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राजू के लिए रोजना पितृपक्ष
हमारे सनातन धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से वर्ष के मात्र 15 दिनों का समय पूर्वजों के लिए निर्धारित है। जिसे पितृपक्ष कहा जाता है। वहीं, राजू अपने जीवन के हर पल को पितृपक्ष की तरह पिता की पूजा करते हुए बिताना चाहता है। राजू रोजाना प्रतिमा के आगे भोजन अर्पित कर पितृ देवो भवः के मंत्र को साकार करने में जुटा है। राजू के पिता एक शिक्षक रहे और वर्ष 2011 में उनका निधन हो गया था।
निधन के बाद बनाई प्रतिमा
पिता के निधन के बाद निराश राजू ने अपने पिता की प्रतिमा बनवाई और गत 11 सालों से उनकी पूजा करते आ रहे हैं। राजू की पिता भक्ति इन दिनों इलाके में चर्चा का विषय बनी हुई है। राजू के पिता की प्रतिमा की पूजा अर्चना में उनके पूरे परिवार का सक्रिय भूमिका रहती है। ये कार्य उनकी नियमित दिनचर्या का एक हिस्सा है। सुबह में सबसे पहले भोजन की थाली मूर्ति के आगे रखी जाती है। उसके बाद प्रतिमा को स्नान कराया जाता है और चंदन का लेप लगाया जाता है।
रोजाना करता है पूजा
राजू की इस पिता भक्ति को लेकर समाज में काफी चर्चा होती है। राजू को समाज काफी मानता है। राजू के इस कार्य की प्रशंसा करते हुए संस्कृत शिक्षक प्रधानाध्यापक गोपाल त्रिपाठी कहते हैं कि आज की तारीख में ऐसा पुत्र सबको नसीब हो। वहीं हराजी पंचायत के मुखिया भोला मांझी राजू की सराहना करते हैं। राजू की पिता भक्ति देखकर लोगों के मुंह से बरबस एक कविता फूट पड़ती है। जिसमें कहा गया है कि पिता रोटी है, पिता कपड़ा है, पिता मकान है, पिता नन्हे से परिन्दे का बड़ा सा आसमान है।
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