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डिजिटल डेस्क, मुंबई। भारत कोकिला, भारत रत्न लता मंगेशकर के निधन से भारतीय संगीत जगत के एक चमकते सितारे का अवसान भले ही हो गया है लेकिन अनेक लोगों के जेहन में उनकी यादें हमेशा रहेंगी।
कुछ आवाजें ऐसी होती हैं जिन्हें कोई कभी भी खामोश नहीं सकता है और इसमें कोई संदेह नही है कि लता मंगेशकर की आवाज हमेशा उनकी पहचान रहेगी।
भारत कोकिला के निधन पर जब दुनिया शोक व्यक्त कर रही है तो ऐसे में आईएएनएस को अनेक टीवी अभिनेताओं ने बताया कि कैसे लता मंगेशकर ने उनके जीवन पर अपनी छाप छोड़ी है।
लोकप्रिय शो गुम है किसी के प्यार में की मिताली नाग ने लताजी को मानव रूप में देवी बताते हुए कहा: मैं लताजी के गीतों को सुनकर बड़ी हुई हूं। वास्तव में, मैंने अपने स्कूल में उनके गीत गाते हुए कई पुरस्कार जीते हैं। लताजी मानव रूप में देवी थीं। दूसरी लता मंगेशकर कभी नहीं हो सकतीं। उन्होंने भारतीय महिलाओं को अपने सपनों के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया है।
छोटे पर्दे के शो क्यूं रिश्तों में कट्टी बट्टी में कुलदीप चड्ढा की भूमिका निभाने वाले अभिनेता सिद्धांत सूर्यवंशी ने कहा कि उन्होंने लता जी के जीवन से प्रतिबद्धता की शक्ति के बारे में सीखा है।
सूर्यवंशी ने कहा, लताजी ने अपने करियर की शुरूआत 13 साल की उम्र में की थी और सात दशकों से भी अधिक समय तक पेशेवर गायन जारी रखा। मेरे लिए, लता मंगेशकर ²ढ़ संकल्प, इच्छा शक्ति और प्रतिबद्धता की महिला थीं। वह मुझे प्रेरित करती रही हैं और अपने काम के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के कारण वह आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेंगी। वह वास्तव में संगीत की देवी थीं।
अभिनेत्री रूप दुगार्पाल, जिन्हें आखिरी बार रंग प्यार के ऐसे भी के दूसरे शो में देखा गया था, ने हमेशा लता जी को अपनी प्रेरणा का स्रोता माना है।
उसने कहा: मैं बचपन से गा रही हूं और सचमुच लताजी की खूबसूरत धुनों को सुनकर बड़ी हुई हूं। उनके जीवन की कहानियां भी प्रेरणादायक रही हैं। स्कूल या कॉलेज में,जब भी मुझे मंच पर प्रदर्शन करना होता था, मैं प्रेरणा के लिए उनका स्मरण करती थी।
इश्कबाज के अभिनेता कुणाल जयसिंह को लताजी के गाने सुनकर अपनी दिवंगत मां की याद आ गई। मुझे याद है कि बचपन में मेरी माँ मुझे सुलाने या मुझे खुश करने के लिए लताजी के गीत गाती थीं।
चंदा है तू, इचक दाना, बिचक दाना, चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक कुछ ऐसे गीत हैं जो मेरे बचपन का एक अमिट हिस्सा है। जब भी मैं उन्हें सुनता हूं, तो वे मेरी माँ की यादें ताजा करा देते हैं। मेरा मानना है कि उनके गीत किसी के जीवन के सभी मूड और अवसरों के लिए प्रासंगिक हैं।
दिवंगत महान अभिनेता दिलीप कुमार ने एक बार लंदन में रॉयल अल्बर्ट हॉल में 1974 के उनके संगीत कार्यक्रम के दौरान लताजी की आवाज का सही वर्णन किया था: लता की आवाज कुदरत की तख्ती का एक करिश्मा है (लता की आवाज प्रकृति की रचना का चमत्कार है) ।
लताजी भले ही शारीरिक रूप से इस दुनिया को छोड़कर चली गई हों, लेकिन प्रकृति का चमत्कार लोगों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगा। उनकी आवाज का करिश्मा ही था कि 1963 में एक कार्यक्रम में कवि प्रदीप के लिखे गीत .ए मेरे वतन के लोगों.को जब उन्होंने गाया था तो वहां उपस्थित तत्कालीन प्रधानमंत्री पंड़ित जवाहरलाल नेहरू की आंखें भी छलक गई थीं।
(आईएएनएस)
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