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Opposition Unity : करीब 50 साल बाद जय प्रकाश नारायण (जेपी) एक बार राजनीतिक चर्चा के केंद्र में हैं। नीतीश कुमार और ममता बनर्जी की मुलाकात में जेपी का नाम नए सिरे से उभरा। ममता ने देश में सत्ता परिवर्तन के लिए जेपी मूवमेंट को याद किया और विपक्षी नेताओं की अगली बैठक जेपी आंदोलन की भूमि बिहार में बुलाने का प्रस्ताव दिया।
हाइलाइट्स
- ममता को जेपी आंदोलन याद है, पर अपना कारनामा नहीं
- जेपी का विरोध कर ही ममता बनर्जी सुर्खियों में आ गई थीं
- उसी जेपी की दुहाई देकर पटना में विपक्षी बैठक की सलाह
- मई के अंत में हो सकती है विपक्षी दलों की पटना में बैठक

जब जेपी की कार की बोनट पर चढ़ गई थीं ममता बनर्जी
जब जेपी की कार पर चढ़ कर नाचने लगीं थीं ममता
1955 में कोलकाता में जन्म लेने वाली ममता बनर्जी शुरू से राजनीति में सक्रिय रहीं। वे जब 15 साल की थीं, तो एक ऐसा कारनामा किया कि रातोंरात सुर्खियों में आ गई थीं। तब वह कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज में पढ़ रही थीं। पढ़ते समय उन्होंने कांग्रेस (आई) के स्टूडेंस विंग छात्र परिषद की स्थापना की। उनका राजनीतिक करियर 1970 के दशक में कांग्रेस से शुरू हुआ। साल 1975 की बात है। उन्होंने समाजवादी कार्यकर्ता और राजनेता जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन का विरोध अपने अंदाज में किया। जेपी की कार के बोनट पर चढ़ कर उन्होंने अपना विरोध जताया। जयप्रकाश नारायण कोलकाता के दौरे पर पहुंचे थे। जेपी अन्य आंदोलन समर्थक नेताओं के साथ कोलकाता में एक सभा को संबोधित करने वाले थे। जैसे ही उनका काफिला शहर में पहुंचा, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने रास्ता रोक दिया। इसी दौरान ममता बनर्जी जेपी की कार के बोनट पर चढ़ गईं। उन्होंने जमकर नारेबाजी की। कहते तो हैं कि उन्होंने जेपी की कार के बोनट पर चढ़ कर डांस भी किया। उसके बाद ममता बनर्जी मीडिया में छा गईं।
जनता पार्टी के पीएम मोरारजी को काला झंडा दिखाया
कांग्रेस में रहते ममता बनर्जी का यह पहला कारनामा था। जेपी मूवमेंट की वजह से 1977 में कांग्रेस के पांव उखड़ गए। जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी सरकार में पीएम बने मोरारजी देसाई। मोरारजी भाई जब कोलकाता आए तो उन्हें काला झंडा दिखाने की कांग्रेसियों ने योजना बनाई। कड़ी सुरक्षा के बीच यह संभव नहीं था। इसका जिम्मा ममता बनर्जी को सौंपा गया। रास्ता बदल कर बदले लिबास में ममता बनर्जी अचानक रेड रोड पर पीएम की कार के सामने प्रकट हो गईं। उनके हाथ में काला झंडा था। उन्होंने लहराना शुरू किया। फिर तो बाकी कांग्रेसी भी सामने आ गए थे। ममता के चर्चा में आने का यह दूसरा मौका था। उसके बाद तो ममता बनर्जी सियासत में दनादन पांव बढ़ाने लगीं।
जेपी का विरोध, पर जेपी आंदोलन की जमीन पसंद है
ममता बनर्जी ने भले ही जेपी का विरोध किया, लेकिन उनके आंदोलन की सफलता को वे शिद्दत से स्वीकारती हैं। तभी तो उन्होंने नीतीश कुमार से मुलाकात के दौरान कहा कि बिहार आंदोलन की भूमि है। सत्ता के खिलाफ जेपी का आंदोलन पटना से ही शुरू हुआ था। आंदोलन सफल भी हुआ। इसलिए विपक्षी दलों की अगली बैठक पटना में ही बुलाई जानी चाहिए। नीतीश ने ममता का प्रस्ताव मान लिया है। पटना में बैठक आयोजित करने की तैयारी शुरू हो गई है।
जेपी ने कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष को एक किया था
जेपी ने 1977 के लोकसभा चुनाव के पहले तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ विपक्ष को एक मंच पर ला दिया था। वामपंथियों को छोड़ सभी विपक्षी दल जेपी के आह्वान पर अपनी पहचान को तिलांजलि दे एक मंच पर जमा हो गए थे। जनता पार्टी का गठन हुआ। जनता पार्टी सरकार के पहले पीएम बने मोरारजी देसाई। हालांकि जनता पार्टी की सरकार दोहरी सदस्यता के सवाल पर अधिक दिन तक टिक नहीं पाई। दो साल में ही सरकार गिर गई। 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौट आई थीं।
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