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उत्पादन में आएगी कमी
उन्होंने कहा कि शाही प्रजाति के लीची में तो 20 प्रतिशत कमी होने की संभावना है लेकिन चाइना लीची के उपादन 70 से 80 फीसदी तक कम होने का अनुमान है। उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि अभी और ज्यादा बहुत कुछ नहीं बोला जा सकता है। उनका कहना है कि इस बार व्यापारियों की मांग के अनुसार दूसरे प्रदेश व महानगरों में लीची नहीं भेज पाएंगे।
आंकड़ों में देखिए उत्पादन
भारत सरकार के कृषि और सहकारिता विभाग के वर्ष 2020-2021 के आंकड़े के अनुसार भारत में 97.91 हजार हेक्टेयर में लीची की खेती हो रही है जिससे कुल 720.12 हजार मैट्रिक टन उत्पादन प्राप्त होता है। आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में लीची की खेती 36.67 हजार हेक्टेयर में होती है जिससे 308.06 हजार मैट्रिक टन लीची का फल प्राप्त होता है। बिहार में लीची की उत्पादकता 8.40 टन प्रति हेक्टेयर है जबकि राष्ट्रीय उत्पादकता 7.35 टन प्रति हेक्टेयर है।
फलों के आकार पर असर
इधर, अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक एवं डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने बड़ी बात कही है। उन्होंने फलों के आकार में परिवर्तन होने की बात कही है। केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा के सह निदेशक अनुसन्धान डॉ एस के सिंह का मानना है कि लीची के लिए अधिकतम तापमान 38 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अधिकतम तापमान के अधिक होने के कारण फलों में गुदा कम होगा जबकि गुठली का आकार बड़ा होगा।
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