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बलराज साहनी (Balraj Sahni) प्रसिद्ध थियेटर और फिल्म एक्टर थे, जिन्हें ‘दो बीघा जमीन’ (Do Bigha Zameen), ‘धरती के लाल’, ‘छोटी बहन’, ‘काबुलीवाला’ और ‘गरम हवा’ जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है. बजराज का जन्म 1 मई 1913 में पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था. इनका असली नाम युधिष्ठिर साहनी था. फिल्मों में एक्टिंग के साथ-साथ अपने विचारधारा के लिए भी जाने जाते थे. संजोग की बात है कि मजदूर दिवस (Labour day ) और बलराज का जन्मदिन एक ही दिन होता है. हिंदी सिनेमा का इतिहास बलराज के बिना पूरा नहीं हो सकता.
बलराज साहनी की गिनती हिंदी सिनेमा के प्रतिभाशाली एक्टर्स में होती है. बलराज एक ऐसे कलाकार थे जो आम आदमी के दुख-दर्द और समस्या को पर्दे पर जीते थे. उनकी फिल्मों को देखें तो साफ हो है कि आम आदमी की जिंदगी की पीड़ा पर बड़े ही सहज भाव से दिखाने का हुनर रखते थे, बतौर एक्टर उनकी यही कामयाबी भी थी.
बलराज साहनी को बचपन से एक्टिंग का शौक था!
बलराज साहनी के बेटे परिक्षित साहनी भी जाने माने एक्टर हैं. इन्होंने अपने पिता की जिंदगी पर ‘द नॉन कंफर्मिंस्ट: मेमोरीज ऑफ माय फादर बलराज साहनी’ लिखी है. इसमें बलराज की जिंदगी के कई अनसुने किस्से लिखे हैं. बलराज साहनी को बचपन से ही एक्टिंग का शौक था. इस शौक को पूरा करने के लिए इप्टा यानी ‘इंडियन प्रोग्रेसिव थियेटर एसोसिएशन’ में शामिल हो गए. 1946 में ‘इंसाफ’ में पहली बार नाटक में काम करने का मौका मिला था. बलराज के अभिनय क्षमता को देखते हुए ख्वाजा अहमद अब्बास ने उन्हें पहली बार ‘धरती के लाल’ फिल्म में बतौर एक्टर काम करने का मौका दिया. इस फिल्म के बाद तो एक्टर छा गए.
इप्टा से जुड़े कम्यूनिस्ट विचाराधार के एक्टर थे बलराज साहनी.
‘हलचल’ की शूटिंग के दौरान हो गई थी जेल
बलराज साहनी आम आदमी के दर्द से इस कदर जुड़े हुए थे कि कई मौके पर मुखर हो जाते थे. इप्टा से जुड़े कम्यूनिस्ट विचाराधारा के एक्टर को जेल की हवा भी खानी पड़ी थी. एक बार फिल्म ‘हलचल’ की शूटिंग कर रहे थे इसी दौरान जेल हो गई. लेकिन फिल्म पूरी करने के लिए प्रोड्यूसर ने शूटिंग के दौरान बाहर आने की अपील की और इसी व्यवस्था के तहत शूटिंग करने के लिए बाहर आते फिर शूटिंग खत्म होते ही जेल चले जाते.
बलराज ने कहा था मेरे मरने पर पंडित मत बुलाना
बलराज साहनी विचारधारा के इतने पक्के थे कि अंतिम समय में उन्होंने कहा था कि मेरी मौत पर न पंडित बुलाना, न मंत्र उच्चारण करना, अंतिम यात्रा में मेरे शरीर पर लाल झंडा लगा देना’. 13 अप्रैल 1973 में मुंबई में अंतिम सांस ली.
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पहले प्रकाशित : मई 01, 2022, 06:00 IST
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