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Bihar Politics : बिहार की सियासत में हर कोई अपनी गुणा-गणित बिठाने में जुटा हुआ है। चाहे जेडीयू और आरजेडी हो या फिर विपक्षी पार्टी बीजेपी। इन सबके बीच उपेंद्र कुशवाहा जरूर नीतीश कुमार की जेडीयू में खेला करने को लेकर मोर्चे पर हैं। ये बात पार्टी नेतृत्व भी जानती है फिर भी उन पर एक्शन क्यों नहीं लिया जा रहा?

क्या चाहता है जेडीयू नेतृत्व
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह, उपेंद्र कुशवाहा को दंत विहीन कर छोड़ देना चाहते हैं। यही वजह भी है कि जैसे ही कुशवाहा आर-पार के मूड में आए जेडीयू मुखिया ने दो टूक जवाब दे दिया। उन्होंने साफ कहा कि कुशवाहा अब जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष नहीं हैं और न ही संगठन में किसी बड़े पद पर हैं। इसके पीछे नीतीश कुमार और ललन सिंह की मंशा यही है कि उपेंद्र ने जो नया फरमान जारी किया है उस पर पार्टी नेतृत्व सख्त है। उन्हें पता है कि कुशवाहा को पावर लेस नहीं करेंगे तो जेडीयू को दो धड़े में बंटने से कोई रोक नहीं पाएगा।
इसलिए ललन सिंह ने संभाली कमान
उपेंद्र कुशवाहा इस बार बिहार की राजनीति में एक उफान लेकर आए हैं। उन्होंने राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह और प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा को राजनीति का ठेंगा दिखाते हुए 19-20 फरवरी को राज्यभर के पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक बुला लिया है। साथ ही पत्र लिखकर जेडीयू के सारे कार्यकर्ताओं को यह संदेश भी दे दिया है कि नीतीश की आरजेडी से खास डील हुई है। जेडीयू के आरजेडी में विलय की कवायद से पार्टी का अस्तित्व खतरे में है। ऐसे में जेडीयू कार्यकर्ता पार्टी को बचाने की पहल करें।
उपेंद्र को शहीद नहीं होने देगी जेडीयू
उपेंद्र कुशवाहा ने तो वर्तमान राजनीति को ध्यान में रख कर अंतिम दांव चल दिया है। जेडीयू नेतृत्व के पास अब उनकी चाल को शिथिल करने के लिए एक ही उपाय है कि इनपर कार्रवाई का डंडा चला कर शहीद करने से बेहतर है कि इन्हें उनके ही हाल पर छोड़ दिया जाए। जेडीयू नेतृत्व की मंशा यह है कि जैसे जॉर्ज फर्नांडिस को किनारे लगाया गया, जो हाल शरद यादव का किया गया। उसी रास्ते पर उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति का दम निकाल दिया जाए।
क्यों चुना कुशवाहा ने जेडीयू के समानांतर संचालन
जेडीयू के भीतर जब जॉर्ज और शरद यादव को किनारे लगाया जा रहा होगा तो उपेंद्र कुशवाहा भी उस राजनीति के पार्ट एंड पार्सल रहे होंगे। यही वजह है कि वे इनकार के रास्ते पर चलकर यथा संभव जदयू से अपनी हिस्सेदारी लेकर अलग होंगे। यह तभी संभव होगा जब वे पार्टी के भीतर रहकर नीतीश और ललन सिंह से खार खाए नेता या वैसे नेता जो आरजेडी से गठबंधन के बाद नाराज हों, उन्हें लेकर निकलने की रणनीति का युद्ध लड़ें। उपेंद्र कुशवाहा यह भी जानते हैं कि बीजेपी भी उनकी हिस्सेदारी को बेहतर अंजाम तभी देगी जब वे जदयू को तोड़ने में कामयाब होगी।
जेडीयू के सख्त एक्शन नहीं लेने की ये है वजह
बहरहाल यह उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति का वह काल है जहां उन्हें अपनी ताकत का प्रदर्शन करना है। बीजेपी उनके प्रति अगर आशान्वित है तो उसकी वजह एकमात्र यह है यादव के बाद कुशवाहा जाति का वोट बैंक। इस जाति के वोट बैंक पर आरजेडी आलोक मेहता के जरिए, जेडीयू उपेंद्र और उमेश कुशवाहा के जरिए और बीजेपी सम्राट चौधरी के सहारे साधना चाहती है। बीजेपी अब उपेंद्र कुशवाहा को साथ लेकर कुशवाहा वोट के लिए एक बड़ा रास्ता खोलना चाहती है। हालांकि, बीजेपी की इसी मंशा को जेडीयू तोड़ना चाहती है और कुशवाहा को नजरंदाज कर उन्हें ‘शहादत’ नहीं देना चाहती है।
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