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रिपोर्ट – अभिषेक रंजन
मुजफ्फरपुर. इरादे हो ता क्या मुमकिन नहीं! काम की तालाश में 30-35 साल पहले जयपुर गए बिहार के इस शख्स का इरादा था कि बिहार लौटना है और अपने हुनर से लोगों का परिचय कराना है. सुरेंद्र चौधरी ने वहां राजस्थान का फेमस घेवर बनाना सीखा. वहां से आने के बाद पिछले 30 सालों से चौधरी मुजफ्फरपुर के छोटी कल्याणी इलाके में अपनी रेहड़ी लगाकर राजस्थान की फेमस मिठाई का स्वाद चखा रहे हैं. वह बताते हैं गर्म तासीर होने के कारण घेवर की बिक्री राजस्थान में ठंड के मौसम में खूब होती है. हालांकि यह मिठाई साल भर मिलती है, लेकिन नवंबर से फरवरी के बीच इसकी बिक्री खूब होती है.
चौधरी बताते हैं कि मुजफ्फरपुर में मारवाड़ी समाज के काफी लोग हैं, जो अमूमन मोतीझील, कल्याणी और सरैयागंज टावर के आसपास रहते हैं. इस कारण उन्होंने मोती झील से सटे छोटी कल्याणी में घेवर की बिक्री शुरू की. शुरुआत में तो मारवाड़ी लोगों को छोड़ अन्य कोई इस मिठाई को खाता नहीं था, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने इस मारवाड़ी मिठाई का स्वाद लोगों की ज़ुबान पर चढ़ा दिया. अब यह मिठाई ठंड के दिनों में खूब बिकने लगी है. वह बताते हैं कि वह हर साल नवंबर से लेकर 14 फरवरी तक घेवर बेचते हैं. इस साल भी खूब बिक्री कर रहे हैं.
कैसे बनाया जाता है घेवर?
चौधरी के मुताबिक घेवर बनाने के लिए सिंघाड़े का आटा, दूध, रिफाइन या घी और चीनी की जरूरत होती है. वह बताते हैं कि सबसे पहले पानी फल सिंघाड़ा के आटा को दूध में मिलाकर घोल तैयार कर लिया जाता है. इसके बाद घी या रिफाइन में इसे धीमी आंच पर कड़ाही में पकाया जाता है. इसके बाद इसे चीनी की चाशनी में जलेबी की तरह भिगोया जाता है. उसके बाद यह खाने के लिए तैयार हो जाता है.
घेवर की कीमत राजस्थान और बिहार में लगभग एक ही है. मुजफ्फरपुर में चौधरी की दुकान पर यह 280 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है. राजस्थान में भी इसकी कीमत 200 से लेकर 500 के बीच होती है. रिफाइन में तैयार घेवर घी की तुलना में सस्ता होता है. घी में छाना गया घेवर तकरीबन 500 रुपये किलो बिकता है.
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टैग: खाद्य व्यवसाय, Muzaffarpur news
प्रथम प्रकाशित : 07 दिसंबर, 2022, 13:00 IST
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