Home Bihar नीतीश की टॉर्च और लालू का नक्शा लेकर चल पड़े हैं तेजस्वी, जानिए सियासी सफर का हिडेन एजेंडा

नीतीश की टॉर्च और लालू का नक्शा लेकर चल पड़े हैं तेजस्वी, जानिए सियासी सफर का हिडेन एजेंडा

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नीतीश की टॉर्च और लालू का नक्शा लेकर चल पड़े हैं तेजस्वी, जानिए सियासी सफर का हिडेन एजेंडा

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के द्वारा रिपोर्ट किया गया रमाकांत चंदन | द्वारा संपादित ऋषिकेश नारायण सिंह | नवभारतटाइम्स.कॉम | अपडेट किया गया: 2 मार्च 2023, दोपहर 1:18 बजे

Bihar Political News in Hindi : तेजस्वी यादव धीरे-धीरे उस राह पर बढ़ रहे हैं, जिस राह के मुसाफिर उनके पिता लालू यादव भी रह चुके हैं। तेजस्वी यादव अब राष्ट्रीय स्तर पर भी खुद को स्थापित करने की कोशिश करते दिख रहे हैं। आदित्य ठाकरे से मुलाकात और अब तमिलनाडु दौरा उसी की बानगी है।

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पटना: वैसे तो राज्य के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पहचान के मोहताज नहीं। पर अभी इनकी पहचान में व्यक्तिगत उपलब्धि के साथ पिता लालू प्रसाद यादव की भी राजनीतिक उपलब्धियों का रंग चढ़ा है। वर्तमान राजनीतिक परिवेश में यह जरूरी है कि लंबी राजनीति का हिस्सा बनना हैं तो अपनी पहचान को और भी समृद्ध किया जाए। साथ ही देश की राजनीति में एक बड़ा फैक्टर के साथ उभरे। एम के स्टालिन के 70 वें जन्मदिन पर तेजस्वी यादव का जाना को उसी तरह के प्रयास के चश्मे से देखा जाना चाहिए। हालांकि ये दौरा उस समय में है जब तमिलनाडु में बिहारियों पर हमले किए जा रहे हैं।

कुछ अलग दिखने का प्रयास जरूरी भी है

उप मुख्यमंत्री की दूसरी पाली में तेजस्वी यादव बदले-बदले नजर आ रहे हैं। मसलन, एक कार्यक्रम में दो फीता काटे जाने की नई परंपरा शुरू करने के पीछे का मतलब साफ है। खास कर तब जब नीतीश कुमार सत्ता की बागडोर तेजस्वी यादव को सौंपने की बात कह चुके हैं तो सत्ता के उद्घाटन, समापन जैसे समारोह में सक्रियता दिखाना जरूरी भी है। एक अन्य कार्यक्रम में उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का लेट पहुंचना और नीतीश कुमार का इंतजार करना भी आइडेंटिटी को जगजाहिर करने की दिशा में एक कदम ही है। सदन में मुख्यमंत्री के रहते जिम्मेवारी स्वीकारना, की गई गलतियों को स्वीकार करना भी अपनी अलग पहचान स्थापित करने की दिशा में उठाया गया कदम है।
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एम के स्टालिन के जन्मदिन पर जाना

तेजस्वी यादव का एम के स्टालिन के जन्मदिन पर जाना भी इसी देश व्यापी पहचान बनाने की दिशा में बढ़ा एक कदम है। जन्मदिन के इस मौके पर आए अखिलेश यादव हों या मल्लिकार्जुन खड़गे, सबसे मिलकर अलग-अलग बात करने को ले कर जारी तस्वीर भी उसी राजनीतिक परिपक्वता की कहानी कह रही है। राज्य में सिमट कर राजनीति करने की आकुलता से देश स्तर पर फैलाव वाली राजनीति ज्यादा दिख रही है। वैसे भी जब भाजपा के विरोध राजनीति करनी है तो तमाम भाजपा विरोधी दलों से समन्वय रखना राजद के लिए वक्त का तकाजा भी है। कुछ माह पहले के सी आर के यहां जाना और भाजपा के विरुद्ध विपक्षी एकता की मुहिम की शुरुआत करना भी अपनी अलग पहचान बनाना ही है। बाद में केसीआर को बिहार बुलाना और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलवाना भी इसी अलग पहचान की कवायद ही थी।
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आदित्य ठाकरे का बिहार आना

आदित्य ठाकरे का बिहार आना और पूर्व मुख्य राबड़ी देवी के आवास पर शिवसेना की महिला नेता प्रियंका चतुर्वेदी और अनिल देसाई के साथ तेजस्वी यादव की बैठक भी उसी देश व्यापी राजनीति का हिस्सा बनने की ही पहल थी। बाद में आदित्य ठाकरे को ले कर तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलना भी राज्य की राजनीति से ऊपर उठकर देश की राजनीति से जुड़ना ही तो था। तेजस्वी यादव की यह पहल, राजद सुप्रीमो लालू यादव की राजनीति से थोड़ा हट कर चलना भी, अलग पहचान बनाता है। लालू प्रसाद हमेशा बाला साहेब ठाकरे के विरुद्ध बोलते रहे थे।
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हमउम्र राजनीति के परिपेक्ष्य भी देखना होगा

देश की राजनीति में अब नए जेनरेशन की भी दखल शुरू हो चुकी है। नीतीश कुमार खुद भी एक उम्र के पड़ाव पर पहुंच चुके हैं। इस खास स्थिति में नई पौध के नेताओं को नई पौध के नेता ही ज्यादा समझ सकते हैं। क्या पता, नीतीश कुमार की सहमति के बाद तेजस्वी यादव नए नेताओं के साथ गलबहियां डाल कर बात कर सकते हैं। भाजपा के बढ़ते अधिपत्य के विरोध में कारगर पहल की यह बानगी भी हो सकती है।
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क्या कहते है भाजपा विशेषज्ञ ?

भाजपा के प्रवक्ता डा रामसागर जी का मानना है कि नीतीश कुमार की राजनीति आज के नेता के पिता की साथ होती रही है। इनके समय के लोग धीरे धीरे राजनीति से अलग हो बैठे है। नए नेताओं से बातचीत करने में नीतीश कुमार कंफर्ट भी नहीं है। और ऐसे भी नीतीश कुमार अब तेजस्वी को आगे बढ़ा रहे हों तो विपक्षी एकता की मुहिम की दिशा में बढ़ा एक कदम भी कहा जा सकता है।

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