![Sharad Yadav Death: समाजवाद के सिपाही शरद यादव की सियासी विरासत आगे बढ़ाएंगी सुभाषिणी? Sharad Yadav Death: समाजवाद के सिपाही शरद यादव की सियासी विरासत आगे बढ़ाएंगी सुभाषिणी?](https://muzaffarpurwala.com/wp-content/uploads/https://images.news18.com/ibnkhabar/uploads/2023/01/sharad-subhashini-167358682116x9.jpg)
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हाइलाइट्स
शरद यादव के निधन से समाजवादी सियासत में आई बड़ी शून्यता!
शरद की राजनीतिक परंपरा बढ़ाने की जिम्मेवारी बेटी सुभाषिणी पर!
क्या समाजवाद की सियासत को आगे बढ़ाएंगी कांग्रेस की सुभाषिणी?
पटना. ‘पापा नहीं रहे.’ इन्हीं शब्दों के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री व देश के बड़े समाजवादी राजनीतिज्ञों में से एक शरद यादव के निधन की खबर सबसे पहले उनकी बेटी सुभाषिनी यादव की तरफ से ट्वीट करके दी गई. गुरुवार की रात 10.48 पर किए गए इस ट्वीट के बाद ही देश ने 75 वर्ष की आयु में शरद यादव के देहावसान के बारे में जाना. सुभाषिणी के ट्विटर हैंडल को देखें तो अपने परिचय के साथ उन्होंने अपने पिता के कथन – ”राज सच्ची बोली से चलता है, गोली से नहीं” को सबसे टॉप पर रखा है. जाहिर है यह शरद यादव और सुभाषिणी यादव की बॉन्डिंग को भी बताता है. अब जदयू के पूर्व अध्यक्ष रह चुके शरद यादव के निधन के साथ ही उनकी विरासत को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है.
बता दें कि सात बार सांसद रहे शरद यादव की दो संतान हैं. पुत्र शांतनु और पुत्री सुभाषिनी. शरद यादव के जीवनकाल से ही ही सुभाषिणी राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हैं और उनकी राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं. सुभाषिनी वर्तमान में कांग्रेस पार्टी से जुड़ी हुई हैं. हाल में उन्हें मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में राहुल गांधी के साथ भारत जोड़ो यात्रा में भी देखा गया था. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या वह शरद यादव की विरासत सुभाषिणी ही संभाल पाएंगी?
दरअसल, यह सवाल इसलिए भी कि शरद यादव स्वयं गैर कांग्रेसवाद की राजनीति करते रहे, लेकिन सुभाषिनी ने 2020 में कांग्रेस पार्टी जॉइन की. उन्होंने बिहारीगंज सीट से विधानसभा चुनाव भी लड़ा, लेकिन हार गईं. खास बात यह भी कि सुभाषिनी को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का करीबी माना जाता है. ऐसे में सुभाषिणी से गैर कांग्रेसवाद की राजनीति की अपेक्षा करना फिलहाल तो संभव नहीं दिखता.
आपके शहर से (पटना)
दूसरी बड़ी बात इससे जुड़ी हुई यह भी है कि शरद यादव चाहते थे कि मधेपुरा से उनके परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़े. दरअसल, जब उन्होंने लालू प्रसाद यादव को यहां से लोकसभा चुनाव हराया था तो पूरे देश में शरद का राजनीतिक कद और ऊंचा हो गया था. मगर; अब की हकीकत यही है कि राजद की यह परंपरागत सीट है और वह इसे छोड़ेगा नहीं. दूसरा यह भी कि कांग्रेस और राजद में गठबंधन भी है और फिलहाल बिहार में साथ-साथ सत्ता में भी है.
गौरतलब है कि सुभाषिणी की शादी हरियाणा में एक राजनीतिक परिवार में हुई है. अभी शरद यादव जब बीमार थे तो सुभाषिनी अपनी ससुराल में रहते दिल्ली के छतरपुर स्थित पिता के आवास पर जाकर उनकी सेवा करती थी. गुरुग्राम के निजी अस्पताल में जब शरद ने अंतिम सांस ली तो भी सुभाषिनी उनके पास ही थीं और उन्होंने ही पिता के निधन की जानकारी शेयर की थी. ऐसे में सुभाषिणी के सियासी फ्यूचर को लेकर कोई कयासबाजी करना जल्दबाजी होगी. मगर इतना जरूर कहा जा सकता है कि सुभाषिणी गैर कांग्रेसवाद की राजनीति नहीं करेंगी.
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टैग: बिहार के समाचार, बिहार की राजनीति
पहले प्रकाशित : 13 जनवरी, 2023, 10:53 पूर्वाह्न IST
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