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मुज़फ़्फ़रपुर जिले में मछली पालन को लेकर लोगों में काफी आकर्षण देखा जा रहा है। जिले के लोगो मे मछली उत्पादन को लेकर आत्मनिर्भरता देखी जा रही है। जिला मत्स्य कार्यालय की रिकॉर्ड माने तो मछली उत्पादन और मांग के बीच महज डेढ़ एमटी का ही फासला बचा हुआ है। डेढ़ एमटी का फासला बाट दिया जाए तो मुजफ्फरपुर मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकता है।
जानकारी के अनुसार, जिले में मछली उत्पादन की क्षमता 44.80 एमटी है। इसमें वर्तमान में 35.80 (एमटी) उत्पादन हो रहा है। हाल के समय में मछली की मांग 37. 30 एमटी है। इसमें बाहर से 1.50 एमटी मछली आयात की जा रही है।
हर रोज जिले के लोग 37.30 एमटी मछली खाते है। इसमें अपने पोखर, तालाब व नदी से 35.80 एमटी मछली का उत्पादन होता है। पूर्व में 20 टन आंध्र की मछली पर जिले को निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन अब धीरे-धीरे आंध्र की मछली पर निर्भरता कम होती जा रही है।
इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आंध्र की मछली पर निर्भरता कम होकर 20 से डेढ़ एमटी रह गई है। जिला मत्स्य पदाधिकारी ने बताया कि मछली उत्पादन में वृद्धि के लिए विभाग की ओर से कई योजनाएं चलायी जा रही है। इसमें प्रमुख रूप से पीएम मत्स्य संपदा योजना, सीएम चौड़ विकास योजना सहित अन्य योजनाएं चलायी जा रही है।
जिससे की मत्स्य पालकों को फायदा पहुंचे। तालाब निर्माण व मछली पालन के लिए उन्हें अनुदान दिया जा रहा है। पिछले चार साल में 433 एकड़ में नए तालाब का निर्माण कराया गया है। जल्द ही जिले को मछली पालन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो जाएगा।
जिला मत्स्य कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, जिले में जलकरों की संख्या 4506 है। इसमें 1620 सरकारी व 2886 निजी है। जबकि तालाब व पोखरों की संख्या 4432 है। इसका जलक्षेत्र 5714 हेक्टेयर में है। इसमें 2830 सरकारी व 2884 निजी है। जिले में 16 मत्स्यजीवि सहयोग समितियां है।
दूसरे राज्य से कम हो गया मछली आना
बाजार समिति के मछली थोक व्यापारी मनोज सहनी ने बताया कि मछली के मार्केट में तेजी है। स्थानीय मछली का अधिक उत्पादन हो रहा है। इस वजह से आंध्र मछली की मांग दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है। पहले राजस्थान, दिल्ली, बंगाल से बर्फवाली मछली आती थी। बंगाल से जिंदा रेहू भी आती थी।
लेकिन जिले में मछली उत्पादन में हुई वृद्धि से बाहरी की मांग कम हो गयी है। मछली उत्पादन में जिला आत्मनिर्भरता की चौखट पर है। अब मात्र उेढ़ टन मछली ही खपत से कम उत्पादन हो रहा है। विभाग की कार्ययोजना है कि इस साल जिले की खपत से कम से कम चार टन अधिक मछली का उत्पादन किया जाए। – डॉ. नूतन, जिला मत्स्य पदाधिकारी
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