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Kapildev Prasad got padama shree: केंद्र सरकार ने पद्म पुरस्कारों का ऐलान कर दिया है। बिहार से पद्मश्री सम्मान पाने वालों में सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार समेत कपिलदेव प्रसाद और सुभद्रा देवी का नाम शामिल है। कपिलदेव प्रसाद 15 वर्ष की आयु से बुनकर का काम करते आ रहे हैं। बावन बूटी साड़ी निर्माण के लिए इन्हें पद्मश्री पुरस्कार दिए जाएंगे।
यही वह राज्य है, जहां आज भी देश की पहली और प्राचीन नालंदा यूनिवर्सिटी के अवशेष हैं। इतना ही नहीं, नालंदा के हस्तकरघों से बुनी जाने वाली बावनबूटी हस्तशिल्प कला भी बहुत लोकप्रिय है। हालांकि, बहुत कम लोगों को ही अब इस कला के बारे में जानकारी है। क्योंकि, इस कला पर आज भी आधुनिकता और फैशन की परत नहीं चढ़ पायी है। बावनबूटी हस्तकला के माध्यम से तैयार की जाने वाली विशेष साड़ी, जिसे ‘बावन बूटी साड़ी’ कहा जाता है। साधारण कॉटन और तसर के कपड़े पर हाथ से की गई कारीगरी वाली यह साड़ी देश के लिए किसी विरासत से कम नहीं है।
बौद्ध धर्म का प्रचार करने वाली इस साड़ी को नालंदा के नेपुरा गांव में सदियों से बनाया जाता रहा है। इसे बावबूटी साड़ी इसलिए कहा जाता है कि पूरी साड़ी में एक जैसी बावन बूटियां यानि ‘मौटिफ’ होती हैं। दिखने में बेहद साधारण इस साड़ी को बिहार की हर महिला की वॉर्डरोब में देखा जा सकता है। क्योंकि, यह साड़ी पहनने में बेहद आरामदायक होती है। और, इसे महिलाएं घर से लेकर बाहर तक किसी भी छोटे-मोटे अवसर पर पहन सकती हैं।
साड़ी की खासियत
बावनबूटी साड़ी हस्तकरघा पर तैयार की जाती है। इसकी कई वेरायटी हैं। खासियत यह कि साड़ी के निर्माण में किसी खास चिह्न का इस्तेमाल (बूटी ) 52 जगहों पर की जाती है। साड़ी की कीमत 2 हजार से 20 हजार तक होती है। खास यह भी कि इसकी मांग न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी काफी है। यह बात आम है कि भारत से निकले बौद्ध धर्म की शुरुआत बिहार से ही हुई थी। आज भी इस धर्म के प्रचारक भारत में हैं। और, इसे मनने वालों की भी कमी नहीं है। ऐसा कहा जाता है कि इस साड़ी में बौद्ध धर्म की झलक देखने को मिलती है। इस साड़ी में कम-से-कम बावन बूटियां होती हैं। यह बहुत ही महीन होती हैं। और, इन्हें धागों की मदद से साड़ी पर बुना जाता है। इस कला की विशेषता यह भी है कि पूरे कपड़े पर एक ही डिजाइन को बावन बार बूटियों के रूप में बनाया जाता है।
बावन बूटी के माध्यम से छह गज की साड़ी में बौद्ध धर्म की कलाकृतियों को उकेरा जाता है, जो ब्रह्मांड की सुंदरता का वर्णन करती हैं। बौद्ध धर्म में हाठ चिह्न होते हैं। बावन बूटी हस्तकला में इन्हीं चिह्नों का प्रयोग किया गया है। यह बूटियां काफी महीन होती हैं और सादे कपड़े पर बुनी जाती हैं। बावन बूटी में कमल का फूल, बोधी वृक्ष, बैल, त्रिशूल, सुनहरी मछली, धर्म का पहिया, खजाना, फूलदान, पारसोल, शंख आदि चिह्न होते हैं। ये सभी बौद्ध धर्म के प्रतीक माने जाते हैं। इस कला से सजीं साड़ियां, चादर, शॉल, पर्दे आदि बाजार में मिलते हैं। इनकी लोकप्रियता भारत के अलावा जर्मनी, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया तक फैली हुई है। इसके अलावा बौद्ध धर्म मानने वाले देशों में भी इस कला के कद्रदान हैं।
बावन बूटी कला को कब मिली पहचान
वर्षों से इस कला को करने वाले कारीगरों को कभी भी न तो राज्य स्तर पर बहुत सराहना मिली, न ही विश्व स्तर पर। मगर देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बावन बूटी से बने पर्दों को राष्ट्रपति भवन में जब लगवाया तो लोगों को इस कला के बारे में पता चला। अब तो इस कला को यूनेस्को भी बढ़ावा दे रहा है। हालांकि, आज भी फैशन की दुनिया से यह कला कोसों दूर है। लेकिन, इसका विकास लगातार होता नजर आ रहा है और जल्द ही फैशन के गलियारों में भी हमें बावन बूटी कला देखने को मिल जाएगी।
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