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सबसे पहले साल 2012-13 में ऐसा मामला सामने आया था। 2012 से अगले तीन वर्षों के दौरान चावल मिल मालिकों ने 1573 करोड़ के 74 लाख टन से अधिक के धान के बदले चावल नहीं दिया। हालांकि नीलाम बाद के बाद 349 करोड़ की वसूली हुई। राज्य के 1400 से अधिक मिल मालिकों के खिलाफ सीआईडी जांच कर रही है। अब तक 280 सरकारी कर्मियों पर कार्रवाई हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस घोटाले में अधिकारियों की संलिप्तता की जांच का आदेश दिया था। इसके बाद सीआईडी के एडीजी ने अधिकारियों को भी आरोपी बनाने का निर्देश दिया। इस पर अमल करते हुए तत्कालीन जिला प्रबंधक संजय प्रियदर्शी की प्रोन्नति रोक दी गई। प्रियदर्शी पर आरोप है कि 2012-13 में राइस मिलों को धान देकर सरकार को 30.69 करोड़ से अधिक की क्षति पहुंचाई। बंद राइस मिलों को धान पहुंचाया गया। इस मामले में जिले के तीन सीआई पर भी राशि गबन करने की पुष्टि हुई। अब सीआई से वसूली का आदेश दिया गया है।
‘नहीं बच पाएंगे मुजफ्फरपुर के घोटालेबाज’
वहीं, पूरे मामले को लेकर बिहार राज्य खाद्य आयोग के अध्यक्ष विद्यानंद विकल ने कहा कि मामला सरकार के संज्ञान में है। बिहार राज्य खाद्य आयोग ने इसे लेकर एफआईआर भी दर्ज कराई है। सीआईडी इसकी जांच कर रही है। बिहार की नीतीश सरकार घोटालेबाजों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रही है। कोई कितना भी बड़ा रसूखदार हो, बचेगा नहीं।
‘सरकारी की पैक्स पॉलिसी में ही गड़बड़ी’
कटरा के किसान अशोक कुमार शर्मा बताते हैं कि जब किसान की फसल तैयार होती है, तब फसल की खरीदारी शुरू नहीं होती है। दो महीने या तीन महीने बाद खरीदारी शुरू की जाती है। नवंबर-दिसंबर में धान की फसल तैयार होती है, जबकि जनवरी-फरवरी में धान की खरीदारी होती है। किसान जब गेहूं की पटवन करते रहते हैं, तब पैक्स (Primary Agricultural Credit Society) के ओर से धान खरीद की शुरुआत की जाती है। पैक्स अध्यक्ष के साथ कुछ किसानों की टोली होती है, जिनके नाम पर कारोबारियों से धान खरीदकर का सरकारी कोरम को पूरा किया जाता है। कुछ किसानों से धान अगर खरीदा भी जाता है तो उन्हें प्रति क्विंटल पांच से दस किलो धान में गंदगी और ढुलाई के नाम पर पैसे काट लेते हैं। अशोक शर्मा आगे बताते हैं कि मुजफ्फरपुर की स्थिति ये है कि कुछ ही किसानों के खाते में पैसा आता है। शेष किसानों को नगद पैसा दिया जाता है। जिले के दो प्रतिशत किसान भी सरकारी मानदंड को पूरा नहीं करते।
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