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बिहार में महुआ के पेड़ों में आ रही कमी चिंता का विषय-विशेषज्ञ

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बिहार में महुआ के पेड़ों में आ रही कमी चिंता का विषय-विशेषज्ञ

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पटना: बिहार के गैर-वन क्षेत्रों में महुआ और खैर के पेड़ों की संख्या में गिरावट राज्य सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के लिए गंभीर चिंता का विषय बनती जा रही है। एक अनुमान के मुताबिक, महुआ और खैर के पेड़ों की आर्थिक अहमियत भी है और पिछले दस वर्षों में बिहार में गैर-वन क्षेत्रों में इनकी संख्या में 25 से 30 प्रतिशत तक की कमी आई है। बिहार राज्य जैव विविधता बोर्ड (बीएसबीबी) के सचिव के गणेश कुमार ने बताया कि राज्य के वन क्षेत्रों में महुआ और खैर के पेड़ बहुतायत में हैं, लेकिन पिछले दस वर्षों में हमने गैर-वन क्षेत्रों में इन दोनों पेड़ों की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की है।

खैर के पेड़ों की संख्या में कमी

गणेश कुमार के अनुसार राज्य में गैर-वन क्षेत्रों में महुआ और खैर के पेड़ों की संख्या में लगभग 25 से 30 फीसदी की गिरावट आई है। यह गंभीर चिंता का विषय है। पेड़ वन पारिस्थितिकी तंत्र के मुख्य घटकों में से एक हैं। हम गैर-वन क्षेत्रों में उनका संरक्षण और वृक्षारोपण सुनिश्चित करने के उपाय कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम जैव विविधता की समृद्धि को बनाए रखने के लिए लोगों को गैर-वन क्षेत्रों में इन दोनों पेड़ों को लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। राज्य की सभी सरकारी नर्सरियों में महुआ और खैर के पौधे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं।

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जैव विविधता को खतरा

बीएसबीबी के सचिव ने कहा कि हम इन पेड़ों की उपलब्ध संख्या का पता लगाने और राज्य में गैर-वन क्षेत्रों में उनकी संख्या में कमी आने के कारणों की पहचान करने के लिए एक अध्ययन करने पर भी विचार कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि ये दोनों पेड़ जमुई, बांका, नवादा, गया, रोहतास, कैमूर, पश्चिमी चंपारण और पूर्वी चंपारण के वन क्षेत्रों में बहुतायत में उपलब्ध हैं। दरभंगा, मधुबनी, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, बेगूसराय, कटिहार, अररिया, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर और पूर्णिया जिलों में गैर-वन क्षेत्रों में इनकी संख्या में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है।

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महुआ में औषधीय गुण

कुमार ने कहा कि महुआ के पेड़ को औषधीय गुणों का खजाना माना जाता है, जिसका इस्तेमाल कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जा सकता है। इसी तरह, खैर का पेड़ भी कई तरह से उपयोगी होता है। इससे प्राप्त कत्था न केवल शरीर के लिए एक दर्द निवारक उपाय के रूप में काम करता है, बल्कि अन्य रोगों के उपचार में इस्तेमाल होने वाली दवाओं में भी प्रयुक्त होता है। उन्होंने बताया कि कत्था प्लाइवुड के लिए ‘गोंद’ का एक महत्वपूर्ण घटक भी बनाता है। मछली पकड़ने के जाल और रस्सियों को बनाने में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

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