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Bihar Politics: साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने आनंद मोहन को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन बाद में उसे आजीवन कारावास की सजा में बदल दिया गया। नीतीश सरकार एक माफिया डॉन को जेल से रिहा करने के लिए इतनी हड़बड़ी में क्यों है और इसके सियासी समीकरण क्या हैं?
जेल मैनुअल में बदलाव के मुताबिक, अब किसी सरकारी अधिकारी की हत्या में दोषी पाए गए अभियुक्त को भी उसके अच्छे आचरण के आधार पर जेल से रिहा किया जा सकता है। पहले ऐसा प्रावधान नहीं था। जिस आनंद मोहन को छुड़ाने की कोशिश में सरकार है, 29 साल पहले उसने क्या किया था, यह जानने की जरूरत है।
- 1994 में बिहार पीपल्स पार्टी (BPP) का नेता और उस जमाने का गैंगस्टर कहा जाने वाला छोटन शुक्ला पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था, जिसकी शव यात्रा में हजारों लोगों की भीड़ जुटी।
- भीड़ की अगुआई कर रहे BPP के संस्थापक आनंद मोहन ने गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैय्या को उनकी कार से बाहर निकाला और भीड़ के हवाले कर दिया। आंध्र प्रदेश के गरीब दलित परिवार में जन्मे 35 साल के IAS कृष्णैय्या को पहले पीटा गया, फिर उन पर पत्थर बरसाए गए और फिर उन्हें गोली मार दी गई। तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे।
- तोमर राजपूत बिरादरी से आने वाला आनंद मोहन एक डीएम की हत्या का ही अभियुक्त नहीं है, उस पर ढेरों और मामले भी हैं।
- जेल में रहते हुए ही 1996 में वह लोकसभा का चुनाव भी जीत चुका है। पुलिस रेकॉर्ड के मुताबिक, वह एक स्वतंत्रता सेनानी का बेटा है।
- साल 2007 में पटना हाईकोर्ट ने उसे मौत की सजा सुनाई थी। आजाद भारत के इतिहास में यह इकलौता मामला था, जिसमें किसी राजनेता को मौत की सजा सुनाई गई। हालांकि अगले साल 2008 में उसकी सजा सश्रम आजीवन कारावास में बदल दी गई।
हड़बड़ी क्यों
नीतीश सरकार एक माफिया डॉन को जेल से रिहा करने के लिए इतनी हड़बड़ी में क्यों है और इसके सियासी समीकरण क्या हैं? यह तो सर्वविदित है कि बिहार की पूरी राजनीति जातियों पर ही चलती आई है।
- इस साल जनवरी में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने पटना में राजपूत सम्मेलन का आयोजन किया था। उसे अहसास हो गया है कि सिर्फ पिछड़ों के दम पर लोकसभा की पर्याप्त सीटें नहीं जीती जा सकतीं।
- जब तक वह बीजेपी के साथ थी, उसे अगड़ी जातियों के वोट भी मिल जाते थे। अब हालात एकदम उलट हैं। वह अगड़ों का साथ नहीं ले पाती है तो नैया डूबते देर नहीं लगेगी।
- बताया जाता है कि उस सम्मेलन में आनंद मोहन के समर्थकों ने उनकी रिहाई के लिए नारेबाजी की तो नीतीश कुमार ने उनसे कहा था, ‘आप उनकी चिंता न करें। मैं भी इसी कोशिश में जुटा हुआ हूं कि वह जल्द आपके बीच आएं।’
- वैसे नीतीश सरकार की इस मेहरबानी का अहसास तो बिहार के लोगों को शायद उसी दिन हो गया था, जब आनंद मोहन अपने बेटे की शादी से पहले होने वाली रस्मों को निभाने के लिए जेल से पैरोल पर बाहर आया था।
- इसी समारोह के दौरान जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह और आनंद मोहन की एक-दूसरे को गले लगाने और लड्डू खिलाने की तस्वीर वायरल हुई थी।
गणित वोट का :
बिहार में अगड़ी जातियों का कुल 12 फीसदी वोट बैंक है, जिनमें तकरीबन 4 फीसदी राजपूत हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यही बीजेपी का सबसे मजबूत आधार रहा है। आज भी यह बीजेपी का ही वोट बैंक समझा जाता है। लोगों के लिए डॉन ही सही, लेकिन अपनी बिरादरी में आनंद मोहन की आज भी तूती बोलती है। देखने वाली बात होगी कि यह तूती वोटों में कितनी तब्दील होती है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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