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पटना. आने वाले कुछ महीनों के अंदर बिहार में कोई चुनाव नहीं है, लेकिन जिस तरह से महापुरुषों की जाति को लेकर यहां राजनीति गर्माई गई, उससे यही साबित होता है कि बिहार की सियासत में जाति की जड़ें कितनी गहराई तक समा चुकी हैं. सभी पार्टियां जातीय समीकरण को और अधिक गाढ़ा बनाने में लगी हुई हैं, जिसके लिए नित-नए जुगाड़ भी लगाए जा रहे हैं.
पटना में सम्राट अशोक की जयंती को लेकर चारों तरफ उत्साह है. बीजेपी और जदयू दोनों ही खेमे में कुशवाहा नेता उत्सव मना रहे हैं. 8 अप्रैल को बीजेपी नेता और पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी की अगुवाई में बड़ा कार्यक्रम हुआ, जिसमें बिहार और उत्तर प्रदेश बड़े-बड़े कुशवाहा नेता शामिल हुए. दरअसल, इस राजनीति के मूल में 7 प्रतिशत कुशवाहा वोट बैंक है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कुर्मी जाति से संबंध रखते हैं, वे लव-कुश समीकरण के जनक भी माने जाते हैं. जदयू से कुशवाहा नेता उपेंद्र कुशवाहा सम्राट अशोक पर हो रहे कार्यक्रमों की अगुवाई करने आए. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ऐसे कार्यक्रमों को लेकर बहुत खुश होते हैं. हों भी क्यों नहीं, क्योंकि नीतीश कुमार ने ही सम्राट अशोक की प्रतिमा भी बनवाई, हालांकि किसी को नहीं पता कि सम्राट अशोक किस वर्ष पैदा हुए या सम्राट अशोक कैसा दिखते थे.
नीतीश कुमार और लव-कुश समीकरण
बिहार में लव-कुश जातीय समीकरण का इतिहास भी खूब रोचक है, जिसे साधने का काम काफी हद तक नीतीश कुमार ने किया ताकि वे लालू यादव के मजबूत माय (मुस्लिम+यादव) समीकरण का तोड़ निकाल सकें.
लव यानी कुर्मी और कुश का मतलब कुशवाहा
वही लव-कुश जो भगवान राम के पुत्र थे. वही राम जो क्षत्रीय थे. वही राम जो मर्यादा पुरुषोत्तम भी थे. वही राम जो, कालांतर में हजारों साल बाद कई मिथकीय अवधारणा को तोड़ते हुए कई जातियों के पितृ पुरुष भी माने गए.
किसी के लिए कुशवाहा, किसी के लिए क्षत्रीय
आज कई जातियों के प्रतिनिधियों के लिए सम्राट अशोक कुशवाहा हैं, कई जातियों के लिए सम्राट अशोक क्षत्रीय हैं. इतिहास का अब सुविधानुसार राजनीतिकरण किया जा रहा है. जातियों का वर्गीकरण चुनावी समझ के हिसाब से विकसित हो रहा है. फिलहाल, एनडीए के दोनों घटकों, बीजेपी और जदयू में ही परस्पर प्रतिस्पर्धी सियासत चल रही है कि कौन कुशवाहा वोट बैंक पर काबिज होता है.
जातियों में बंटता समाज
वही सम्राट अशोक, जिन्होंने पूरे भारत वर्ष को एक सूत्र में पिरोने का काम किया, जिनके समय में भारत की सीमाएं अफगानिस्तान, ईरान और इराक तक फैली हुई थीं. वही सम्राट अशोक जिन्होंने बौद्ध का प्रचार प्रसार श्रीलंका, चीन, तिब्बत, जापान, अफगानिस्तान से लेकर सुमात्रा तक किया. जिनके शासनकाल में भारतवर्ष मौजूदा भारत से कम से कम दो तीन गुना ज्यादा बड़े इलाके में फैला हुआ था. मौर्य वंश के समय राष्ट्र की अवधारणा को बल मिला. चंद्रगुप्त मौर्य से लेकर, बिन्दुसार और सम्राट अशोक तक आते-आते, भारतवर्ष एक महान शक्ति बना. आज वही बिहार है, जहां समाज खंड-खंड में खंडित हो रहा है. जाति-जाति में समाज बंट रहा है.
चक्रवर्ती सम्राट से ज्यादा जातीय प्रतिनिधि
नीतीश कुमार ने सालों पहले इतिहासकारों की राय लेकर सम्राट अशोक की प्रतिमा गढ़वाने का काम किया. उनके जन्मदिन का कोई प्रमाण नहीं है लेकिन जदयू अष्टमी के दिन सम्राट अशोक की जयंती मनाता है. ठीक इससे एक दिन पहले यानी सप्तमी को भाजपा ने सम्राट अशोक की जयंती मनाई. सच्चाई तो ये है कि सम्राट अशोक ने हिंसा त्याग कर बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था, उस वक़्त जाति की अवधारणा थी नहीं, वर्णाश्रम अस्तित्व में था. आज वही बिहार है, जहां सम्राट अशोक पर कार्यक्रम खत्म होने के बाद जातीय जनगणना की महत्ता पर प्रकाश डाला गया. सम्राट अशोक, चक्रवर्ती सम्राट से ज्यादा आज कुशवाहा समाज के नेता के तौर पर याद किए गए. आज बीजेपी और जदयू के नेताओं ने कुशवाहा समाज को जातीय सम्मान की याद दिलाते अशोक को महान राजा बताया. वहीं क्षत्रीय समाज में अंदर ही अंदर नाराजगी देखी गई जो पिछले कई दिनों से सम्राट अशोक को कुशवाहा बताने का विरोध करते रहे हैं. इसके पक्ष में कई ऐतिहासिक उद्धरण भी दिए गए.
सम्राट अशोक की जाति पर एक राय नहीं
वामपंथी इतिहासकर रोमिला थापर ने सम्राट अशोक के बारे में लिखा है कि उनकी किसी जाति से जुड़े होने का कोई प्रमाण नहीं हैं. इतिहासकर आरएस शर्मा ने सम्राट अशोक के एक दासी पुत्र होने की बात कही है. बौद्ध और जैन साहित्यों में मौर्य वंश का ताल्लुक क्षत्रीय वंश से होने का जिक्र किया है. मौर्य वंश का संबंध क्षत्रीय कुल से होने का प्रमाण पाली बौद्ध धर्म ग्रन्थों, दिव्यावदान, अशोकवदन और महावंश में भी मिलता है. गुजरात, खानदेश और आगरा के इलाके में आज भी मोरी (मौर्य का अपभ्रंश) वंश का प्रमाण है. राजा धवल मौर्य के मथुरा में शासन करने का प्रमाण शिलालेखों में आज भी मिलता है.
ये है बड़ी चिंता की बात
खैर, बड़ा सवाल ये नहीं है कि सम्राट अशोक क्या थे, क्या हैं और उन्होंने क्या किया? समझने वाली बात ये है कि वे अब एक महान चक्रवर्ती सम्राट के तौर पर कम एक जातिविशेष के नेता ज्यादा बन कर रह जाएंगे.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
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