Home Bihar Patna Election Analysis: महापौर और उप महापौर प्रत्याशी के बीच कैसा था तालमेल, क्या है दोनों के जीत की वजह?

Patna Election Analysis: महापौर और उप महापौर प्रत्याशी के बीच कैसा था तालमेल, क्या है दोनों के जीत की वजह?

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Patna Election Analysis: महापौर और उप महापौर प्रत्याशी के बीच कैसा था तालमेल, क्या है दोनों के जीत की वजह?

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पटना चुनाव विश्लेषण

पटना चुनाव विश्लेषण
– फोटो : अमर उजाला

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बिहार निकाय चुनाव में सीता साहू ने न केवल अपनी जीत पक्की की, बल्कि भाजपा के पुराने कार्यकर्ता अभिषेक चंद्रवंशी की पत्नी रेशमी चंद्रवंशी के साथ भी ठीक तरह से तालमेल बैठाया। उप महापौर पद की उम्मीदवार रेशमी चंद्रवंशी जीत चुकी हैं। सीता साहू का भी महापौर बनना अब तय है।

पटना के नगर निकाय चुनाव में महापौर पद पर जीत-हार को लेकर गणित को तीन तरह से समझें। दो समीकरणों में सीता साहू आगे रहीं, जबकि धर्म-जाति के मैनेजमेंट में वे पिछड़ गईं। इस पद पर 33 में से 31 प्रत्याशी हिंदू और दो मुस्लिम उम्मीदवार थीं। मुसलमान प्रत्याशियों में वोटों का बंटवारा नहीं हुआ, जिसके कारण पूर्व महापौर अफजल इमाम की पत्नी महजबीं ने सीता साहू को जोरदार टक्कर दी।

दूसरी तरफ, हिंदू प्रत्याशियों में वोटों का जबरदस्त बंटवारा हुआ। दो दर्जन प्रत्याशियों को दो हजार से लेकर 20 हजार तक वोट आए। सीता साहू के पक्ष में एक बड़ी बात यह रही कि कायस्थ बहुल सीट पर कायस्थों ने अपनी जाति की प्रत्याशी पर भरोसा नहीं कर भाजपा और उनका साथ दिया। वैश्य जाति के वोट भी बंटे, लेकिन कायस्थों ने अपनी जाति के प्रत्याशियों को तवज्जो नहीं दी।

बूथ-पॉलिटिकल मैनेजमेंट में आगे, इसलिए जीत सकीं
पटना की मेयर बनने के लिए जाति-धर्म के मैनेजमेंट से भी ज्यादा जरूरी था पोलिंग बूथ और पॉलिटिकल मैनेजमेंट। सीता साहू के लिए पोलिंग बूथ मैनेजमेंट सबसे आसान था। इसके अलावा आर्थिक रूप से भी वे संपन्न हैं। इसलिए पोलिंग बूथ मैनेजमेंट में उन्हें परेशानी नहीं आई। पोलिंग बूथ मैनेजमेंट का परिणाम पर असर पड़ना तय था। यही कारण है कि जिन पांच प्रत्याशियों को हर बूथ पर पोलिंग एजेंट मिल सके, वही लड़ाई में रहीं।

इस मैनेजमेंट में सीता साहू ने रेशमी चंद्रवंशी के साथ समझौता भी किया था। दोनों ने एक तरह से मिलकर चुनाव लड़ा और अंतत: इस मैनेजमेंट ने परिणाम में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा पॉलिटिकल मैनेजमेंट जरूरी था। यह हुआ भी। भाजपा के चारों विधायकों और दोनों भाजपाई सांसदों ने किसी प्रत्याशी के समर्थन में कुछ नहीं कहा, लेकिन पटना नगर निगम पर प्रभाव छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। अंदर ही अंदर सीता साहू का साथ दिया, क्योंकि अगर महजबीं जीततीं तो पटना में राजद का प्रभाव बढ़ जाता। इसी कारण, पार्टी के नाम पर जाति का गुस्सा झेलते हुए भी चार में से दो कायस्थ विधायकों ने अपनी जाति की प्रत्याशी का साथ नहीं दिया।

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बिहार निकाय चुनाव में सीता साहू ने न केवल अपनी जीत पक्की की, बल्कि भाजपा के पुराने कार्यकर्ता अभिषेक चंद्रवंशी की पत्नी रेशमी चंद्रवंशी के साथ भी ठीक तरह से तालमेल बैठाया। उप महापौर पद की उम्मीदवार रेशमी चंद्रवंशी जीत चुकी हैं। सीता साहू का भी महापौर बनना अब तय है।

पटना के नगर निकाय चुनाव में महापौर पद पर जीत-हार को लेकर गणित को तीन तरह से समझें। दो समीकरणों में सीता साहू आगे रहीं, जबकि धर्म-जाति के मैनेजमेंट में वे पिछड़ गईं। इस पद पर 33 में से 31 प्रत्याशी हिंदू और दो मुस्लिम उम्मीदवार थीं। मुसलमान प्रत्याशियों में वोटों का बंटवारा नहीं हुआ, जिसके कारण पूर्व महापौर अफजल इमाम की पत्नी महजबीं ने सीता साहू को जोरदार टक्कर दी।

दूसरी तरफ, हिंदू प्रत्याशियों में वोटों का जबरदस्त बंटवारा हुआ। दो दर्जन प्रत्याशियों को दो हजार से लेकर 20 हजार तक वोट आए। सीता साहू के पक्ष में एक बड़ी बात यह रही कि कायस्थ बहुल सीट पर कायस्थों ने अपनी जाति की प्रत्याशी पर भरोसा नहीं कर भाजपा और उनका साथ दिया। वैश्य जाति के वोट भी बंटे, लेकिन कायस्थों ने अपनी जाति के प्रत्याशियों को तवज्जो नहीं दी।

बूथ-पॉलिटिकल मैनेजमेंट में आगे, इसलिए जीत सकीं

पटना की मेयर बनने के लिए जाति-धर्म के मैनेजमेंट से भी ज्यादा जरूरी था पोलिंग बूथ और पॉलिटिकल मैनेजमेंट। सीता साहू के लिए पोलिंग बूथ मैनेजमेंट सबसे आसान था। इसके अलावा आर्थिक रूप से भी वे संपन्न हैं। इसलिए पोलिंग बूथ मैनेजमेंट में उन्हें परेशानी नहीं आई। पोलिंग बूथ मैनेजमेंट का परिणाम पर असर पड़ना तय था। यही कारण है कि जिन पांच प्रत्याशियों को हर बूथ पर पोलिंग एजेंट मिल सके, वही लड़ाई में रहीं।

इस मैनेजमेंट में सीता साहू ने रेशमी चंद्रवंशी के साथ समझौता भी किया था। दोनों ने एक तरह से मिलकर चुनाव लड़ा और अंतत: इस मैनेजमेंट ने परिणाम में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा पॉलिटिकल मैनेजमेंट जरूरी था। यह हुआ भी। भाजपा के चारों विधायकों और दोनों भाजपाई सांसदों ने किसी प्रत्याशी के समर्थन में कुछ नहीं कहा, लेकिन पटना नगर निगम पर प्रभाव छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए। अंदर ही अंदर सीता साहू का साथ दिया, क्योंकि अगर महजबीं जीततीं तो पटना में राजद का प्रभाव बढ़ जाता। इसी कारण, पार्टी के नाम पर जाति का गुस्सा झेलते हुए भी चार में से दो कायस्थ विधायकों ने अपनी जाति की प्रत्याशी का साथ नहीं दिया।



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