Home Bihar Nitish Kumar से ‘Minus 4’ के चलते Telangana CM KCR ने काटी कन्नी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता

Nitish Kumar से ‘Minus 4’ के चलते Telangana CM KCR ने काटी कन्नी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता

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Nitish Kumar से ‘Minus 4’ के चलते Telangana CM KCR ने काटी कन्नी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता

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रिपोर्ट द्वारा रमाकांत चंदन | द्वारा संपादित ऋषिकेश नारायण सिंह | नवभारतटाइम्स.कॉम | अपडेट किया गया: 20 जनवरी 2023, सुबह 9:41 बजे

Bihar Politics and KCR-Nitish Kumar : तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव ने नीतीश को न्योता न देते हुए विपक्षी एकता से उन्हें किनारे लगा दिया। सवाल ये उठता है कि जिस केसीआर और नीतीश ने एक साथ दोस्ती दिखाई, वहां ऐसा कैसे हो गया। जान लीजिए कि इसका कारण बिहार की राजनीति ही बनी। समझिए कैसे…

नीतीश केसीआर नए से मिलें
पटना: तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर ने माइनस नीतीश और लालू रैली कर आंदोलन की भूमि रही बिहार को विपक्षी एकता मुहिम से दरकिनार कर दिया है। केसीआर की इस पहल के बाद नीतीश कुमार जो जेपी की भूमिका में आ कर नरेंद्र मोदी की सत्ता को चुनौती देना चाहते थे , उस पर फिलहाल पानी फिर गया है। ये अलग बात है कि नीतीश कुमार ने केसीआर की रैली से अनभिज्ञता प्रकट करते कन्नी कटाते दिखे। मगर इस दौरान जो भाव उनके चेहरे पर आए उस से हताशा का भाव ही झलका। लेकिन झेंप मिटाते यह जरूर कहा कि ‘अगर बुलाते भी तो नहीं जाते ,हम तो समाधान यात्रा पर हैं न।’ लेकिन जान लीजिए कि केसीआर ने नीतीश को यूं ही साइड नहीं किया। इसकी चार वजहें हैं।

वजह 1- इसलिए केसीआर ने नीतीश को किया किनारे

भाजपा और कांग्रेस माइनस विपक्षी एकता की चाहत लिए केसीआर जब बिहार की यात्रा पर निकले तो नीतीश कुमार से मिलकर काफी निराशा हुई। वजह साफ थी कि नीतीश कुमार कांग्रेस के साथ मेन फ्रंट बनाना चाहते थे और केसीआर अपनी नीति में भाजपा और कांग्रेस से समान दूरी रखने की बात कह रहे थे। उनका साफ कहना था कि कांग्रेस और भाजपा दोनों से ही क्षेत्रीय पार्टियों को खतरा है। बाद में जब नीतीश कुमार कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता की मुहिम में सोनिया और राहुल गांधी के पास दौड़ लगाने लगे तभी से केसीआर ने दूरी बना ली।
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वजह 2- राजद और जदयू का बिगड़ा तालमेल भी कारण

बिहार में राजद और जदयू के बीच बयानों की जो बौछार हो रही है उस वजह से भी देश की राजनीति से वे अलग थलग पड़ गए हैं। इस असंतोष ने नीतीश कुमार की छवि को भी डैमेज किया। सुधाकर सिंह के हमले ने जहां नीतीश कुमार की कृषि नीति को कठघरा में किया तो राज्य के शिक्षा मंत्री प्रो.चंद्रशेखर के द्वारा हिंदू के धार्मिक ग्रंथ रामचरिमानस पर की गई नकारात्मक टिप्पणी ने नीतीश कुमार के सेकुलर चेहरा पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा तो कर दिया। इसके बाद राज्य के पूर्व सूचना मंत्री नीरज कुमार ने जिस तरह से ‘तेजस्वी बिहार’ और ‘शिक्षित बिहार’ के बिंब के बहाने लालू प्रसाद के कार्यकाल की शिक्षा को जब आंकड़ों पर उतारा तब राजद और जदयू का तकरार चरमोत्कर्ष पर आ गया। इस वजह से भी केसीआर राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश कुमार की राजनीति को अप्रासंगिक मानने लगे।
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वजह 3- उप चुनाव में हार से आधार वोट भी घटा

राज्य में हुए उप चुनाव में उनके आधार वोट बैंक पर सेंधमारी कर भाजपा ने उन्हें एक कमजोर नेता साबित करने की कोशिश की। गोपालगंज और कुढ़नी के उप चुनाव में महागठबंधन की हार से राजद का भी भ्रम टूटा। मोकामा में भले राजद के उम्मीदवार अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने जीत दर्ज की। पर राजनीतिक गलियारों में इस जीत को बाहुबली अनंत सिंह की जीत करार दिया दिया गया। कभी तीन हजार मत पाने वाली भाजपा यहां 63 हजार वोट पा कर एक नया संकेत तो दे ही गई ?

वजह 4- पुराने जनता दल की मुहिम को भी झटका

विपक्षी एकता की मुहिम के पहले नीतीश कुमार खुद के चेहरे को विशाल दिखाने के लिए पुराने जनता दल का स्वरूप देने की मुहिम जुटे। इसके लिए उन्होंने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और ओडिशा को साधने की कोशिश की। मगर चौटाला परिवार, चौधरी चरण सिंह और मुलायम सिंह की राजनीति के वारिस की तरफ से गर्मजोशी से हाथ नहीं बढ़े। इस तरह तभी विपक्षी एकता की मुहिम को झटका लग चुका था। लेकिन एक बड़े उद्देश्य का लबादा ओढ़ना भी नीतीश कुमार की मजबूरी रही। बिहार में अपने इस विशालतम चेहरे को दिखा कर भाजपा और राजद के लिए अपनी जरूरत बनाए रख कर अपनी प्रासंगिकता भी बनाए रखना था। यही वजह भी है कि अभी भी राज्य में एक हवा बह रही है कि बिहार में फिर भाजपा और राजद की सरकार बन सकती है।
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क्या कहती है भाजपा?

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता संतोष पाठक कहते हैं कि ‘नीतीश की यात्रा का यह समापन काल है। न उनकी छवि सुशासन बाबू की रही और न ही वो विकास पुरुष ही रहे। राजद के बाद दूसरी बार सरकार बनने के बाद सरकार कार्य कहां कर रही है। वह तो आपसी बयानबाजी में ही उलझी पड़ी है। उपचुनाव में भी उनसे अलग ही कर उनके वोटर ने भी एक नया संदेश बिहार की राजनीति को दिया है। सो, जिस यादव माइनस वोट के वो वाहक बने हुए थे, इसके छिन जाने के बाद इन्हें कोई साथ क्यों लेगा? जब तक आप वोट के साथ राजनीति करते हैं तभी तक पूछ होती है। नीतीश जी अब फूंके हुए कारतूस हो गए हैं।’

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