Home Bihar साहित्य से सियासत की ओर कदम बढ़ाना फणीश्वरनाथ रेणु को रास नहीं आया

साहित्य से सियासत की ओर कदम बढ़ाना फणीश्वरनाथ रेणु को रास नहीं आया

0
साहित्य से सियासत की ओर कदम बढ़ाना फणीश्वरनाथ रेणु को रास नहीं आया

[ad_1]

अररिया: दुनिया दूषती है। हंसती है। उंगलियां उठा कहती है …कहकहे कसती है। राम रे राम! फणीश्वरनाथ रेणु के दिल को जब ‘ठेस’ लगी। उनकी कलम ने समाज को आईना दिखाती इस कविता को जन्म दिया। ‘बहुरूपिया’ नाम की इस कविता में रेणु ने समाज के विद्रूप चेहरे को उकेर दिया। उसके बाद उनकी प्रसिद्ध कविताओं में एक का नाम ‘सुंदरियो’ है। उसमें वो लिखते हैं- सुंदरियो-यो-यो, हो-हो। अपनी-अपनी छातियों पर दुद्धी फूल के झुके डाल लो ! नाच रोको नहीं। बाहर से आए हुए, इस परदेशी का जी साफ नहीं। फागुन और बसंत को कोरे कागज पर उकेरते हुए उन्होंने ‘यह फागुनी हवा’ नाम से कविता लिखी। जिसके बोल हैं। यह फागुनी हवा। मेरे दर्द की दवा, ले आई…ई…ई…ई। मेरे दर्द की दवा! आंगन बोले कागा। पिछवाड़े कूकती कोयलिया। मुझे दिल से दुआ देती आई। विश्व प्रसिद्ध साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की 102 वीं जयंती है। 4मार्च 1921 को रेणु अररिया के औराही हिंगना गांव में पैदा हुए। आगे जाकर उन्होंने साहित्य में बिहार का डंका बजा दिया।

रेणु के लेखन की दीवानी दुनिया

रेणु और उनकी लेखनी किसी परिचय का मोहताज नहीं है ।गांव-ज्वार में बोली जाने वाली आम बोल-चाल की भाषा को उन्होंने साहित्य में पिरोया। रेणु ने आंचलिक साहित्य की नयी विद्या का ईजाद किया। उनके लेखन की दीवानी पूरी दुनिया बनी। फणीश्वरनाथ रेणु की कालजयी रचना ‘मैला आंचल’ से लेकर ‘परती परिकथा’ तक को लोगों ने हृदय से लगाया। उनकी कहानी ‘ठेस’ पढ़कर बचपन में हर कोई रोया। आज भी उनकी पुस्तकें हिंदी साहित्य के शोधकर्ताओं के लिए पसंदीदा बनी हुई हैं। ‘मैला आंचल’ के लिए रेणु को पद्मश्री अवार्ड मिला। हालांकि, उन्होंने जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में लड़ी गयी छात्र आंदोलन की लड़ाई के दौरान लाठी चार्ज के विरोध में अवार्ड को वापस कर दिया।

Bihar Politics: आज से विरासत बचाओ नमन यात्रा पर उपेंद्र कुशवाहा, गांधी आश्रम भितिहरवा से शुरुआत

अत्याचार के खिलाफ बुलंद रही आवाज

रेणु हठधर्मी होने के साथ अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने वालों में से थे। तभी तो स्वतंत्रता संग्राम के साथ गांव में निर्बलों पर अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने नेपाल पहुंच गये। नेपाल में राणाशाही के खिलाफ लड़ी। जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में छात्र आंदोलन की लड़ाई में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। फणीश्वरनाथ रेणु के सभी सियासी दलों से अच्छे संबंध रहे। लेकिन 50 के दशक में वे सोशलिस्ट पार्टी के जरिए राजनीति में सक्रिय हुए। साहित्य से उन्होंने सियासी सफर पर खुद को ढकेलना चाहा। उन्हें सियासत रास नहीं आई। 1972 में रेणु फारबिसगंज विधानसभा से चुनाव निर्दलीय लड़े। जब उन्होंने चुनाव लड़ने का पटना से ऐलान किया तो क्षेत्र के लोगों को आश्चर्य हुआ। आखिर निर्दलीय चुनाव क्यों लड़ रहे हैं?

नीतीश कुमार का ‘राजनीतिक बजट’ बिगाड़ने आज निकलेंगे उपेंद्र कुशवाहा, जानिए RLJD चीफ का पूरा प्लान

चुनाव मैदान में जब कलम हार गई

फणीश्वर नाथ रेणु ने चुनाव अपने दोस्त के खिलाफ लड़ी। इस चुनाव में रेणु के सामने उनके दो मित्र कांग्रेस के सरयू मिश्रा और सोशलिस्ट पार्टी के लखन लाल कपूर थे। लेकिन ऐलान के मुताबिक तीनों दोस्त एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े। चुनावी वैतरणी पार करने के लिए फणीश्वर नाथ रेणु को चुनाव चिन्ह नाव मिला। उस चुनाव में रेणु के चुनावी प्रचार का कमान साहित्यकारों की टोली संभाल रखा था। उक्त चुनाव में रेणु के पक्ष में लगने वाला नारा – कह दो गांव-गांव में, अब की बार वोट देंगे नाव में। ये नारा काफी लोकप्रिय हुआ। जब चुनाव परिणाम आया तो रेणु को महज 6,498 मत मिले। जबकि विजयी हुए कांग्रेस के सरयू मिश्रा को 29 हजार 750 और लखन लाल कपूर को 16 हजार 666 मत मिले। चुनाव में हार मिलने पर रेणु ने साफ कहा था कि उन्होंने न केवल कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लडा, बल्कि अन्य सियासी दलों के खिलाफ भी चुनाव लड़ा है। उन्होंने अपने मिले अनुभव के आधार पर कभी चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया।

‘आजादी की 175वीं वर्षगांठ मना रहे होते, अगर कुछ लोग नहीं करते गद्दारी’, BJP सांसद ने Jyotiraditya Scindia पर कसा तंज

सियासत रेणु को रास नहीं आई

फणीश्वरनाथ रेणु को सियासी मैदान में कामयाबी नहीं मिली। लेकिन उनके ज्येष्ठ पुत्र पदम पराग राय वेणु को 2010 के विधानसभा चुनाव में कामयाबी मिली। भाजपा के टिकट से चुने लड़कर वे विधानसभा तक पहुंचने में कामयाब रहे। 2015 में सिटिंग एमएलए होने के बावजूद जब उनका टिकट भाजपा ने काट लिया तो पदम पराग राय वेणु जदयू ज्वाइन कर लिया। जदयू संगठन में वे पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष हैं। रेणु के नाम को लेकर सियासत भी जमकर हुई। वोट की गोलबंदी के लिए सियासतदानों ने उनके नाम का जमकर सहारा लिया। जिसका मलाल रेणु के परिवार को आज भी है।

कभी सड़कों पर सबसे तेज ‘टमटम’ दौड़ाते थे ये विधायक, जानिए माले के महबूब आलम की सियासी कहानी

‘रेणु आंचलिक भाषा से प्यार करते थे’

रेणु के परिजन, दक्षिणेश्वर राय उर्फ पप्पू का कहना है कि रेणु हिन्दी साहित्य के न केवल मूर्धन्य साहित्यकार हुए। स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर सामाजिक तानाबाना बुनने में अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया। सियासत के महत्वाकांक्षी नेताओं ने भी रेणु का नाम लेकर सियासत के ऊपरी पायदान पर जा पहुंचे। रेणु परिवार को क्या मिला? घोषणाओं के बावजूद न तो रेलवे स्टेशन के नाम उनके नाम पर बदला जा सका और न ही सिमराहा को प्रखण्ड का ही दर्जा मिल पाया। बदलते वक्त के साथ गांवों में कुछ विकास हुए, लेकिन रेणु का गांव आज भी रेणु की रचना ‘परती परिकथा’ वाली बालूचर भूमि की तरह है। आज भी रेणु के लेखनी के किरदार फिजां में मौजूद हैं। चाहे वो सिरचन हो या हीरामन और फिर हीराबाई। इन्हें आज तक कोई नहीं भूल पाया।

Nepal Presidential Election: रामचंद्र पौडेल कौन हैं जो बनेंगे नेपाल के नए राष्ट्रपति, प्रचंड ने भी किया समर्थन, जानें किससे है मुकाबला

‘राजनेताओं ने रेणु के नाम का इस्तेमाल किया’

रेणु के नाम को भुनाने में प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक पीछे नहीं रहे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावी रैली के दौरान मंच से उसे स्मरण कर उनके संघर्ष का बखान किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो रेणु के घर औराही हिंगना तक जा पहुंचे। देशी खान-पान, भक्का, पटुआ और बथुआ के साग का स्वाद तक चखा। रेणु की पत्नी पदमा रेणु से आशीर्वाद प्राप्त कर बिहार के सियासत के सबसे ऊंचे पायदान तक पहुंचे। रेणु की लेखनी हिन्दी साहित्य में गांव-ज्वार इलाकों में बोली जाने वाली भाषाओं और किरदार पर निर्भर थी। सामाजिक समरसता का मिठास भी पैदा करने वाला थी। साहित्यकार हेमंत यादव ‘शशि’ और अनुज प्रभात बताते हैं कि रेणु की लेखनी दूरद्रष्टा वाली और सामाजिक समरसता वाली थी। समाज के निचले पायदान से लेकर ऊपरी पायदान वाले किरदार के साथ इंसाफ करने वाली उनकी लेखनी रही। किरदार के रूप में सिरचन हो या डॉ. प्रशांत या फिर कोई अन्य सबने अपनी छाप छोड़ी। सामाजिक विषमताओं का भी चित्रण लेखनी के माध्यम से बखूबी अंजाम देते थे। रेणु की शख्सियत ऐसी रही कि वह कभी मर नहीं सकते। आज जिले सहित प्रदेश और देश में रेणु जयंती के नाम पर कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। उनकी जयंती पर एनबीटी ऑनलाइन उन्हें नमन करता है।
राहुल कुमार ठाकुर, अररिया

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here