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अटकलों का बाजार गरम
पूर्व मुख्यमंत्री मांझी ने हालांकि किसी भी तरह की अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की। मांझी ने कहा कि उन्होंने कुमार के साथ बने रहने की शपथ ली है। भाजपा के साथ हाथ मिलाने की किसी भी संभावना को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि उसने उनके जैसे छोटे दलों के अस्तित्व के खिलाफ बोला है। दलित नेता मांझी के बेटे राज्य में राजद-जद (यू)-कांग्रेस और वामपंथी दलों के महागठबंधन की सरकार में मंत्री हैं।
अमित शाह से मिले मांझी
मांझी की शाह से मुलाकात उनकी पार्टी की उस मांग के मद्देनजर हुई जिसमें दशरथ मांझी को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किए जाने की बात सामने आई थी। दशरथ मांझी ने दो दशक में पहाड़ों को खोदकर सड़क बना दी थी। उनकी इस उपलब्धि पर एक फिल्म भी बनी है। शाह के साथ अपनी बैठक के बाद, वह नीतीश से मिलने भी पहुंचे ताकि ऐसी किसी भी धारणा को दूर किया जा सके कि वह फिर से ‘यू-टर्न’ ले सकते हैं। भाजपा 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बिहार में छोटे दलों को साधने में जुटी हुई है।
मांझी बदले-बदले से हैं!
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जद(यू) की करारी हार के बाद नीतीश कुमार द्वारा मुख्यमंत्री पद के लिए चुने गए मांझी ने 2015 में जब कुमार को कुर्सी सौंपने की बात आई थी तो बगावत कर दी थी और भाजपा से हाथ मिला लिया था। वह 2019 के लोकसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा थे। इस चुनाव को जद (यू) और भाजपा ने एक साथ लड़ा था। बिहार के कुछ हिस्सों में ‘मांझी’ समुदाय में जीतन राम मांझी का खासा प्रभाव है।
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