों का अंबार लगा है। प्रोफेसर चंद्रशेखर ने रामचरितमानस के जरिए मुस्लिम समीकरण के साथ पिछड़ों की राजनीति को हवा देकर जदयू नेतृत्व को असहज कर दिया। परस्पर विरोधी बयान देकर राजनीति को नया रंग देने की कोशिश की। राजस्व मंत्री आलोक मेहता ने 90 और 10 प्रतिशत की राजनीति को हवा दी, उसके बाद से अगड़ा-पिछड़ा की राजनीति की गंगा में काफी पानी बह गया है। सुधाकर सिंह और नीतीश कुमार की कार्यनीति पर भी जो सवाल उठाए गए, वो पार्टी स्तर पर कार्रवाई की चौखट पर दम तोड़ता नजर आ रहा है।
पटना आने पर भी कोई खास अंतर नहीं
दरअसल, राजनीतिक गलियारे में लालू प्रसाद के बिहार आगमन के बाद राजनीति में भरी उलटफेर की जिज्ञासा शामिल है। उसकी कोई ठोस वजह नहीं दिखता है। जिन चुनौतियों को लालू प्रसाद के आगमन के बाद समाधान देखा जा रहा है, वो सिंगापुर रहते भी समाधान हो सकता था। विचारों के आदान-प्रदान के लिए या राजनीतिक समाधान के लिए राजद नेता जाते रहे। कार्रवाई करनी होती तो कई ऐसे संसाधन थे, जिस पर इन तमाम चुनौतियों का समाधान हो सकता था। इसलिए बयानबाजी को लेकर राजद सुप्रीमो न तब गंभीर थे और न अब। किसी कार्रवाई की रूप रेखा बनाने को लेकर वो सक्षम नहीं है।
2023 में परिवर्तन की क्या वजह हो सकती है?
राजद की तरफ से कार्रवाई को लेकर शिथिल होना इस बात की ओर इशारा करता है कि नेतृत्व न तो पार्टी को कमजोर करना चाहती है और ना ही सरकार को अस्थिर। एक ही वजह परिवर्तन की हो सकती है, जब राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राजद मंत्रियों के इस बयानबाजी से नाराज हो जाएं। वे राजद का साथ छोड़कर चुनाव में जाएं या फिर नई सरकार बनाने के समीकरण पर विचार करें।
सरकार बदलने की कोई वजह नहीं
राजनीतिक विशेषज्ञ सुधीर शर्मा मानते हैं कि लालू प्रसाद के स्वदेश लौटने से राजनीति में कोई परिवर्तन नहीं होने जा रहा है। बयानवीर राजद नेताओं को लालू प्रसाद एक फोन कर उनकी औकात बता सकते थे। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की राजनीति को जो जानते हैं, वो ये भी जानते हैं कि नीतीश कुमार बिना लालू प्रसाद से बातचीत किए बगैर 2025 में तेजस्वी यादव को नेतृत्व सौंपने की बात नहीं करते। हां, सरकार बदलने की थोड़ी भी संभावना है तो वो नीतिश कुमार के तेवर पर निर्भर करेगा।
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