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रिपोर्ट-अंकित कुमार सिंह
सीवान: गणतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की पुण्यतिथि हर वर्ष 28 फरवरी को मनाई जाती है. इस दिन को भी उनके पैतृक गांव जीरादेई को भुला दिया गया. पुण्यतिथि पर कोई भी सरकारी अधिकारी या वरीय जनप्रतिनिधि माल्यार्पण तक के लिए नहीं आए. हालांकि स्थानीय लोगों ने पैतृक आवास परिसर स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नमन किया तथा उनके प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त किया. पुण्यतिथि के दिन भी देश के प्रथम राष्ट्रपति को उचित सम्मान नहीं मिलने का मलाल सीवान वासियों को है.लोगों की माने तो राजेंद्र बाबू ही नहीं बल्कि उनके गांव जीरादेई सदैव उपेक्षा का शिकार रहा. राजेंद्र बाबू के नाम पर सिर्फ और सिर्फ छलावा ही किया गया. जिसका मलाल आज भी है..
देश के प्रथम राष्ट्रपति को नहीं मिल पा रहा है वाजिब सम्मान
इतिहासकार सह लेखक कृष्ण कुमार सिंह ने बताया कि देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद राजनीतिक सुचिता के महान देवता थे, जो आजीवन राष्ट्र निर्माण में लगे रहे. देश को सुव्यवस्थित रूप से संचालन कराने के लिए संविधान बनाने में बहुत बड़ा योगदान देने के बाद भी पुण्यतिथि को भुला देना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि राजेंद्र बाबू को सिर्फ और सिर्फ जयंती के दिन ही याद किया जाता है. गणतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति होने के बावजूद उनके पद के हिसाब से उन्हें सम्मान नहीं दिया जाना बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है. राजेंद्र बाबू के समकक्ष अन्य नेताओं को पुण्यतिथि और जयंती पर कई कार्यक्रम आयोजित कर श्रद्धा सुमन अर्पित की जाती है तथा धूमधाम से मनाया जाता है.
देशरत्न को उपेक्षित नजरों से देखती है सरकार
डॉ. राजेंद्र प्रसाद के संबंधी प्रशांत कुमार ने कहा कि राजेन्द्र बाबू गांधी जी के परम अनुयायी थे तथा गांधी जी को चम्पारण सत्याग्रह आंदोलन में लाने में इनकी महती भूमिका थी. उन्होंने बताया कि सीवान के ही राजेन्द्र बाबू, वृजकिशोर बाबू एवं मौलाना मजहरुल हक साहब ने चम्पारण के किसानों की दुर्दशा से व्यथित होकर 1917 में किसान राजकुमार शुक्ल को गांधी जी से परिचय कराया तथा सत्याग्रह के लिए उत्प्रेरित किया. इसके बावजूद केंद्र व राज्य सरकार राजेन्द्र बाबू को उपेक्षित नजरों से देखती है. उन्होंने कहा कि इनके महती योगदान को सरकार भुला दे रही है.
आग्रह पर भी नहीं कराया जा रहा है किसी भी प्रकार का कार्यक्रम
दरअसल, पंचशील संस्था ने विगत वर्ष मुख्यमंत्री व पुरातत्व विभाग को पत्र लिख कर मांग किया था कि देशरत्न के पुण्यतिथि पर सीवान के जीरादेई में इनके प्रतिमा पर सरकारी स्तर पर माल्यार्पण कर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन कराया जाय. इस निवेदन का भी कोई असर नहीं पड़ा. स्थानीय लोग कई बार पुण्यतिथि पर कार्यक्रम तथा जयंती पर विशेष कार्यक्रम कराने का मांग किया और ज्ञापन भी सौंपा. हालांकि इसका कोई भी प्रभाव अधिकारियों पर नहीं पड़ा. यही वजह है कि अपने गांव में राजेंद्र बाबू को भुला दिया जा रहा है.
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पहले प्रकाशित : 01 मार्च, 2023, 13:37 IST
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