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बेतिया. बिहार का वाल्मीकि टाइगर रिजर्व इन दिनों विलुप्त होते गिद्धों का आशियाना बना हुआ है. गनौली, मदनपुर, हरनाटाड़ वन क्षेत्र और दोन क्षेत्र से गुजरी भपसा और झीकैरी नदियों के पाट पर तीन-चार दर्जन गिद्धों ने डेरा डाल रखा है. बताया जा रहा है कि करीब ढाई दशक के बाद गिद्ध वीटीआर को अपना ठिकाना बना रहे हैं. मृत जानवरों के रूप में भोजन व ऊंचे पेड़ इन गिद्धों के बेहतर आशियाना साबित हो रहे हैं. यही कारण है कि नेपाली क्षेत्र से गिद्ध यहां पहुंच रहे हैं. वीटीआर प्रशासन इसे शुभ संकेत मान रहा है. जंगल से सटे गांव के लोग भी गिद्धों को देखकर काफी प्रसन्न हैं.
वीटीआर में देखे गए दो दर्जन से अधिक गिद्ध
बगहा दो प्रखंड के चम्पापुर गनौली, कटहरवा, महुअवा के दीपनारायण प्रसाद, महेश्वर काजी, मनबहाली महतो, दुर्गा शंकर महतो बताते हैं कि ढाई दशक पहले यहां एक-दो गिद्ध ही दिखाई देते थे. लेकिन इसके बाद गिद्ध पूरी तरह से विलुप्त होने लगे.
हालांकि पिछले एक साल में गिद्धों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. रविवार की दोपहर गनौली वनक्षेत्र से होकर गुजरी छोटी भापसा नदी के पाट पर दो दर्जन से अधिक गिद्ध वीटीआर प्रशासन को दिखे. वीटीआर वन प्रमंडल दो के डीएफओ डॉ. नीरज नारायण ने बताया कि गिद्धों के आकलन व निगरानी के लिए सहायक वन संरक्षक अमिता राज, गनौली के रेंजर महेश प्रसाद को निर्देश दिए गए हैं.
रख-रखाव के लिए मंत्रालय को भेजा गया प्रस्ताव
कई सालों के बाद वीटीआर में बड़ी संख्या में गिद्धों को देखा गया है. गिद्धों के संरक्षण और रख-रखाव के लिए राज्य वन मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा गया है. जानकारी के मुताबिक, प्रस्ताव में अधिवास क्षेत्र बनाने की बात है. इसकी स्वीकृति मिलते ही काम शुरू कर दिया जाएगा.
गिद्धों के विलुप्त होने की यह है वजह
बताया जाता है कि पशुओं में दर्द की दवा के रूप में डायक्लोफेनिक का इस्तेमाल किया जाना गिद्धों की संख्या में गिरावट का मुख्य कारण है. जब मरे पशुओं को गिद्धा खाता है, तो इस दवा का असर सीधे किडनी पर पड़ता है, इससे उसकी मौत हो जाती है। इसे देखते हुए इस दवा के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दी गई है. इसके अलावा फसलों में कई कीटनाशी दवाओं का प्रयोग भी मुख्य कारण है.
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