Home Bihar Kurhani by election 2022: कुढ़नी का किंग कौन बनेगा? चुनावी इतिहास से समझें इस सीट का सारा गणित

Kurhani by election 2022: कुढ़नी का किंग कौन बनेगा? चुनावी इतिहास से समझें इस सीट का सारा गणित

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Kurhani by election 2022: कुढ़नी का किंग कौन बनेगा? चुनावी इतिहास से समझें इस सीट का सारा गणित

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मुजफ्फरपुर: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी करीब चार महीने पहले अलग होने के बाद पहली बार कुढ़नी विधानसभा सीट पर उपचुनाव में आमने-सामने है। इस सीट पर पांच दिसंबर को उपचुनाव होने वाला है और यह उपचुनाव, मौजूदा विधायक अनिल कुमार सहनी की अयोग्यता के कारण हो रहा है। वह आरजेडी के टिकट पर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव चुनाव में यहां से विजयी हुये थे। कुढ़नी उपचुनाव में कुल 13 उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं, हालांकि मुकाबला मुख्य रूप से जेडीयू के मनोज सिंह कुशवाहा और बीजेपी के केदार प्रसाद गुप्ता के बीच है। दिलचस्प बात यह है कि पहले दोनों नेता इस सीट से विधायक रह चुके हैं।

महज 712 वोटों से हारे थे अनिल सहनी
इस सीट के पिछले कुछ चुनाओं के इतिहास पर नजर डालें तो केदार प्रसाद गुप्ता पूर्व मुखिया को बीजेपी ने 2015 विधानसभा चुनाव में दंगल में उतारा था। मनोज कुमार सिंह को काफी मतों से चुनाव हराया था। 2015 के मुकाबले में तीसरी और चौथे नंबर पर रहे क्रमश: मृत्युंजय और अब्दुल गफ्फार को मिलकर 9193 वोट मिले थे। केदार प्रसाद गुप्ता को 73227 और मनोज कुमार को 61657 वोट मिले थे। इस तरह मनोज कुशवाहा 11570 वोट से हार गए थे।

वहीं 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान मनोज कुमार कुशवाहा चुनाव में नहीं उतरे, जिसके बाद यहां से आरजेडी प्रत्याशी की जीत हुई थी। 2015 में बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले केदार गुप्ता को 2020 में अनिल सहनी मात्र 712 मतों से हरा पाए थे। इसकी मुख्य वजह तीसरे नंबर के उम्मीदवार रामबाबू सिंह को 10041 वोट मिलना माना जाता है। ऐसा अनुमान है कि अगर यही वोट केदार प्रसाद गुप्ता के पक्ष में जाते तो चुनाव रिजल्ट बदल भी सकते थे।

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पिछले दो चुनावों को देखते 2022 के उपचुनाव में वीआईपी के उम्मीदवार पर सबकी नजर रहेंगी। इतिहास गवाह है कि मुजफ्फरपुर के कुढ़नी विधानसभा सीट पर हर चुनाव में अलग-अलग समीकरण देखने को मिलता है।
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कुढ़नी उप चुनाव में जेडीयू नेता मनोज कुशवाहा महागठबंधन के प्रत्याशी हैं। वहीं एनडीए से बीजेपी उम्मीदवार केदार प्रसाद गुप्ता हैं। इन दोनों के बीच में सीधा मुकाबला माना जा रहा है। मनोज कुशवाहा और केदार गुप्ता दोनों पूर्व मुखिया के साथ पूर्व विधायक रह चुके हैं। केदार प्रसाद गुप्ता एक दुर्घटना वाले मामले में काफी चर्चित हुए थे और दोनों उम्मीदवार अपनी अपनी पार्टी से लगातार जुड़े रहे। इलाके के लोगों से बात करने पर पता चलता है कि मनोज कुशवाहा ज्यादा सुलभ नेता रहे हैं। उनका ज्यादातर समय लोगों के बीच और स्थानीय पार्टी कार्यालय में ही बितता है। दूसरे टर्म में चुनावी टिकट नहीं मिलने के बाद भी जनता से मनोज कुशवाहा दूर नहीं हुए।
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कुढ़नी सीट का इतिहास रहा है कि यहां तीसरे नंबर पर रहने वाला कैंडिडेट गेम चेंजर होता है। 2010 में मनोज कुमार कुशवाहा जेडीयू के टिकट पर चुनाव जीते थे। 36757 मतों से दूसरे स्थान पर रहे थे विजेंदर चौधरी जो 35787 मतों पर थे। 1570 मतों से विजेंद्र चौधरी मनोज कुशवाहा से चुनाव हार गए थे। 2010 के चुनाव में बाहुबली शाह आलम तीसरे स्थान पर रहे थे। वहीं चौथे नंबर पर आईएनसी उम्मीदवार विनोद चौधरी रहे थे, जिन्हें 9896 वोट मिले थे। 5वें स्थान पर बसावन भगत थे।
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बीजेपी विधायक जिबेश कुमार मिश्रा ने कहा, ‘मोकामा और गोपालगंज में हाल के उपचुनावों ने एक बात स्पष्ट कर दी है कि नीतीश कुमार अब बिहार में कोई ताकत नहीं रह गए हैं। उनकी पार्टी का समर्थन आरजेडी को किसी भी सीट पर मदद नहीं कर सकी।’ उन्होंने कहा कि बीजेपी मोकामा में आरजेडी की जीत के अंतर को कम करने और गोपालगंज सीट को बरकरार रखने में सफल रही है। हम चकित हैं कि लालू प्रसाद (आरजेडी अध्यक्ष) जैसे दिग्गज ने घुटने टेक दिए और कुढ़नी सीट जो पूर्व में आरजेडी के पास थी, जेडीयू के लिये लिए छोड़ दी। कुढ़नी में ताबड़तोड़ प्रचार कर रहे जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह का दावा है कि बीजेपी जो बिहार में गिरावट पर है, अपने भरोसेमंद लोगों का समर्थन खो चुकी है।’ ललन का यह भी दावा है कि बीजेपी की असुरक्षा इस तथ्य से स्पष्ट है कि उसे अपनी बी-टीम, असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम को कुढ़नी में उतारना पडा है। एआईएमआईएम को गोपालगंज में आरजेडी की हार के लिए भी दोषी ठहराया गया था, जहां ओवैसी की पार्टी को मिले वोटों की संख्या बीजेपी उम्मीदवार की जीत के अंतर से कहीं अधिक थी।
रिपोर्ट: के रघुनाथ

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