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विश्व प्रसिद्ध फणीश्वरनाथ रेणु की आंचलिक भाषा मे लिखी गयी साहित्य ने पूरे विश्व मे भाषा और साहित्य में जो धूम मचाई, वो किसी से छिपी नहीं है। रेणु रचित मैला आंचल को लेकर उन्हें पद्मश्री अवार्ड भी मिला, जिसे आपातकाल के दौरान निहत्थे छात्र पर पुलिसिया दबिश और प्रहार को लेकर पद्मश्री को पापश्री कहकर लौटा कर पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था। उसी मैला आंचल को अब दुनिया के कई भाषाओं में अनुवाद के बाद जापान के लोग भी पढ़ रहे हैं। जापान के मिकी युईचिरो ने दोरोनो सुसी नाम से इसका अनुवाद किया है। जापान के ओसाका विश्वविद्यालय ज़थित निमोह सेंबा कैम्पस में विश्व हिन्दी दिवस के दिन बकायदा इसका लोकार्पण हुआ। रेणु की इस कालजयी रचना का विश्व के कई भाषाओं में अनुवाद के बाद जापानी भाषा में अनुवाद से रेणु जनपद के लोग अविभूत हैं।
रेणु परिवार को खुशी के साथ है मलाल
हिन्दी साहित्य समेत विश्व की कई भाषाओं के साथ जापानी भाषा में अनुवाद से रेणु जनपद के साथ रेणु परिवार के लोगों में हर्ष है। लेकिन खुशी के इस माहौल में रेणु परिवार को कई मलाल भी है। रेणु के बड़े बेटे और पूर्व विधायक पद्म पराग राय वेणु, अपराजित राय अप्पू और रेणु के छोटे बेटे और सामाजिक कार्यकर्ता दक्षिणेश्वर राय उर्फ पप्पू का कहना है कि रेणु हिन्दी साहित्य के न केवल मूर्धन्य साहित्यकार हुए, बल्कि स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर सामाजिक तानाबाना बुनने में अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिए।
सियासत के महत्वाकांक्षी नेताओं ने भी रेणु का नाम लेकर सियासत के ऊपरी पायदान पर जा पहुंचे। लेकिन रेणु परिवार को क्या मिला। घोषणाओं के बावजूद न तो रेलवे स्टेशन के नाम उनके नाम पर बदला जा सका और न ही सिमराहा को प्रखंड का ही दर्जा मिल पाया। परिवर्तनशील समय के अनुसार गांव में कुछ विकास हुए, लेकिन रेणु का गांव आज भी रेणु की रचना परती परिकथा वाली बालूचर भूमि की ही है। आज भी रेणु के लेखनी के किरदार चाहे वो सिरचन हो या हीरामन और हीराबाई विद्यमान हैं। भय, भूख और त्रासदी धारणा बनी हुई है। रेणु को तो सियासतदानों ने भी छल दिया। इंजीनियरिंग कॉलेज का बड़ा सा भवन बना लेकिन मूलभूत सुविधा गांव और इलाके से नदारद है। दक्षिणेश्वर राय पप्पू का कहना है कि 2010 में भाजपा ने उनके बड़े भाई पद्म पराग राय वेणु को विधानसभा का टिकट दिया था, जिसमें उन्होंने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की थी। बावजूद इसके 2015 में अकारण ही पार्टी ने उनका टिकट काट दिया। जबकि उनके द्वारा कराये गये शहरी और ग्रामीण इलाकों में विकास कार्य आज भी गवाह हैं। सियासतदानों से छले जाने से रेणु परिवार को मलाल है।
रेणु की जीवनी साहित्य सृजन के साथ संघर्ष से जुड़ी रही
रेणु की साहित्य न केवल लिट्रेचर तक ही सिमट कर है, बल्कि उनकी संघर्ष की गाथा भी रेणु जनपद को गौरवान्वित करने वाला रहा। चाहे वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई हो या फिर नेपाल के राणाशाही के खिलाफ लड़ी गयी लड़ाई या फिर जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में आपातकाल के दौरान लड़ी गयी छात्र आंदोलन की लड़ाई, सबों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक ने किया स्मरण
रेणु के संघर्ष गाथा का आलम यह है कि आगाज के बाद उसे अंजाम तक पहुंचाने की कवायद में आज भी जारी है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक उनका नाम लेकर वोटों को समेटने में कोई कसर नहीं छोड़ते। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावी रैली के दौरान मंच से उन्हें स्मरण कर उनके संघर्ष का बखान करते हैं तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तो रेणु के घर औराही हिंगना तक जा पहुंचे। देशी खान-पान भक्का, पटुआ और बथुआ के साग का स्वाद तक चखा और रेणु की पत्नी पद्मा रेणु से आशीर्वाद प्राप्त कर बिहार के सियासत के सबसे ऊंचे पायदान तक पहुंचे। 2010 के चुनाव में रिकॉर्ड मतों से भाजपा को जीत दिलाने के बावजूद अगली बार 2015 में बिना किसी कारण टिकट काटकर रेणु के प्रति संवेदनशीलता को भाजपा ने जता दिया। जिसका परिवार वालों के बीच मलाल होना स्वाभाविक है। सियासत की धुरी के बीच रेणु का परिवार पीसने को विवश है।
रेणु ने हिन्दी साहित्य में आंचलिकता को बढ़ाया
रेणु की लेखनी न केवल हिन्दी साहित्य में गांव-ज्वार इलाकों में बोली जाने वाली भाषाओं और किरदार पर निर्भर थी, बल्कि सामाजिक समरसता का मिठास भी पैदा करने वाली थी। साहित्यकार हेमंत यादव ‘शशि’ बताते हैं कि रेणु की लेखनी दूरद्रष्टा वाली और सामाजिक समरसता वाली थी। समाज के निचले पायदान से लेकर ऊपरी पायदान वाले किरदार के साथ इंसाफ करने वाला रहा। फिर चाहे वह किरदार के रूप में सिरचन हो या डॉ प्रशांत या फिर कोई अन्य। सामाजिक विषमताओं का भी चित्रण लेखनी के माध्यम से बखूबी अंजाम देते थे। पंचलाइट को कहानी से ही काफी कुछ सीखा जा सकता है। हेमंत यादव ‘शशि’ ने दूरद्रष्टा को लेकर कहा कि रेणु ने अपनी परती-परिकथा में कोसी नदी को डायन की संज्ञा दी। आखिर रेणु ने कोसी को डायन क्यों कहा, जिस प्रकार डायन के बारे में सब कुछ लील लेने की किवदंती है, उसी प्रकार 2007 में कोशी की मचलती धारा ने जब नेपाल के कुसहा के पास पुरवोत्तर बांध को तोड़ते हुए अपनी नई धारा बना ली थी। भारी जानमाल को नुकसान पहुंचाते हुए विनाश की लीला रची थी। उसका चित्रण रेणु ने वर्षों पहले कर दी थी।
बहरहाल सियासत करने वाले सियासी दलों ने भले ही रेणु को दरकिनार कर दिया हो, लेकिन रेणु की कालजयी रचना विद्वानों के बीच भारत से बाहर निकल कर विश्व भाषा साहित्य की दुनिया मे धूम मचाई हुई है और इसी का परिणाम है कि जापानी भाषा मे मैला आंचल का अनुवाद किया गया। स्वाभाविक है ऐसे शख्सियत कभी मर नहीं सकते। आज जिले में रेणु जयंती के नाम पर कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं और उनकी कालजयी रचना को याद किया जा रहा है।
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