Home Bihar 'बिहार में नीतीश की खुद की पार्टी बिखरने लगी है, दिल्ली जाकर उनसे कुछ नहीं होगा'

'बिहार में नीतीश की खुद की पार्टी बिखरने लगी है, दिल्ली जाकर उनसे कुछ नहीं होगा'

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'बिहार में नीतीश की खुद की पार्टी बिखरने लगी है, दिल्ली जाकर उनसे कुछ नहीं होगा'

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पटना: यह सुनने में थोड़ा अजीब लग सकता है, लेकिन सच को स्वीकार करने से शायद ही कोई इनकार करे। नीतीश कुमार अपनी ही पार्टी को बिखरने से नहीं रोक पाते हैं तो वे विपक्ष को कैसे एकजुट कर पाएंगे ? जार्ज फर्नांडीस, शरद यादव, जीतन राम मांझी, प्रशांत किशोर, आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाहा कुछ ऐसे नाम हैं, जो कभी नीतीश के साथ रहे। बड़े सांगठनिक या विधायी पदों पर यानी पार्टी के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या मंत्री-मुख्यमंत्री रहे। पर, सबने समय-समय पर नीतीश से तंग आकर उन्हें बाय बोल दिया। अब वही नीतीश कुमार विपक्षी एकता के लिए नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे दस्तक देते फिर रहे हैं। शायद उम्र और औकात का असर है कि अपने बेटे समान राहुल गांधी के सामने उन्हें दंडवत की अदा में झुकना पड़ रहा है। राहुल के संस्कार भी देखिए कि बाप दाखिल नीतीश जी के हाथ जोड़े झुकने पर भी वे तन कर खड़े रहे। नीतीश जी अभिवादन करने नरेंद्र मोदी के सामने भी झुके थे, पर मोदी ने उतना ही झुक कर अभिवादन का जवाब भी दिया था।

बीजेपी और उसके समर्थक दल ले रहे होंगे मजा

नीतीश कुमार की इस दुर्दशा को देख कर बीजेपी का खुश होना स्वाभाविक है। इसलिए कि उसकी ही कब्र खोदने का बीड़ा नीतीश जी ने उठाया है। साथ-साथ उनको भी जरूर आनंद आ रहा होगा, जिन्हें नीतीश ने उनके बढ़ते कद के कारण बाहर का रास्ता दिखा दिया या जिन्हें बाहर जाने पर मजबूर कर दिया था कभी। शरद यादव और जार्ज फर्नांडीस तो इनकी हालत पर इतराने के लिए अब इस दुनिया में रहे नहीं, लेकिन आरसीपी सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के मन में जरूर लड्डू फूट रहे होंगे। इतरा तो प्रशांत किशोर उर्फ पीके भी रहे होंगे, जिन्होंने नीतीश की जीत तो पक्की कर दी थी, पर झटके में उन्होंने उन्हें बाहर कर दिया था। इस बार तो बिना पार्टी के अपना कैंडिडेट जिता कर पीके ने नीतीश जी के मुंह पर तमाचा भी जड़ दिया है।

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जीतन राम मांझी के मजा लेने का अलग अंदाज

जीतन राम मांझी ने तो नीतीश को चिढ़ाने-बिदकाने का नायाब तरीका अपनाया है। उनके एकता प्रयास को सांकेतिक चुनौती देने के लिए हड़बड़ी में मांझी जी ने दिल्ली की दौड़ ही लगा दी। इधर नीतीश कुमार कांग्रेस के राहुल, खरगे और अरविंद केजरीवाल से मिल कर मन ही मन इतरा रहे थे, उधर मांझी उसी दिन दिल्ली में बीजेपी से सांठ-गांठ में लगे थे। मांझी अगले ही दिन बीजेपी के चुनावी चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह से मिल कर बतिया भी आए। हां, इतना जरूर किया कि बाहर निकलते ही नीतीश कुमार को पीएम मटेरियल बता कर बूझो तो जानें की स्थिति में उन्हें डाल दिया। नीतीश को पहले से ही इसका अंदाजा रहा है। तभी तो पूर्णिया में हुई महागठबंधन की रैली में उन्होंने कहा था कि मांझी जी का मन भी इधर-उधर होते रहता है।

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राहुल के भारत जोड़ो जैसा नीतीश का दल जोड़ो

राहुल गांधी ढाई-तीन महीने भारत को जोड़ने के लिए भ्रमण पर निकले थे। चीजों को देखने का हर आदमी का नजरिया अलग होता है। उन्हें भारत टूटा या टूटता हुआ दिखा था या दिख रहा है। इसलिए कि अभी यात्रा अधूरी है। 138 साल पुरानी पार्टी के नए नेता के रूप में उनसे यह बरदाश्त कैसे होता। सो, निकल पड़े थे भारत को जोड़ने। भारत को उन्होंने ऐसा जोड़ा कि भारत को दो टुकड़ों में बांटने वाले विलायत ने उन्हें अपने यहां भाषण के लिए न्योत दिया। वहां वे भारत को लेकर ऐसा रोना रो आए, जैसे पंचइती करने तुरंत विलायती यहां पहुंच जाएंगे। वे भूल गए कि खुद अपने दल के लोगों का दिल नहीं जोड़ पाए तो भारत को जोड़ना कितना मुश्किल होगा। सचिन पायलट की नौटंकी तो उनके सामने हो रही है। अब तो नीतीश जी भी उनके अभियान में शामिल हो गए हैं। दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि राहुल देश जोड़ने के लिए घूम रहे थे तो नीतीश जी दलों को जोड़ने के लिए दर-दर घूम रहे हैं। समानता यह कि दोनों जोड़ने का ही काम कर रहे हैं।

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नीतीश दल जोड़ रहे थे, सुधाकर जहर उगल रहे थे

आरजेडी से अभी नीतीश कुमार की खूब छन रही है। बड़े भाई और दो प्यारे भतीजे जब उनके साथ हैं तो छनेगी क्यों नहीं। इस आदर-दुलार की तो बलैया लेनी ही चाहिए। खैर, भाई-भतीजों की पार्टी में वैसे तो कई अनमोल रतन हैं, लेकिन उनमें एक सबसे अलहदा हैं। जो अलहदा हैं, उनके पिता बिहार की एक ऊंची सियासी दुकान के बड़े अधिकारी हैं। इसलिए समय-समय पर वे अपनी ही सरकार के खिलाफ विष वमन में तनिक भी संकोच नहीं करते। वे जानते हैं कि उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। नीतीश जी को तो वे ठेंगे पर रखते हैं। शब्दकोश से नीतीश जी के लिए विशेषण के शब्द उन्होंने चुन-चुन कर खोजे हैं। एक-दो शब्द ही सुन कर आप समझ जाएंगे कि नीतीश जी के प्रति उनके मन में कैसा भाव है। नपुंसक, भिखमंगा जैसे विशेषण उसी अलहदा नेता ने काफी शोध के बाद नीतीश जी के लिए चुने हैं। वे अक्सर ऐसे नायाब विशेषणों से नीतीश को नवाजते रहते हैं। नीतीश जी कांग्रेस नेताओं से जब हंस-हंस कर बतिया रहे थे, तब सुधाकर सिंह उन्हें पल भर में पलटी मारने वाला साबित करने में मशगूल थे। नीतीश जी के तीन और सहयोगी हैं। उनमें एक को तुलसीदास और उनकी कालजयी रचना रामचरित मानस से ही चिढ़ है। दूसरे को सवर्णों से नफरत है। तीसरे को सेना पर ही शक है। नीतीश जी के एक पुराने साथी को तो राम रामायण के काल्पनिक पात्र ही लगते हैं। वे तो कथावाचक पंडितों से भी चिढ़ते हैं। इन्हीं सहयोगियों के सहारे नीतीश जी अरविंद केजरीवाल को भी जोड़ने गए थे, जो कामयाबी मिलने पर हनुमान मंदिर में पूजा करने जाते हैं। खैर, आगे-आगे देखिए, होता क्या !
आलेख- ओमप्रकाश अश्क (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। आलेख में वर्णित विचार उनके अपने हैं)

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