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नेपाल के राजा महेंद्र ने बनवाया था मंदिर
नेपाल के राजा महेंद्र वीर विक्रम शाहदेव के नाम पर इस शिवालय का नाम पड़ा है। इसकी कहानी भी बड़ी रोचक है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि नेपाल के राजा महेंद्र को कोढ़ जैसी बीमारी हो गयी थी। कुछ लोग गंभीर किस्म के चर्म रोग की बात कहते हैं। वे अपने लाव लश्कर के साथ इलाज के लिए बनारस गये थे। वहां बीमारी ठीक नहीं होने पर निराश मन से वे नेपाल लौट रहे थे। लौटते समय जब वे मेंहदार पहुंचे तो रात हो गयी। उन्होंने वहां रात्रि विश्राम का निर्णय लिया। मेंहदार में एक तालाब था। राजा समेत उनके साथ चल रहे सभी लोग उसी तालाब के किनारे विश्राम करने लगे। रात में राजा को भोलनाथ का स्वप्न आया कि चिंता न करो। सुबह उठ कर जिस तालाब के किनारे सोये हो, उसी तालाब में स्नान करना। तुम्हारी बीमारी ठीक हो जाएगी। तालाब में स्नान के बाद किनारे एक शिवलिंग दिखेगा। उस पर जल चढ़ा देना। और हां, बीमारी ठीक होने के साथ ही यहां एक शिवालय बनवा देना।
तालाब में स्नान करते ही ठीक हो गयी राजा की बीमारी
भोर हुई तो बीमारी से तबाह राजा ने स्वप्न में भोलेनाथ के बताये अनुसार तालाब में स्नान किया। स्नान के बाद उन्होंने शिवलिंग पर जल चढ़ाया। जल चढ़ाते ही चमत्कार हुआ। राजा की बीमारी ठीक हो गयी। राजा इतने खुश हुए कि वे शिवलिंग को नेपाल ले जाने की तैयारी करने लगे। सारा इंतजाम हो गया। अगली रात भोलेनाथ फिर सपने में आये। उन्होंने कहा कि यहां से शिवलिंग ले जाने की कोशिश मत करो। यहीं पर शिव मंदिर बनवा दो। तालाब की खुदाई करा कर इसे और विस्तार दो। कहते हैं कि राजा महेंद्र ने उसके बाद ही मेंहदार में शिव मंदिर बनवाया। तालाब का सही दायरा तो नहीं मालूम, लेकिन लोग बताते हैं कि वह 52 बीघे में है। तालाब खुदवाने के लिए राजा ने कुदाल का प्रयोग नहीं कराया। उस इलाके में जितने घर थे, वहां से हल-बैल मंगाये गये। तालाब को विस्तार देने के लिए जुताई कर मिट्टी हटायी गयी। आज भी वह तालाब मंदिर के बगल में ही मौजूद है।
मंदिर के तालाब में स्नान करने से चर्म रोग दूर हो जाते हैं
आसपास के लोग बताते हैं कि किसी भी तरह का चर्म रोग हो और आदमी उस तालाब के पानी में स्नान कर ले तो वह निरोग हो जाता है। बाबा महेंद्रनाथ के दर्शन करने में वैसे लोगों की भरमार रहती है, जो चर्म रोग से ग्रसित हैं। देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग बाबा का यही महात्म जान कर यहां हर साल सावन के महीने में और शिवरात्रि के दिन आते हैं। मंदिर का निर्माण 17वीं सदी में हुआ बताया जाता है। पांच सौ साल पुराने इस मंदिर में श्रद्धालु खाली पूजा-पाठ के लिए ही नहीं आते, बल्कि यह पर्यटन का बढ़िया केंद्र भी बन गया है।
बिहार सरकार ने पर्यटन स्थल घोषित कर दिया है
बिहार सरकार के पर्यटन विभाग के खाते में मेंहदार के बाबा महेंद्र नाथ के मंदिर का जिक्र है। बिहार के सबसे पुराने धार्मिक स्थलों में इसकी गिनती होती है। इस मंदिर के प्रांगण में घंटी टांगने की परंपरा है। परिसर में हजारों घंटियां टंगी-लटकी दिख जएंगी। यहां आने वाले बच्चों के आकर्षण का केंद्र हैं यां टंगी घंटियां। बच्चे बजा-बजा कर आनंद लेते हैं।
सीवान से 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित है मेंहदार का मंदिर
सीवान जिला मुख्यालय से मेंहदार तकरीबन 30 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मंदिर के समीप ही रेलवे का महेंद्रनाथ हाल्ट है। मंदिर तो बाबा महेंद्र नाथ के नाम पर है और मूल रूप से शिव पूजा के लिए लोग यहां आते हैं, लेकिन मंदिर के आंगन में मां पार्वती, सीता-राम, हनुमान समेत कई देवी-देवताओं के छोटे-बड़े मंदिर भी हैं। जो शिवलिंग पर जल अर्पण करने जाता है, वह दूसरे देवी-देवताओं के मंदिर में भी शीश जरूर नवाता है। लोग तो यह भी बताते हैं कि भक्ति भाव से निःसंतान दंपति अगर बाबा की आराधना करता है, उसे संतान की प्राप्ति जरूर होती है। लोगों की आस्था की एक बड़ी वजह यह भी है।
शिव मंदिर का निर्माण लखौरी ईंट और गारे से हुआ है
शिव मंदिर का निर्माण लखौरी ईंट और गारे से हुआ है। इसके बावजूद करीब 500 साल पुराने मंदिर के ढांचे में अब तक कोई कमजोरी नहीं आयी है। चार खंभों पर खड़े इस मंदिर का निर्माण एक ही पत्थर से हुआ है। खंभों में कहीं कोई जोड़ नहीं है। मंदिर के ऊपर बड़ा गुंबद बना है। उस पर सोने से बना कलस और त्रिशूल रखा है।
रिपोर्टः ओमप्रकाश अश्क
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