Home Bihar बिहार की राजनीति का यू-टर्न वाला दौर, जाति और जयंती के चक्रव्यूह में उलझी सियासत

बिहार की राजनीति का यू-टर्न वाला दौर, जाति और जयंती के चक्रव्यूह में उलझी सियासत

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बिहार की राजनीति का यू-टर्न वाला दौर, जाति और जयंती के चक्रव्यूह में उलझी सियासत

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ओमप्रकाश अश्क, पटना: राजनीति में सफलता के लिए पहले पार्टी की नीति, नेता की दलीय निष्ठा और उसके सेवा भाव को आवश्यक शर्तों में शुमार किया जाता था। अब राजनीति इवेंट बेस्ड बनती जा रही है। कभी महापुरुषों की जयंती मनाई जाती है, तो रमजान के मौके पर इफ्तार की दावत दी जाती है। अब तो भोज की राजनीति भी शुरू हो गई है। हालांकि राजनीतिज्ञों के भोज तो पहले भी होते रहे हैं, लेकिन उनमें सिर्फ नेता ही शामिल होते थे। अब नेता आम लोगों को भी भोज पर आमंत्रित करते हैं। मकर संक्रांति के मौके पर हिन्दू नेताओं के दही-चूड़ा भोज को ही अब तक लोग जानते आए हैं। अब तो चुनावों में या चुनाव की तैयारी के दौरान नेता भोज देने लगे हैं। पंचायत चुनावों में उम्मीदवारों के मीट-भात या मुर्गा-भात का आनंद उठाते आपने गांवों में जरूर देखा होगा। अब तो लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए बिहार के सत्ताधारी दल के एक बड़े पदधारी ने मीट-भात के भोज के सहारे जनता से जुड़ने की योजना बनाई है। आइए जानते हैं कि बिहार में कैसे राजनीति में इवेंट की एंट्री हो गई है।

महापुरुषों की जयंती के बहाने सियासत

महापुरुषों की जयंती के बहाने बिहार में सियासी गोटी बिठाने का काम नेता करते रहे हैं। विरोधियों पर अपनी भड़ास निकालने के लिए जयंती कार्यक्रमों का मंच नेताओं के लिए अनुकूल होता है। बिहार में तो महापुरुष काम से अधिक अब जाति से जाने-पहचाने जाते हैं। कर्पूरी ठाकुर नाई जाति के थे। इस जाति की आबादी बिहार में अधिक नहीं है। लेकिन पिछड़ों के लिए उन्होंने जो काम किया और उनके बीच आदरणीय बने, उसका फायदा उठाने में राजनीतिक पार्टियां बिहार में सक्रिय रहती हैं। बिहार के सीएम रहे और प्रखर समाजवादी कर्पूरी ठाकुर की जयंती पर हर दल की ओर से आयोजन किए जाते हैं। इसके जरिए पिछड़ों के प्रति सियासी दल हमदर्द बनने का दावा करते हैं। जगदेव प्रसाद की जयंती पर अब सिर्फ कुशवाहा जाति का कॉपीराइट नहीं रह गया है। राज्य सरकार भी जयंती समारोह आयोजित करती है। इस बार तो उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार से अलग होने के पहले जगदेव प्रसाद की जयंती का भव्य आयोजन किया। वहीं से उन्होंने नीतीश के खिलाफ कुशवाहा बिरादरी को खड़ा करने की कोशिश भी की। चौहरमल जयंती दलित समाज के लोग मनाते हैं। फिलहाल बिहार में चौहरमल जयंती का कॉपीराइट राम विलास पासवान के कुनबे के पास यानी चिराग पासवान और पशुपति पारस के पास है। कुशवाहा समाज सम्राट अशोक को अपनी ही बिरादरी का बता कर उनकी जयंती मनाता है। हालांकि लव-कुश समीकरण वाले नेता होने के कारण सीएम नीतीश कुमार भी अशोक जयंती के आयोजन में आगे रहते आए हैं।

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अंबेडकर जयंती पर सियासत की छाया

चुनाव नजदीक होने के कारण बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की जयंती तो बिहार की सियासत के लिए इस बार काफी महत्वपूर्ण रही। अपने-अपने स्तर पर हर दल ने उनकी जयंती मना कर दलितों के बीच संदेश देने का काम किया कि वे दलितों के हितैषी हैं। एक दूसरे को दलित विरोधी साबित करने से भी कोई नहीं चूका। जेडीयू और आरजेडी के साथ महागठबंधन के घटक दल खुद को दलितों का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने में लगे रहे तो बीजेपी कैसे पीछे रहती। बीजेपी ने कांग्रेस और लालू-राबड़ी को दलितों को ठगने वाला ठहरा दिया। बीजेपी के राज्यसभा सदस्य और बिहार के पूर्व डेप्युटी सीएम सुशील कुमार मोदी ने बताया कि लालू-राबड़ी के राज में कैसे दलितों पर अत्याचार हुए। उनके शासन काल में बिहार में दलितों के नरसंहार की कई घटनाएं हुईं। लाइन में खड़ा कर दलितों को गोलियों से भून दिया गया।

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कांग्रेस शासन में अंबेडकर का अपमान

मोदी की मानें तो कांग्रेस ने तो बाबा साहेब के अपमान में कोई कसर ही नहीं छोड़ी। बाबा साहेब अंबेडकर को विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार ने महत्व दिया। उन्हें भारत रत्न की उपाधि दी। कांग्रेस को तो बाबा साहेब को भारत रत्न देना कभी सूझा ही नहीं। कांग्रेस के जमाने में बाबा साहेब का चित्र तक संसद में नहीं लगा। आरजेडी के शासन वाले 15 साल में दर्जन भर नरसंहार हुए। लाइन में खड़ा कर दलितों को गोलियों से छलनी कर दिया गया। ऐसे लोग अंबेडकर जयंती मना कर उनका अपमान ही कर रहे हैं।

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भोज की राजनीति का बढ़ रहा प्रचलन

हिन्दू नेता मकर संक्रांति पर पहले दही-चूड़ा का भोज देते थे। लालू प्रसाद और राम विलास पासवान से लेकर बिहार के कई ऐसे बिहारी नेता रहे, जो दही-चूड़ा भोज का आयोजन करते थे। अब भी भोज होता है। लेकिन बदलते समय के साथ अब भोज की राजनीति ने मेन्यू भी बदल लिया है। अब तो इफ्तार की दावत भी दी जाने लगी है। इस बार रमजान के इस महीने के कुछ दिन सियासी इफ्तार पार्टियों ने बिहार की सियासत में तरह-तरह की चर्चाओं को जन्म दिया। लालकिले की आकृति वाले पंडाल में बैठ कर नीतीश ने अपने एक एमएलसी का आतिथ्य स्वीकारा तो नीतीश की दावत ठुकरा कर चिराग ने आरजेडी की इफ्तार पार्टी में शामिल होने का जोखिम उठाया। लालकिला वाला पंडाल और चिराग का राबड़ी देवी के आवास पर जाना सियासी चर्चा के केंद्र में रहा। सूचना अगर पक्की है तो जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने जनता से सीधे संवाद के लिए एक नायाब नुस्खा खोजा है। अब वे हर जिले में पब्लिक को मीट-भात का भोज देंगे। इसमें उन्हें कितनी कामयाबी मिलेगी, यह तो वक्त बताएगा।

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