Home National News सीमा का असीम सपना: जानें एक पांव के सहारे स्कूल तक का सफ़र हर रोज क्यों तय करती है एक बच्ची?

सीमा का असीम सपना: जानें एक पांव के सहारे स्कूल तक का सफ़र हर रोज क्यों तय करती है एक बच्ची?

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सीमा का असीम सपना: जानें एक पांव के सहारे स्कूल तक का सफ़र हर रोज क्यों तय करती है एक बच्ची?

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बिहार की दिव्यांग लड़की सीमा हर रोज एक पैरों के सहारे स्कूल तक का सफ़र तय करती है. उसे शिक्षक बनना है, जाने सीमा की प्रेरक कहानी.

अपडेट किया गया: 26 मई 2022 14:11 IST

सीमा की प्रेरक कहानी

सीमा की प्रेरक कहानी

सीमा की प्रेरक कहानी: ‘’कौन कहता है आकाश में सुराख़ हो नहीं सकता, जरा तबियत से पत्थर तो उछालो यारो’’ इस कहावत को चरितार्थ करने की तबियत रखती है बिहार के जमुई जिले के एक छोटे से गांव की बच्ची सीमा. मैं पढ़ना चाहती हूं. आगे बढ़ना चाहती हूं. टीचर बनना चाहती हूं. सबको पढ़ाना चाहती हूं. पापा बाहर काम करते हैं, मम्मी ईंट भट्टे में काम करती हैं. हां, ईंट पारती हैं. दोनों पढ़े लिखे तो नहीं हैं लेकिन….  सीमा के ये शब्द किसी को भी ये बताने के लिए काफी है कि वो जीवन में कुछ कर गुजरने का कितना जज्बा रखती है. सीमा की ये कहानी साधारण नहीं, असाधारण है. क्योंकि बता दें कि सीमा दिव्यांग है, लेकिन उसका ये हौसला सबको प्रेरित करने वाली है. एक पैर को गवा चुकी बिहार की ये लड़की कुछ बनने का सपना लिए स्कूल तक की दूरी बिना किसी सहारे के उछल-उछल कर चलते हुए तय करती है.

यानी गरीबी की इतनी मार कि ट्राईसाइकिल भी नसीब नहीं, लेकिन जज्बे की उड़ान इतनी ऊँची की आसमान भी क़दमों में झुक जाए. सीमा नहाने, तैयार होने से लेकर पगडण्डीयों के सहारे स्कूल तक का सफ़र बिना किसी के सहारे तय करती है. सीमा को बस एक ही चीज इतना उर्जावान बनाती है, जो है सीमा का जज्बा, कुछ कर गुजरने का, मंजिल तक पहुचंने का.

इस दिव्यांग बच्ची सीमा ने दुर्घटना में एक पैर खो दिया था, लेकिन दुर्घटना ने उसके हौसलों को और भी मजबूत बना दिया. इस लड़की का विडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. विडियो वायरल होने के बाद कुछ हाथ मदद के लिए भी आये, जिनमें एक नाम जमुई के डीएम अवनीश कुमार का नाम आता है. जिन्होनें तुरंत इस लड़की को ट्राईसाइकिल दिया.

बिहार के जमुई जिले के खैरा प्रखंड के फतेहपुर गांव की निवासी  दिव्यांग छात्रा सीमा आज सबके लिए मिशाल बन गयी है.

सीमा को पैर खो देने जैसे बड़े हादसे भी सीमा में नहीं बाँध पायी, बल्कि सीमा के सपने आज असीम हो गये हैं.  सीमा जीवन में पढ़ लिखकर एक  काबिल टीचर बनना चाहती है. सीमा महादलित समुदाय से आती है. सीमा के माता-पिता मजदूरी करते हैं. उनके पिता खीरन मांझी बाहर दूसरे प्रदेश में मजदूरी करते हैं. सीमा के पांच भाई-बहन हैं. लेकिन सीमा अभी तक किसी पर बोझ नहीं बनी. सीमा हर दिन 500 मीटर पगडंडियों पर चलकर स्कूल आती-जाती है.

सीमा की ये कहानी सबके दिल को छू लेने के साथ-साथ सबके लिए प्रेरणादायी है.

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