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पटना. राजधानी के गंगा घाटों पर गंगाजल अब प्राणदायिनी नहीं रही. बेहद चिंताजनक बात यह है कि गांधी घाट और गुलबी घाट पर 100 मिलीलीटर पानी (करीब एक कप पानी) में टोटल कोलिफॉर्म यानी खतरनाक जीवाणुओं की संख्या 01 लाख 60 हजार तक पहुंच चुकी है. गंगाजल पीना तो दूर नहाने के लायक भी नहीं रहा.
अब तो फिल्टर करने के बाद भी गंगा जलको स्वच्छ नहीं किया का सकता है. पटना शहर का सीवर का पानी का अधिकांश हिस्सा बिना ट्रीटमेंट के ही गंगा में पहुंच रहा है. बिहार में गंगाजल के प्रदूषित होने का प्रमुख कारण उद्योग नहीं, बल्कि सीवरेज का बिना ट्रीटमेंट किए गंदा पानी का गंगा में प्रवाहित होना है.
सीवर के कारण हुआ बुरा हाल
ऐसी दुर्दशा शहर के सीवरेज के कारण है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में गंगा की यही हालत बक्सर से लेकर कहलगांव तक है. पिछले 02 सालों की बात करें तो वर्तमान समय में स्थिति और खराब हो गई है. जहां वर्ष 2021 में गांधी और गुलबी घाट पर टोटल कोलिफॉर्म की संख्या मात्र 16000 थी, वहीं जनवरी 2023 में ये संख्या बढ़कर 01 लाख 60 हजार हो गई है.
मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हुआ गंगाजल
बिहार में गंगा का कुल प्रवाह 445 किमी है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने 33 स्थलों पर गंगाजल की शुद्धता की जांच की, तो पाया गया कि अधिकांश घाटों पर इन दो वर्षों में प्रदूषण स्तर गंभीर स्तिथि में पहुंच गया है. यह जीवाणु स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक है.
यह है टोटल कोलिफॉर्म का मानक
मानक के अनुसार प्रति 100 मिली लीटर पानी में 500 से ज्यादा कुल कोलिफॉर्म नहीं होना चाहिए. यानी गंगाजल में 500 तक जीवाणु हैं तो उसमें स्नान कर सकते हैं. वहीं 5000 से अधिक टीसी है तो उस पानी को फिल्टर करना भी संभव नहीं है.
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पहले प्रकाशित : 12 मार्च, 2023, 17:08 IST
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