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यह जानकारी वॉर्ड में जीते सभासदों या पार्षदों के अलावा नगर निगमों में मेयर और नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में अध्यक्ष पदों के लिए भी देनी होगी। जिला अधिकारियों से मांगे गए इस ब्योरे को शहरी निकाय जुटा रहे हैं। जल्द इसके संबंध में रिपोर्ट आयोग को सौंपे जाने दावा किया जा रहा है। सूत्र बताते हैं कि आयोग मार्च तक इस रिपोर्ट को फाइनल करके ओबीसी आरक्षण का प्रतिशत तय करने की सिफारिश करने की तैयारी कर रहा है।
रिपोर्ट तैयार करने में निकायों का छूट रहा पसीना
साल 1995 के बाद से हुए शहरी निकायों के चुनाव की रिपोर्ट तैयार करने में शहरी निकायों को पसीने छूट रहे हैं। दरअसल, कई ऐसे शहरी निकाय हैं, जिन्होंने इस तरह के अभिलेख सुरक्षित नहीं रखे हैं, जिनमें जीते हुए प्रतिनिधियों के जाति संबंधी आंकड़े हों। इसकी वजह यह है कि शहरी निकायों के चुनाव में ओबीसी प्रत्याशियों की सीट अलग से आरक्षित होती है।
ऐसे में अनारक्षित सीटों पर जीतने वाला उम्मीदवार किस जाति का है, यह जानकारी निकायों के लिए अनुपयोगी होती थी। ऐसे में ब्योरे के न होने से निकायों की दिक्कतें बढ़ रही हैं। कई शहरी निकाय राज्य निर्वाचन आयोग से रिपोर्ट निकालकर समस्या का समाधान तलाशने और रिपोर्ट बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
…तो घटेगा आरक्षण प्रतिशत!
शहरी निकायों में ओबीसी आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने साफ कहा था कि यह राजनीतिक प्रतिनिधित्व का आरक्षण है। यह नौकरी और शिक्षा से अलग है। राजनीतिक भागीदारी का आकलन किया जाना चाहिए। अनारक्षित सीटों पर ओबीसी प्रत्याशियों की जीत से इसी का आकलन किए जाने का प्रयास हो रहा है।
सूत्र बताते हैं कि जिन शहरी निकायों में अनारक्षित सीटों पर जीते ओबीसी उम्मीदवारों की संख्या में इजाफा होगा, वहां आरक्षण का प्रतिशत 27 से कम रह सकता है। वजह है कि अनारक्षित सीटों पर ओबीसी प्रत्याशियों की जीत से उन शहरी निकायों में उनकी राजनीतिक स्थिति के सशक्त होने का आकलन हो सकता है।
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