Home Bihar दलितों की हत्या तो नौकरी, अफसर की हत्या पर जेल से छूट..वोट के लिए कानून की कुंडली बदल रहे नीतीश कुमार

दलितों की हत्या तो नौकरी, अफसर की हत्या पर जेल से छूट..वोट के लिए कानून की कुंडली बदल रहे नीतीश कुमार

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दलितों की हत्या तो नौकरी, अफसर की हत्या पर जेल से छूट..वोट के लिए कानून की कुंडली बदल रहे नीतीश कुमार

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लेखक आलोक कुमार | नवभारतटाइम्स.कॉम | अपडेट किया गया: 27 अप्रैल 2023, सुबह 9:46 बजे

Anand Mohan Released from Saharsa Jail : नीतीश कुमार जात के दलदल में धंसते जा रहे हैं। तेजस्वी यादव के दबाव में। निशाना लोकसभा चुनाव है और पिछड़ों पर भाजपा की पकड़ मजबूत है। तो किसी तरह से नया समीकरण बनाने की चुनौती है चाहे इसके लिए कानून क्यों न बदलना पड़े। आनंद मोहन के लिए यही किया जा रहा है।

आनंद। मोहन
नीतीश कुमार ने आनंद मोहन के लिए कानून की कुंडली बदल दी

हाइलाइट्स

  • आनंद मोहन बना सियासत का स्टार
  • दलित अफसर के हत्यारे पर नीतीश का प्यार
  • आनंद मोहन की रिहाई के लिए कुछ भी
  • नीतीश ने बदल दी कानून की कुंडली
  • कोसी के डॉन के आगे नतमस्तक सियासत
  • समझिए क्यों जरूरी है आनंद मोहन
पटना : संधि नहीं अब रण होगा, संघर्ष महाभीषण होगा। 17 साल की उम्र में बंदूक की नाल थामने वाले आनंद मोहन ने ये नारा 1994 में दिया था। क्यों दिया इसका जिक्र आगे करेंगे। फिलहाल 14 साल की जेल के बाद बाहर आ गए हैं और सहरसा में राजपूत वीर के लिए जश्न मन रहा है। शिवहर से सहरसा तक राजपूत वोट बैंक पर पकड़ रखने वाले इस बाहुबली के खिलाफ पहली एफआईआर तो 1978 में ही दर्ज हो गई थी लेकिन फांसी से बचते-बचते उम्र कैद मिली जी कृष्णैया की हत्या के बाद। दलित आईएएस कृष्णैया को भूमिहार डॉन छोटन शुक्ला के जनाजे में चींटी की तरह पीस दिया गया। बेतहाशा भीड़ में किसी ने छोटन के शार्प शूटर भाई भुटकुन को कहा.. देखता क्या है फायर झोंक। उकसाने वाला ये शख्स आनंद मोहन निकला। हत्या के दोषी ने सहरसा जेल से गांधी पर तीन किताब लिखी हैं और अब पूरी कायनात उन्हें पाक-साफ बताने पर आमादा है। सत्ता की सड़ांध का आलम ये है कि दलित नेता जीतनराम मांझी को लगता है आनंद मोहन को फंसा दिया गया था। पर हैरत तो सुशासन बाबू पर होती है। क्राइम पर जीरो टोलरेंस वाले सीएम नीतीश कुमार ने तो आनंद मोहन की जल्दी रिहाई के लिए कानून की कुंडली ही बदल दी।

आईएएस एसोसिएशन आनंद मोहन पर

आनंद मोहन की रिहाई के विरोध में आईएएस एसोसिएशन ने बयान जारी किया है


नीतीश का यू -टर्न
बिहार जेल मैनुअल 2012 की धारा 48 (1) को विलोपित कर दिया गया। इसमें ये लिखा था कि सरकारी नौकर की हत्या करने वाले को आजीवन कारावास में किसी तरह की छूट नहीं मिलेगी। लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। एक हत्यारे के लिए इतना मरहम कहां से लाए नीतीश कुमार? ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने जनवरी, 2023 में एक रैली में ऐलान कर दिया था कि वो आनंद मोहन को जल्दी निकालने का जुगाड़ भिड़ा रहे हैं। 17 साल में बिहार को बदलने वाले नीतीश का चेहरा इतना विद्रूप हो जाएगा, समझ में नहीं आता। जिसने बिहारियों के चेहरे पर सड़कों की जैसी चमक और गांव-खलिहान से अंधियारा दूर कर रहे बल्ब की तरह चमक पैदा की थी, वो विकास पुरुष किस दलदल में फंसा हुआ दिखाई दे रहा है। ठीक है जाती जिंदगी और सियासत में परिस्थितियां बदलती हैं। आप ठहरते हैं। सोचते हैं। फिर आगे बढ़ते हैं। लेकिन ये शख्स अचानक यू-टर्न लेकर पीछे क्यों चल पड़ा है? कानून बदलकर वोट हासिल करने का तरीका नीतीश अपनाते रहे हैं। उन्होंने ये भी कानून बनाया कि अगर दलितों की हत्या होती है तो उनके परिवार के सदस्य को नौकरी दी जाएगी। इससे हत्याएं और बढ़ गईं। आंकड़े देख लीजिएगा। शराबबंदी कानून इसलिए बना कि आधी आबादी बिना जात-पात देखे उनको वोट करे।

कानून बदलकर वोट हासिल करने का तरीका नीतीश अपनाते रहे हैं। उन्होंने ये भी कानून बनाया कि अगर दलितों की हत्या होती है तो उनके परिवार के सदस्य को नौकरी दी जाएगी। इससे हत्याएं और बढ़ गईं। आंकड़े देख लीजिएगा। शराबबंदी कानून इसलिए बना कि आधी आबादी बिना जात-पात देखे उनको वोट करे।

आलोक कुमार

नीतीश की सफेदी
ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने कभी बाहुबलियों के समर्थन से सरकार बनाना मुनासिब नहीं ठहरा था। आपको याद करा दूं सन 2000 का विधानसभा चुनाव। नीतीश कुमार बहुमत से कुछ दूर थे। और तब पटना का बेऊर जेल सियासत के केंद्र में आ गया था। मोकामा का ठेकेदार अपराधी सूरजभान, पीरो का सुनील पांडे, बनियापुर का धूमल, राजन तिवारी, रामा सिंह, मुन्ना शुक्ला सब लोकतंत्र के मंदिर पहुंचे थे और नीतीश को समर्थन देने के लिए तैयार थे। उधर लालू के जंगलराज से बिहार के बचाने के लिए नीतीश कुमार अपनी सफेद कमीज गंदी करने पर राजी हो रहे थे। लेकि दागियों से खुद डील करने के खिलाफ रहे। अंत में ये जिम्मा बिहार भाजपा के पितामह कैलाशपति मिश्र ने उठाई और वो बेऊर जेल के भीतर जाकर विधायक बने अपराधियों से डील कर आए। सूरजभान की अगुआई में 12 बाहुबलियों ने विधानसभा के पहले दिन नीतीश को गोद में उठा लिया। लेकिन नीतीश ने वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया। कहा जाता है कि वो अपराधियों के समर्थन से सरकार चलाने के मूड में नहीं थे।

आनंद मोहन

आनंद मोहन रिहा हो गए हैं

जात पर घमासान
इसमें कोई शक नहीं कि आनंद मोहन हों या नीतीश कुमार, निकले जातीय संघर्ष से ही। नब्बे के दशक में लालू ने जब भूरा बाल साफ करो का नारा दिया तो आनंद मोहन सवर्णों के नायक थे। परिस्थितियां वैसी थीं। अगड़े अचानक लालू राज में पिसे हुए फील करने लगे और रॉबिनहुड छवि वाले अपराधियों में उन्हें संरक्षक दिखाई देने लगा। यही हाल नीतीश कुमार का था। उनका लव-कुश लालू के यादववाद में पिस रहा था। तो नीतीश भी कुर्मी रैली के सहारे आगे बढ़े। उधर आनंद मोहन की बीवी लवली ने 1994 में लोकसभा उपचुनाव जीता। आनंद मोहन ने बिहार पीपुल्स पार्टी बनाई लेकिन 1995 में लालू के और मजबूत होने पर आनंद मोहन समता पार्टी में चले गए और 1996 में सहरसा से सांसद बने। जेल के अंदर रहते हुए। जॉर्ज फर्नांडिस की तरह तस्वीर भी खिंचवाई। निजी आर्मी से ताल्लुक भी जारी रहा। लालू के मुसलमान-यादव समीकरण के खिलाफ नीतीश और भाजपा ने जो समीकरण बनाया उसमें सवर्णों की भूमिका खास रही।

anandmohan.giriraj

आनंद मोहन पर भाजपा कन्फ्यूज है

किसके फेर में नीतीश
दो बार की कुट्टी के बाद नीतीश आज तेजस्वी के सहारे सियासत कर रहे हैं। तो जातीय समीकरण भी देखना है। कभी अनंत सिंह के गले लगने वाले नीतीश अब इतने बदल गए हैं कि सत्ता के लिए संस्कारों को स्वाहा करना सबसे आसान लगने लगा है। अनंत सिंह तो बानगी है। 2019 में महागठबंधन की सरकार थी तो अनंत सिंह के घर पर रेड में हथगोले और न जाने क्या क्या मिला। जब भूमिहार डॉन आरजेडी में आ गया और नीतीश ने भी पाला बदल लिया तो क्या होता है। वो अनंत की पत्नी के लिए वोट मांगते हैं। इस यू-टर्न से घिन आती है लेकिन सियासत की सच्चाई से कौन मुंह मोड़ सकता है। अब जान लीजिए आज अनंत की जय-जय क्यों कर रहे हैं नीतीश। वो जब भाजपा के साथ थे तभी मुजफ्फरपुर की बोचहां सीट से भगवाधारी बेबी कुमारी हार गई। आरजेडी कैंडिडेट भूमिहारों के प्रचंड बहुमत से जीत गया। तब भीतर ही भीतर नीतीश खूब खुश हुए थे। कहीं न कहीं 2020 के चुनाव में भितरघात के घाव पर मरहम लगा। और अब जब तेजस्वी के साथ हैं तो राजपूत और भूमिहारों का एमवाई से मिलन कराने की आस जगी है। इसीलिए तेजस्वी परशुराम जयंती और नीतीश महाराणा प्रताप के कार्यक्रम में देखे जाते हैं। अब भाजपा भूमिहारों से चोट खाने के बाद गलती सुधार की प्रक्रिया में है तो रिस्क लेना नहीं चाहती। इसलिए आनंद मोहन कि रहाई का विरोध कैसे करे। बीजेपी इस मुद्दे पर सबसे कन्फ्यूज पार्टी के तौर पर उभरी है। आनंद मोहन एक भूमिहार डॉन की हत्या के जनाजे में था जब आईएएस की प्रतिक्रिया में हत्या हो गई तो गिरिराज सिंह जैसे भूमिहार नेता भी कैसे विरोध करें। पता चला आर-बी फैक्टर खिसका तो लेने के देने पड़ जाएंगे। इसलिए कोशी के डॉन के आगे सब नतमस्तक हैं।

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