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पूर्वी चम्पारण. रमजान के महीने में शारीरिक एवं मानसिक पवित्रता का खास धार्मिक महत्व है. इसके लिए रोजेदार कई इस्लामिक प्रथाओं का बड़ी सादगी से पालन करते हैं. रमजान के दौरान प्रचलित इन्हीं प्रथाओं में से एक है पीलू के टहनियों की दातुन से दांत की सफाई करना. रमजान आते ही दूसरे जगहों पर पीलू की टहनियों की दातुन मंगवा ली जाती है. खास तौर से यह मस्जिदों के आसपास रोजा से संबधित सामान बेचने वालों के पास उपलब्ध रहती है. इस दातुन के कई फायदे हैं.
पीलू के दातुन से दांत साफ करने पर नहीं लगता कीड़ा
मिस्वाक (पीलू) के गुण एवं उपलब्धता के बारे में मोतिहारी के इस्लामिक परंपरा और संस्कृति के जानकार होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. सबा अख्तर कहते हैं कि मिस्वाक (पीलू) एक रेगिस्तानी पेड़ है. यह अधिकतर सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, भारत व रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाया जाता है. उन्होंने बताया कि यह औषधीय गुणों से भरपूर और काफी मुलायम लकड़ी है. इसमें खास तरह का रेजिन पाया जाता है, जिससे दांत चमकदार बनते हैं और उनमें कीड़े नहीं लगते हैं.
डॉ. अख्तर कहते हैं कि इस्लाम में एक बीते (Hands pan) एवं एक अंगुली जितनी मोटी दातुन का इस्तेमाल करने की बात कही गई है. रमजान के महीने में रोजे के दौरान रोजेदार पानी नहीं पीते हैं. इस कारण से मुंह से बदबू आने लगती है. इसलिए रमजान के दौरान पांचों वक्त के नमाज में वजू से पहले मिस्वाक का एहतमाम किया जाता है, ताकि नमाज के दौरान मुंह से किसी तरह की बदबू न आए.
मिस्वाक अथवा पीलू की दातुन की बाजार में कीमत 20 रुपए है. दांत साफ करने के पश्चात इसे धोकर रख लिया जाता है. इस तरह एक दातुन से ही पूरे माह दांत साफ किया जा सकता है. डॉ. सबा कहते हैं कि मिस्वाक अथवा पीलू की लकड़ी का आयुर्वेद में भी जिक्र है. इससे बहुत सारी बीमारियों जैसे दांत में कीड़े लगना, आंत एवं लीवर संबंधित बीमारियों आदि का इलाज भी किया जाता है. इस्लाम में इसका इस्तेमाल करना सुन्नत माना गया है.
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पहले प्रकाशित : अप्रैल 04, 2023, 12:57 अपराह्न IST
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