Home Bihar Opinion: करीबियों के भी ‘कंटक’ बनने लगे नीतीश! आखिर इतने अविश्वसनीय क्यों हो गए बिहार के सीएम?

Opinion: करीबियों के भी ‘कंटक’ बनने लगे नीतीश! आखिर इतने अविश्वसनीय क्यों हो गए बिहार के सीएम?

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Opinion: करीबियों के भी ‘कंटक’ बनने लगे नीतीश! आखिर इतने अविश्वसनीय क्यों हो गए बिहार के सीएम?

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रिपोर्ट द्वारा रमाकांत चंदन | द्वारा संपादित ऋषिकेश नारायण सिंह | नवभारतटाइम्स.कॉम | अपडेट किया गया: 25 जनवरी 2023, सुबह 9:33 बजे

Bihar Politics: बिहार की राजनीति में अचानक से नीतीश कुमार अविश्वासी नेता बनते जा रहे हैं। और तो और उनके ऊपर अपने करीबी नेताओं को किनारे करने के आरोप भी लग रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा इसकी ताजा बानगी बनते दिख रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों हुआ, पढ़िए इस खबर में।

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पटना: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार पर यह आरोप लगने लगा है कि वो सबसे अनप्रेडिक्टेबल और अविश्वसनीय नेता बनते जा रहे हैं। वे अपने बयान से पलट जा रहे हैं ।वो अपने वादे से मुकर जा रहे हैं। भाजपा और राजद से दो-दो बार संबंध तोड़े। रही नेताओं की बात तो वे भी नीतीश कुमार की बेरुखी झेलते रहे हैं। एक-एक कर उनसे नेता दूरी बनाने लगे हैं। आरसीपी कभी इनके दाहिने हाथ हुआ करते थे। आज पार्टी से ही हटा दिए गए। ललन सिंह को भी एक समय पार्टी से निकाला गया। अब उपेंद्र कुशवाहा को अलग थलग करने का गेम खेला खेला जा है।

भाजपा और राजद ने भी झेला

नीतीश कुमार कितने अनप्रिडेक्टेबल हैं, इसे भाजपा ने भी झेला है। 2013 से ले कर 2015 तक भाजपा इनकी नाराजगी का शिकार रही। 2015 में तो विधान सभा का चुनाव राजद के साथ मिल कर लड़ा और सरकार बनाई। लेकिन बीच में ही राजद से बिदक गए और भाजपा के साथ जा कर सरकार बनाई। ऐसा उन्होंने तब किया जब उन्होंने 2015 में न जाने कितनी बार कहा कि मिट्टी में मिल जायेंगे, भाजपा में नहीं जाएंगे। पर राजद को छोड़ते वक्त जरा भी नहीं सोचा की जनता के मैंडेट काअपमान है। ठीक उसी तरह से 2020 का चुनाव नीतीश ने भाजपा को साथ ले कर लड़ा। मगर 2022 में भाजपा से नाता तोड़कर राजद के साथ एक बार फिर सरकार बना ली जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि यह एक असहज गठबंधन है। इन दोनो स्थितियों में लोकतंत्र की मर्यादा बचाने के लिए चुनाव में नहीं गए पर अपनी कुर्सी पर विराजमान जरूर रहे।
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उपेंद्र कुशवाहा भी होने जा रहे हैं शिकार

वैसे तो नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा के बीच तनाव का आलम कई बार आया और उपेंद्र कुशवाहा पार्टी छोड़ते रहे। हालिया स्थिति यह है कि मार्च 2021 में उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार के संपर्क में आए और नीतीश कुमार से फिर एक बार हाथ मिलाया। वह भी निराले अंदाज में रालोसपा का जदयू में विलय ही करा डाला।इस विलय पर नीतीश कुमार काफी खुश थे। कुशवाहा का हाथ पकड़कर सीएम नीतीश ने तब कहा भी था कि अब एक साथ मिलकर प्रदेश और देश की सेवा करेंगे। लेकिन नीतीश कुमार का वादा एक बार फिर टूटता नजर आ रहा है।
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जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव को भी किया दरकिनार

राजनीतिक गलियारों में तो आज भी यह आरोप नीतीश कुमार पर लगता है कि एक समय राजनीति की एबीसी सिखाने वाले जॉर्ज और शरद यादव का भी साथ छोड़ डाला। उपेंद्र कुशवाहा ने भी इस बात को उजागर करते कहा कि अंतिम समय में शरद यादव ने काफी रोआंसे हो कर कहा था कि कैसे उनके शिष्यों ने अंतिम समय में उनका फोन तक उठाना बंद कर दिया था।
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आरसीपी भी कभी थे दाहिने हाथ

नीतीश कुमार और आरसीपी का संबंध तब से था जब नीतीश कुमार केंद्र में मंत्री थे और वे आईएएस अधिकारी के तहत उनके मंत्रालय से जुड़े थे। बाद में वे राजनीति में आए और नीतीश कुमार के सबसे करीबी नेता बन गए। लेकिन एक समय ऐसा आया जब उन्हें दूध में मक्खी की तरह निकाल दिया गया। आज के राजनीतिक हालात पर आरसीपी कहते हैं कि नीतीश के मंत्री अनाप शनाप बयानबाजी कर समाज को तोड़ने के बात कह रहे हैं इसके बावजूद मुख्यमंत्री ने चुप्पी साध रखी है। नीतीश कुमार सबसे पहले अपने मंत्रियों को बुलाकार संविधान, सनातन धर्म, परंपरा इन सब चीजों की जानकारी दें।

क्या कहते हैं भाजपा नेता विजय सिन्हा

बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता विजय कुमार सिन्हा जेडीयू में चल रही तानातनी को लेकर कहते हैं कि ‘नीतीश कुमार अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए किसी की भी बलि ले सकते हैं, चाहे वह पार्टी के प्रति कितना भी ईमानदार क्यों न हो। कुशवाहा कभी कभी सही बात बोल देते हैं जो नीतीश कुमार को नागवार गुजरती है। नीतीश अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए अबतक बहुत से लोगों को बलि चढ़ा चुके हैं और अब अगला नंबर उपेंद्र कुशवाहा का है। नीतीश कुमार को सिद्धांतवादी और वफादार लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं। अपने स्वार्थ और अहंकार के लिए वे ऐसे किसी भी शख्स की बलि चढ़ा सकते हैं।’

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