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सड़क छाप गुंडा
हाल के दिन में ही वीआईपी के संस्थापक नेता मुकेश सहनी का एक बयान बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल के लिए आया है। यह किसी पत्रकार के पूछे गए टिप्पणी पर नहीं कहा गया। यह टिप्पणी तब आई जब मुकेश सहनी ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि संजय जायसवाल तो सड़क छाप गुंडा हैं। परंतु इस बयान पर आयोग की तरफ से कोई एहतियाती कदम नहीं उठाए गए।
यह कोई अकेले मुकेश सहनी की बात नहीं है। बिहार विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष सम्राट चौधरी भी राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह पर कॉमेंट करते बोल गए कि ललन सिंह तो नीतीश के नौकर हैं। और एक बार तो पूर्व सांसद अरुण कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नीतीश कुमार पर हमला करते कह डाला कि चढ़ कर छाती तोड़ देंगे। और ऐसा इसलिए हो रहा है कि जिन संवैधानिक संस्थाओं को खुद व खुद संज्ञान लेना चाहिए वैसी संस्थाएं शिथिल पड़ी हैं। नतीजतन राजनीतिक माइलेज लेने के लिए नेता राजनीतिक मर्यादा, शुचिता का उल्लघंन करते नजर आते हैं।
तो क्या विषाक्त वातावरण बनाने का यह ट्रेलर तो नहीं
इतिहास गवाह है कि अमर्यादित रूप से दिए गए राजनीतिक बयान समाज में किस तरह से विषाक्त वातावरण तैयार कर समाज को आमने सामने खड़े कर देते हैं। ऐसे बयानों का हश्र को याद करें तो कुछ दशक पहले एक बयान का समाज पर काफी कुप्रभाव था। यह बिहार पर लालू प्रसाद के नेतृत्व में आरजेडी की सरकार का समय था जब एक बयान से पूरा बिहार जातीय अग्नि में जलने लगा था। और वह बयान था ‘भूरा बाल साफ करो’ । इस बयान ने पूरी तरह से सवर्ण समाज को आरजेडी की राजनीति के विरुद्ध कर गया।
‘रोड छाप गुंडा जैसे बात कर रहे संजय जायसवाल…’ मुकेश सहनी ने बिहार बीजेपी अध्यक्ष को क्यों कहा ऐसा?
बगल के उत्तरप्रदेश की बात करें तो मायावती के समय में एक नारा ने पूरे समाज के बीच एक अलगाववादी सोच को स्थापित कर दिया। और वह बयान जो नारे की शक्ल में था ‘तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ इस नारे ने भी समाज को तोड़ कर रख दिया।
संविधान विशेषज्ञ डॉ. आलोक पांडे का कहना है कि वैसे तो चुनाव आयोग को कानूनी दंड देने का अधिकार प्राप्त नहीं है पर वे ऐसे उत्तेजक भाषा का प्रयोग करने वाले बयानवीरों को बयान देने पर रोक लगा सकती है। व्यक्ति जिस दल से जुड़ा है उस दल को भी नोटिस भेज सकती है। दिए गए बयान पर एक्सप्लेनेशन मांग सकती है। परंतु चुनाव आयोग को दंड देने का कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है। हां, प्रशासन सीआरपीसी 1951 के तहत करवाई कर सकता है। आयोग चाहे तो ऐसे व्यक्ति के चुनावी सभा करने से रोक सकता है। ऐसे व्यक्ति को जुलूस निकालने पर रोक सकता है।
परंतु इन दिनों चुनाव आयोग का ऐसा कोई कदम इन बयानवीरों के विरुद्ध नहीं आया है। नतीजतन उत्तेजक बयान देकर राजनीतिक माइलेज लेना इनकी आदत में शुमार हो जाएगा। ऐसे में आगामी 2024और 2025 में होने वाले चुनाव पर इन बयानवीरों का समाज को खंडित करने वाले बयानों की भरमार हो जाएगी। ऐसे लोगों से चुनावी माहौल के विषाक्त होने का डर बना रहेगा।
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