Home Bihar विपक्षी एकता की कवायद में क्या है नीतीश कुमार की कामयाबी का सूत्र, जानकर बीजेपी को भी बदलनी पड़ सकती है रणनीति

विपक्षी एकता की कवायद में क्या है नीतीश कुमार की कामयाबी का सूत्र, जानकर बीजेपी को भी बदलनी पड़ सकती है रणनीति

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विपक्षी एकता की कवायद में क्या है नीतीश कुमार की कामयाबी का सूत्र, जानकर बीजेपी को भी बदलनी पड़ सकती है रणनीति

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Opposition Politics: विपक्षी एकता की मुहिम में निकले नीतीश कुमार को शुरुआती सफलता मिल गई है। अब तक जिन नेताओं से वे मिले हैं, उनमें सभी ने उनकी इस काम के लिए सराहना की है। नीतीश की नजर बिहार,बंगाल, यूपी, झारखंड पर टिकी हैं, जहां लोकसभा की 178 सीटें हैं।

हाइलाइट्स

  • एकता के पहले प्रयास में नीतीश दिख रहे हैं सफल
  • च्ड के दावेदार कई, पर छवि नीतीश जैसी साफ नहीं
  • बिहार के पड़ोसी राज्यों से नीतीश को अधिक उम्मीद
  • बिहार, बंगाल, यूपी, झारखंड की 178 सीटों पर नजर
पटनाः बिहार के सीएम नीतीश कुमार विपक्षी एकता के प्रयास में मिल रही कामयाबी से गदगद हैं। उनकी पहली कोशिश कामयाब रही है। अब तक विभिन्न दलों के पांच प्रमुख विपक्षी नेताओं से उनकी मुलाकात और बातचीत हुई है। सभी की ओर से सकारात्मक उत्तर मिला है। आश्चर्यजनक ढंग से एकला चलने वाली ममता बनर्जी भी अब अपना इगो छोड़ने को तैयार हो गई हैं। अब यह जान लेना जरूरी है कि नीतीश कुमार अपनी कामयाबी का सूत्र कहां देख रहे हैं।

तीन राज्य घूम चुके नीतीश, नतीजा सकारात्मक

वैसे तो नीतीश कुमार ने विपक्षी नेताओं से मुलाकात का सिलसिला अब शुरू किया है, लेकिन इसकी आधारशिला सात महीने पहले ही रख दी गई थी, जब बिहार में महागठबंधन की सरकार बनते ही उन्होंने कांग्रेस की सीनियर लीडर सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। हफ्ते भर पहले नीतीश ने दिल्ली में कांग्रेस के ही मलिल्कार्जुन खरगे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी। लगे हाथ वह दिल्ली में सीपीएम लीडर सीताराम येचुरी और आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से मिल आए थे। दिल्ली से लौटने के बाद उन्होंने बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव से भी तूफानी तरीके से मुलाकात की।

185 सीटों वाले 5 राज्यों पर नीतीश का निशाना

नीतीश की रणनीति है कि इन रज्यों में जितनी सीटें हैं, अगर उन पर विपक्ष को कामयाबी मिल गई तो बीजेपी को समेटना आसान हो जाएगा। यूपी में लोकसभा की 80 सीटें हैं, बिहार में 40, बंगाल में 42, झारखंड में 14 और दिल्ली में 7 लोकसभा सीटें हैं। यानी 185 लोकसभा सीटों पर नीतीश कुमार की नजर है। यह अलग बात है कि इन सीटों में कितने पर विपक्ष को कामयाबी मिल पाएगी। दक्षिण के राज्यों में भी बीजेपी को विपक्ष से कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद है। विपक्ष को दक्षिण में जितनी कामयाबी मिलेगी, वह ऊपर से बोनस बतौर होगा।

नीतीश के कोआर्डिनेशन पर किसी को एतराज नहीं

दरअसल विपक्ष के ज्यादातर नेता सीबीआई-ईडी के शिकंजे में हैं। विपक्षी एकता के लिए खुल कर वे सामने नहीं आ रहे। उनके दागी करियर को देखते हुए सर्वमान्य होने की संभावना भी नहीं है। इसके ठीक उलट नीतीश कुमार अब तक बेदाग हैं। साफ कहें तो देश के विपक्षी चेहरों में नीतीश का फेस ही साफ सुथरा है। यही वजह है कि बात-बात पर बिदकने वाली ममता बनर्जी को नीतीश की पहल पर कोई एतराज नहीं है। वह इसमें बढ़-चढ़ कर मददगार भी बनना चाहती हैं। उन्होंने विपक्ष की अगली बैठक पटना में ही आयोजित करने की सलाह भी नीतीश को मुलाकात के दौरान दे डाली। सत्ता परिवर्तन के लिए जेपी आंदोलन की याद भी दिलाई।

नीतीश समन्वय का काम करेंगे, पीएम नहीं बनेंगे

सर्वमान्य चेहरा होने के बावजूद नीतीश कुमार पीएम का फेस नहीं बनेंगे। उन्होंने लगातार यह बात कही है और विपक्षी नेताओं से मुलाकात के दौरान भी वे पहले ही इस बात को स्पष्ट कर देते हैं। हालांकि विपक्ष में नीतीश कुमार से उपयुक्त कोई पीएम फेस अभी दिखाई भी नहीं दे रहा। इसमें दो बातें महत्वपूर्ण हैं। अव्वल तो उन पर भ्रष्टाचार या आर्थिक अपराध का कोई आरोप अब तक नहीं है। दूसरे वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में रह चुके हैं और लगातार 18 साल से बिहार के सीएम बने हुए हैं। नीतीश कुमार अगर विपक्ष के लिए पीएम फेस बन जाएं तो कम से कम नरेंद्र मोदी के खिलाफ यह आदर्श मुकाबला माना जाएगा। राहुल गांधी कांग्रेस जैसी पुरानी राष्ट्रीय पार्टी के नेता जरूर हैं, लेकिन उनका चेहरा भी आजमाया जा चुका है। अन्य नेताओं की दूसरे या अधिकतर राज्यों में स्वीकार्यता उतनी नहीं है, जितनी नीतीश कुमार की हो सकती है।
रिपोर्ट- ओमप्रकाश अश्क

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