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अब इसे नीतीश कुमार से नाराजगी कहीं जाए, उनका बार-बार दल बदल ना कहा जाए, शराबबंदी से उपजा गुस्सा कहा जाए या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कोरोला कार में किए गए कामों का नतीजा! जनता ने उन तमाम किए गए कामों को याद रखा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी कुरौना काल में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जनता सीधे तौर पर नरेंद्र मोदी के चेहरे पर वोट करती नजर आई।
महिलाओं ने कहा, मोदी का नमक खाए हैं, वही जिलाए हैं
खुले तौर पर गांव की महिलाओं और गरीब गुरबों ने वृद्धा पेंशन से लेकर घर बनवाने और कोरोना काल में अनाज बंटवाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया। कम पढ़ी लिखी और साक्षर महिलाओं ने बीजेपी के प्रत्याशी केदार नाथ पर भरोसा न दिखा कर सीधे कमल छाप की बात कही। उन्होंने कहा, मोदी जी ने सड़क बनवाया है। खाने को राशन दिया है। पैंशन का पैसा दिया है। उन्होंने कहा यहां कैंडिडेट कोई भी हो लेकिन चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही होगा।
दल बदल से नाराज नजर आए वोटर
कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव के दौरान यह तो बात साफ हो गई की जनता में सबसे ज्यादा नाराजगी जेडीयू के बीजेपी से गठबंधन तोड़ने को लेकर थी। लगभग हर प्रखंड में लोगों के जुबान पर एक बात थी। नीतीश कुमार पलटू हैं। खैर, पलटू चाचा तो तेजस्वी यादव ने कहा था। जिसका असर कुढ़नी विधानसभा चुनाव में उनके गठबंधन के खिलाफ ही देखने को मिला। अब इसे दूसरे नजरिए से देखा जाए तो नीतीश कुमार को पलटू चाचा कह कर तेजस्वी ने ट्रोल किया था। लेकिन ट्रोल वाले गड्ढे में खुद तेजस्वी यादव गिरते नजर आए। जनता ने कहा, जेडीयू ने बीजेपी के साथ मिलकर बिहार का विकास किया था। लालू राज के जंगल राज के खिलाफ नीतीश कुमार अब आरजेडी के साथ चले गए हैं। यह नाराजगी वोटरों में साफ तौर पर देखी जा सकती थी। एनबीटी ने करीब एक दर्जन पंचायतों का दौरा किया। इसके अलावा गांवों में वहां लोगों से मुलाकात की। उसके बाद यह पाया कि जनता का रुझान बीजेपी की तरफ है। वहीं नीतीश कुमार के खिलाफ भारी नाराजगी।
जिन्हें बीजेपी पर भरोसा नहीं उनका भरोसा जेडीयू और आरजेडी भी नहीं जीत सकी
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को 3000 से अधिक वोट मिले। वहीं 4000 से ज्यादा लोगों ने नोटा का बटन दबाया। यह ट्रेंड ये बताता है कि जो लोग बीजेपी को नहीं चुन पा रहे थे। बीजेपी पर भरोसा नहीं जता पा रहे थे। उनका भरोसा नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के साथ खड़ा महागठबंधन भी नहीं जीत सका। लिहाजा उन्होंने सीधे तौर पर नोटा का बटन दबाया। जो इस बात की तरफ इशारा करता है अच्छी खासी संख्या में वोटरों ने नीतीश कुमार से नाराजगी जाहिर की। एक तरफ जहां AIMIM के साथ जाकर मुस्लिम वोटरों ने तेजस्वी यादव को नकारा वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी को वोट न करने वाले वोटरों ने नीतीश और तेजस्वी यादव दोनों की जोड़ी पर भरोसा नहीं दिखाया।
मनोज कुशवाहा से भी नाराजगी
वही, मनोज कुशवाहा जो कि जेडीयू के प्रत्याशी हैं और उन्हें महागठबंधन का समर्थन प्राप्त है। उनके प्रति भी खासी नाराजगी जाहिर की। नोटा की संख्या ज्यादा होने का सीधा मतलब यह भी है कि जनता ने मनोज कुशवाहा के चेहरे को सीधे तौर पर नकार दिया। क्योंकि ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान ज्यादातर वोटरों की राय में मनोज कुशवाहा जनता के बीच नहीं रहने वाले नेता बताए गए।
केवल छिटपुट मलाहों होने दिया मुकेश
सन ऑफ मल्लाह की पार्टी वीआईपी ने भी अपना खेली डेट खड़ा किया था। उसका कुछ मल्लाह बहुल इलाकों में दबदबा दिखा। यहां मल्लाह समाज सन ऑफ मल्लाह के कैंडिडेट को जीत दिला रहा था। लेकिन उसी पंचायत में सवर्ण और राजपूत समाज नीतीश कुमार के खिलाफ खड़ा नजर आया। हम बात अख्तियारपुर प्रखंड की कर रहे हैं। यहां मल्लाह समाज के लोगों की संख्या ज्यादा थी। वहीं, भूमिहार और ब्राह्मण वोटरों ने बीजेपी पर भरोसा जताया।
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