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मंदिर निमकोट पर्वत शृंखला में स्थित है और चारों तरफ सेंधा नमक की खदानें हैं।
पाकिस्तान के प्रसिद्ध श्री कटासराज धाम शिव मंदिर घूमने जाने के लिए मुजफ्फरपुर से 5 लोगों का चयन किया गया है। कटासराज धाम लाहौर-इस्लामाबाद हाईवे पर चकवाल जिले में स्थित है। यह लोग कटासराज मंदिर के साथ ही लाहौर में भगवान राम के पुत्र लव के समाधि स्थल पर भी दर्शन-पूजन करेंगे।
इन लोगों का चयन भारत-पाक समझौता के तहत हुआ है। इस समझौता के तहत हर साल भारत सरकार यहां से 200 लोगों को कटासराज दर्शन के लिए अपने खर्च पर भेजती है। भ्रमण के लिए चयनित होने वालों में मुजफ्फरपुर से आचार्य डॉ चंदन उपाध्याय, अमित कुमार, कृष्ण कुमार प्रभाकर, मनीष कुमार एवं पवन कुमार मेहता हैं।
ब्राह्मण टोली के डॉ चंदन ने बताया कि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सती दाह के बाद भगवान शिव की आंख से आंसुओं की दो बूंदें गिरी थी। एक से रूद्राक्ष और दूसरे से कटासराज स्थित सरोवर का निर्माण हुआ। इस सरोवर की मान्यता मानसरोवर के बराबर है।
मंदिर में स्थित सरोवर।
27 फरवरी को बाघा बार्डर से होंगे रवाना, 5 मार्च को वापसी
डॉ चंदन ने बताया कि वह अपनी टीम के साथ 25 फरवरी को ट्रेन से अमृतसर पहुंचेंगे। 26 को भारत सरकार द्वारा यात्रा के दिशा-निर्देश दिए जाएंगे। 27 फरवरी को बाघा बार्डर होते हुए पाकिस्तान के लिए रवाना होंगे। 5 मार्च को उधर से वापसी होगी।
इस धार्मिक यात्रा पर जा रहे लोगों को भाजपा नेता प्रभात कुमार ने शुभकामनाएं दी है। कहा है कि धर्म और आस्था के बीच कोई सरहद नहीं आ सकती।
1000 सालों से भी पुराना है मंदिर का इतिहास
श्री कटासराज मंदिर का इतिहास करीब 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। यह मंदिर निमकोट पर्वत शृंखला में स्थित है और चारों तरफ सेंधा नमक की खदानें हैं। मंदिर के बारे में कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि इसी जगह माता सती के पिता दक्ष ने भगवान शिव पर कई कटाक्ष किए थे। उससे मंदिर को कटासराज का नाम मिला है।
भगवान श्री कृष्ण ने की थी शिवलिंग की स्थापना।
मान्यता यह भी है कि पांडवों ने इन्हीं पहाड़ियों में अज्ञातवास काटा था। यहीं पर युधिष्ठिर-यक्ष संवाद हुआ था। कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
उन्होंने ही यहां पर शिवलिंग की स्थापना कर उसकी पूजा आरंभ की थी। मौर्य वंश के शासनकाल में इस स्थान पर सम्राट अशोक ने बौद्ध स्तूप बनवाया था। चौथी शताब्दी में भारत यात्रा पर आए चीनी यात्री फाहियान ने भी अपने यात्रा वृत्तांतों में इस जगह की बात की है। प्रथम सिख गुरु नानक देव जी भी यहां आए थे। मंदिर के पास एक गुरुद्वारे के भी अवशेष मिले हैं।
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