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ये सियासी शोर शांत तब हुआ जब कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन एक पिता के लिए ये चुभने वाली बात थी। इसके बाद जगदानंद सिंह ने अनमने ढंग से प्रदेश अध्यक्ष पद को एक तरह से ना कर दिया। उन्हें एतबार था कि लालू प्रसाद उन्हें मना लेंगे। राजद सुप्रीमो ने उन्हें मनाया तो नहीं पर कार्यालय आने से भी रोका भी नहीं। दरअसल वर्तमान समय राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत ले कर आया है। जहां लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की राजनीत का पटाक्षेप होना है और तेजस्वी यादव के कार्यकाल का शुभारंभ होना है। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष का पद ज्यादा दिन तक खाली नहीं रखा जा सकता। सामने लोकसभा का 2024 और 2025 का बिहार विधान सभा चुनाव भी दस्तक दे रहा है। ऐसे में तेजस्वी यादव को एक मजबूत संगठन की जरूरत है, जिसकी बागडोर एक अनुभवी नेता के हाथ में हो। इस आधार पर अब्दुल बारी सिद्दीकी एक आजमाया नाम है। सबसे पहले तो सिद्दीकी अनुभवी हैं । नीतीश कुमार की भी पसंद हैं और आजमाए हुए भी । ऐसा इसलिए कि राजद में जब बड़ी टूट हुई तो सिद्दीकी लालू प्रसाद के साथ ही रहे।
मुस्लिम मतों के बिखराव को रोकना
राजद की आज सबसे बड़ी चुनौती है एम वाई समीकरण को अटूट रखना। इधर से मुस्लिम मतों में बिखराव भी राजद की परेशानी का कारण बन गया है। खास कर ओवैसी फैक्टर ने जिस तरह से नुकसान पहुंचाया है उसके उपाय का रास्ता भी सिद्दीकी से हो कर गुजरता है। सीमांचल एरिया में राजद को जो नुकसान हुआ वह अब बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी दस्तक देने लगा। हाल में ही गोपालगंज में 12 हजार मत एआईएमआईएम के खाते में जाना राजद उम्मीदवार की हार का कारण बना। कुढ़नी में भी ओवैसी ने उम्मीदवार खड़ा कर महागंठबंधन की मुश्किल बढ़ा दी है। सो,राजनीतिक गलियारों में सिद्दीकी को प्रदेश अध्यक्ष बनना वोट समीकरण की जरूरत का नतीजा है।
सिंगापुर जाने के पहले होगा बदलाव
सिंगापुर जाने से पहले आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव नए प्रदेश अध्यक्ष को उनकी कुर्सी सौंपकर जाएंगे। इसके लिए लालू ने अब्दुल बारी सिद्दीकी का नाम फाइनल भी कर लिया है। कहा जा रहा है कि अब तो बस औपचारिक घोषणा भर होनी बाकी रह गई है।
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