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गया. बोधगया के बाजारों में वैसे तो कई तरह के व्यंजन मिलते हैं लेकिन उन सबके बीच फालेप का अलग ही मजा है. खास तौर पर इसे विदेशियों के लिए बनाया जाता है. बोधगया में विदेशी पर्यटकों के आगमन से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है. पचहटी मोहल्ले में करीब 300 लोग फालेप बनाने में जुट गए हैं. इस बार बौद्ध श्रद्धालु की संख्या में वृद्धि हो गई है, जिस कारण बोधगया में रोजाना 20 हजार से ज्यादा फालेप की डिमांड है. बोलचाल की भाषा में फालेप को तिब्बती रोटी कहा जाता है और इसे खूब पसंद किया जाता है.
बोधगया में ठंड के दिनों में बौद्ध श्रद्धालुओं और पर्यटकों की काफी भीड़ उमड़ती है. इस साल बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए और भी खास है क्योंकि बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा पिछले 8 दिन से गया में हैं और 20 जनवरी तक उनका यहां प्रवास रहेगा. गुरुवार से उनका एक टीचिंग सेशन शुरू होने वाला है, जिसमें हजारों की संख्या में देश विदेश के बौद्ध श्रद्धालु शामिल होंगे. ऐसे में बोधगया में खाने-पीने के कई होटल रेस्टोरेंट खुल गए हैं. ज्यादातर विदेशी पर्यटक खाने में फालेप तथा चाय पसंद करते हैं.
बताया जा रहा है टीचिंग के दिन लगभग एक लाख फालेप बौद्ध श्रद्धालुओं को दिए जाएंगे. स्थानीय लोग फालेप बनाने की तैयारी में जुट गए हैं. कहा जाता है करीब 60 साल पहले से ही बोधगया में फालेप की बिक्री शुरू हुई. तिब्बत से आए लोग पहले इसे बनाकर बेचते थे. फिर स्थानीय लोगों ने यह तिब्बती रोटी बनाना सीखा और धीरे-धीरे अब करीब 300 से ऊपर परिवार फालेप बनाकर अपना घर चला रहे हैं.
न्यूज 18 लोकल से बात करते हुए फालेप बनाने वाले स्थानीय सुनील कुमार और रीना देवी ने बताया तिब्बतियों की यह फ़ेवरेट डिश है और बड़े चाव से इसे खाते हैं. आमतौर पर तिब्बती ब्रेड कहा जाने वाला यह फालेप 10 रुपये प्रति पीस के हिसाब से बाजार में बिकता है. फालेप रोटी की तरह ही बनाया जाता है. सबसे पहले मैदा में सोडा मिलाकर इसे गूंधा जाता है. रातभर रखकर छोड़ दिया जाता है. फिर यीस्ट लगाकर इसे रोटी के जैसा बेला जाता है और बड़े लोहे के तवे पर कम आंच पर सेका जाता है. इस फालेप को चाय के साथ चाव से खाया जाता है.
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प्रथम प्रकाशित : 29 दिसंबर, 2022, 10:20 AM IST
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