![Opinion : 19 पर देंगे ध्यान तब ही बिहार की सियासत में 20 साबित होंगे प्रशांत किशोर! Opinion : 19 पर देंगे ध्यान तब ही बिहार की सियासत में 20 साबित होंगे प्रशांत किशोर!](https://muzaffarpurwala.com/wp-content/uploads/https://navbharattimes.indiatimes.com/photo/msid-91398646,imgsize-635945/pic.jpg)
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बिहार में जातीय समीकरण
अब सवाल उठता है कि बिहार में प्रशांत किशोर कैसे 20 साबित होंगे? इसके लिए सबसे पहले आपको जातिगत आंकड़ों को समझना होगा। ये भी समझना होगा कि बिहार में सियासत करना है तो कहां सेंध लगाना है और कहां काम करना है। बिहार में 82 फीसदी हिंदू, इसमें 51 फीसदी आबादी ओबीसी की। 2011 की जनगणना के मुताबिक, बिहार की जनसंख्या 10.38 करोड़ थी। इसमें 82.69% आबादी हिंदू और 16.87% आबादी मुस्लिम समुदाय की थी। हिंदू आबादी में 19% सवर्ण, 51% ओबीसी, 15.7% अनुसूचित जाति और करीब 1 फीसदी अनुसूचित जनजाति है। मोटे-मोटे तौर पर कहा जाता है कि बिहार में 16 फीसदी यादव समुदाय, कुशवाहा यानी कोइरी 6.4 फीसदी, कुर्मी 4 फीसदी हैं। सवर्णों में भूमिहार 6 %, ब्राह्मण 5.5%, राजपूत 5.5% और कायस्थ 2 फीसदी के करीब हैं। आंकडा ऊपर-नीचे हो सकता है।
पिछड़ों की राजनीति सत्ता की धुरी
हालांकि मंडल कमीशन के बाद जब पिछड़ों की राजनीति सत्ता की धुरी बन चुकी है,उसमें पीके की जगह कहां बनती है। खासकर बिहार में जब पिछड़ों के रहनुमा के तौर पर लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की उपस्थिति को नकारा नहीं जा सकता है। बीजेपी भी पिछड़ा वोट बैंक को लेकर सजग और सक्रिय है। हालांकि प्रशांत किशोर जातीय राजनीति को नकारते रहते हैं। लेकिन बिहार में सियासत करना है तो राजनीति को जाति से अलग करके देखना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। यही नहीं, प्रशांत किशोर की अपनी जाति भी आड़े आएगी।
पीके को किंग नहीं किंगमेकर बनना होगा
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल ये है कि प्रशांत किशोर के लिए बिहार की सियासत में कहां जगह बनती है। सबसे पहले पीके को बिहार की सियासत में लंबे रेस का घोड़ा बनना है तो किंग नहीं किंगमेकर बनना होगा। इसके लिए उन्हें पिछड़ों की राजनीति में उलझने के बजाय सवर्ण वोटर्स पर फोकस करना होगा। इसके पीछे जो कारण है, वो सभी राजनीतिक दल के लोग जानते हैं। गाहे-बगाहे तेजस्वी यादव भारी मन से कभी-कभी बोल ही देते हैं। यही कारण है कि परशुराम जयंती के मौके पर उन्होंने मंच से माफी मांगी थी। तेजस्वी को पता है कि बिहार में सवर्ण किंग नहीं है लेकिन किंगमेकर तो जरूर हैं। ऐसे में इन्हें इग्नोर नहीं किया जा सकता है।
सवर्ण वोटरों के पास अभी भी स्वीकार्य नेतृत्व का अभाव
इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि बिहार में सवर्ण वोटरों के पास अभी भी स्वीकार्य नेतृत्व का अभाव है। भले ही सवर्ण वोटर पिछली और वर्तमान सरकार से खुश नहीं हैं, लेकिन छोटी छोटी राजनैतिक इच्छाओं को लेकर प्रेशर ग्रुप बनने में भी सक्षम नहीं हैं। बीजेपी भले ही सवर्ण वोटरों पर अपना दावा करती हो, लेकिन उसे भी सत्ता में आने के लिए पिछड़ों की ही राजनीति करनी पड़ती है। साफ-साफ शब्दों में कहें तो बीजेपी पिछड़ों की राजनीति ही मात्र एक सहारा है। बीजेपी के लिए सवर्ण वोटर्स दूसरे पायदान पर ही रहेंगे।
19 फीसदी सवर्ण बिहार की राजनीति में किंग तो नहीं किंगमेकर की जरूर
ऐसे में प्रशांत किशोर अगर सवर्ण वोटर पर फोकस करते हैं और उन्हें गोलबंद करने सफल हो जाते है तो 19 फीसदी सवर्ण वोटर बिहार की राजनीति में किंग तो नहीं किंगमेकर की भूमिका जरूर निभा सकते हैं। वैसे बिहार में हुए उपचुनाव के बाद बिहार के प्रमुख दलों के ये बाते जरूर समझ में आने लगी है कि सवर्ण वोटरों की अहमियत क्या है। यही कारण है कि पिछड़ों की राजनीति करने वाले भी अब सवर्ण वोटर पर डोरे डालने लगे हैं।
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